कुछ ख़ास है वागड का देशी आम
हमारे देश में फलो के राजा आम की कई किस्मे पाई जाती हैं. हापुस, रत्नागिरी, लंगड़ा, बादाम, तोतापुरी, केसर आदि आदि. इन्ही आमो के बीच एक ख़ास मुकाम है वागड़ के देसी आम का !
वागड का देशी आम स्वाद, सुगंध और गुणो के लिहाज़ से बेजोड है. ख़ास बात ये भी है कि, इस देसी आम के वृक्ष बिना किसी निराई, गुडाई, सिंचाई, खाद, विशेष देखरेख और
बगैर कीटनाशक के पनपते हैं. और अच्छी पैदावार के कारण उत्पादको के लिए बहुत फायदेमंद
है. यानी मिनिमम इनपुट, मैक्सिमम आउटपुट !
प्राकृतिक रूप से पेड से अधपके आम (स्थानीय
भाषा मे हाग) गिरने शुरू हो जाते है तो आम की तुडाई की जाती है. वागड के आम पलाश
के पत्तो और धान की घास के बीच रखने पर शीघ्र पकने शुरू हो जाते है.
वागड के देसी को चूसकर खाने का अपना अलग ही मज़ा है. आमरस के रूप में भी आप इसका लुत्फ उठा सकते हैं. इन आमो का अचार और मुरब्बा भी लाज़वाब बनता है. और इस में किसी केमिकल प्रिजर्वेटिव की ज़रूरत नहीं पड़ती !! आम के रस मे शक्कर या मिश्री मिलाकर धूप मे सुखाने पर बहुत स्वादिष्ट आम के पापड बनते है. और इसी के चलते वागड़ में डडूका, छींच आदि गांव आम के पापड़ की वजह से मशहूर हुए हैं. और देश विदेश में सप्लाई होते हैं.
वागड के आम की सबसे बडी विशेषता यह है कि
जितने भी आम हैं, सबका फ्लेवर एक दूसरे से
अलग होता है. वागड के आम पकने पर मधुर मादक गंध देते है. वागड़ देसी आम की अंदाज़न डेढ़ दर्ज़न वैरायटी पाई जाती हैं.
सेहत के लिहाज़ से देखें तो आम मे ऐंटी ऑक्सीडेंट्स एवं विटामिन A, B, C प्रचुर मात्रा मे होता है. ये ज़्यादातर बगैर पेस्टीसाइड्स और केमिकल ट्रीटमेंट के उगाए जाते हैं, इसलिए विशुद्ध रूप से ऑर्गेनिक भी हैं. ये कुदरती ढंग से पकते हैं, इसलिए इनको ज़बरन पकाने के लिए बाइ कार्बोनेट जैसे घातक केमिकल्स से भी इनका कोई वास्ता नहीं है.
वागड के आम के रस मे केसरिया रंग होता है. वागड
के हर गाँव मे मीठे रसीले आमो के वृक्ष पूरे गाँव मे जाने जाते है. वागड आम रेशेदार होते है उनमे बिना रेशे का
गुदा नही होता है.
वागड मे आम को धोकर, हाथो से चारो ओर दबा दबा कर रस निकाला जाता है और ये इतने मीठे होते है
कि इसमे शक्कर मिलाने की आवश्यकता नही होती है.
दो परतो वाली (बेपडी) रोटी के साथ वागड़ आम के रस का ज़ायका ही कुछ अलग है. और वागड़ में इसका ख़ासा चलन भी है. आम के छिलके और गुठलियो को धोकर बहुत स्वादिष्ट सूप बनाते है जिसे अमरता कहते है. इसी तरह कच्चे आम (कैरी) को आग में झुलसाकर या गर्मपानी में उबालकर उसका ‘सिसुला’ यानी आम का पना जैसा शीतल पेय भी बनाया जाता है. जो गर्मी में लू से बचाव करता है व बेहद सेहतमंद भी होता है. कच्चे आम से चुंदा (चटनी) भी बनाया जाता है. इसमे अचार वाले आम अनुभव के आधार पर पहचाने जाते है.
आम के पने की रेसिपी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें: आम का पना बनाने की आसान विधि
वागड की संस्कृति मे आम का दान करना, आमरस एवं रोटी का भोज देना, निर्जला एकादशी पर आम
एवं पानी से भरे घडे का दान करना और किसी की मृत्यु के उपरांत आम के फलो को घरो मे
बंटवाने (लाणा करने) की परंपरा रही है.
भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा
गांधी कभी भूतपूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के जरिए हर साल वागड के रसीले आम
मंगवाती थी.
आम के बगीचो मे तो दवाइयां,कीटनाशको का प्रयोग, रासायनिक उर्वरको का प्रयोग, सिंचाई और वर्ष भर की देखरेख के कारण सामान्य किसान के लिए मुश्किल ज़रूर
है लेकिन वागड़ में देसी आम की कमर्शियल खेती और आम के बगीचो के लिए भी प्रचुर
सम्भावनाएँ हैं.
कृषि पर्यवेक्षक हरिराम पाटीदार, सागवाड़ा बताते हैं कि वागड़ की आबो-हवा विशेषकर कांठल क्षैत्र एवं बारामासी नदी-नालों के किनारों वाली जमीन कल्मी आम आम्रपाली, दशहरी, लंगडा़, केसर, हापुस, तोतापुरी के लिए उपयुक्त है. यहां के देसी आम की प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं. इसके पीछे का कारण मई जून की गर्मी का कठोर तापमान और भूमिगत जल स्तर का गिरना है.
वागड के आम अच्छे मीठे, रसीले और गुणवत्ता वाले आम की गुठली को ताजा बो देने पर एक माह मे अंकुरण
हो जाता है. इस तरह ये बेहद आसानी से उगने वाला पेड़ है. उचित सुरक्षित स्थान पर
पौधे को रोपकर सुरक्षा कर देने पर पांच वर्ष सुरक्षा करनी पडती है. एक और अनोखी
बात, देशी आम के पेडो पर दो वर्ष मे एक बार बंपर पैदावार
होती है. इस वर्ष बंपर पैदावार है.
~महेंद्र पाठक, हिंदी व्याख्याता, परतापुर
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