वागड़ का खुजराहो- गामडी देवकी शिवालय
दक्षिणी राजस्थान की वागड़ धरा सनातन काल से शिव उपासक होने के कारण शिव मंदिरो से पावन होती रही है. इसलिये पौराणिक समय से वागड़ में सैकड़ो शिव मन्दिर आज भी है । लेकिन असँख्य शिव मंदिरो के बीच गामड़ी देवकी का शिवालय अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. जहाँ
वागड़ का खजुराहो उपनाम से ख्यातनाम यह मंदिर 12वीं शताब्दी के संगमरमरी मनोहारी शिल्प कला का नायाब नमूना है । शिवालय का कलात्मक शिखर,बाहरी दीवारों पर उत्कीर्ण रति मुद्रा की कला वाला मुख्य द्वार , उस द्वार पर भैरव और गणेशजी जी सुंदर मुर्तिया साथ ही मंदिर में स्थापित माँ पार्वती और गंगाजी की बड़ी प्रतिमाएं हैं। जो इस मंदिर को उत्कृष्ठ बनाती हैं और इस स्थान को खजुराहो का प्रतिरूप दर्शाती हैं । यह मंदिर देव सोमनाथ के समकालीन मन्दिर है । देवसोमनाथ निर्माण में जिन कारीगरो ने कार्य किया था उन्ही के द्वारा बनाया गया है । इसमें संगमरमर (सफेद मार्बल) का प्रयोग हुआ है.
इस
मन्दिर के गर्भगृह का द्वार और मेहराब में पत्थर पर अति सुंदर कलाकारी की हुई है ।
शिवलिंग की जलेरी भी काफी अलग और सुंदर बनी हुई है । मंदिर के अंदर विशाल नन्दी की
मूर्ति के साथ ही इस मन्दिर का परिसर काफी बड़ा है ।
विभिन्न मुद्राओ में मैथुनरत मूर्तियां इसे अंचल के अन्य मंदिरो से अलग पहचान देती है है, वहीं हमें बरबस ही विश्व प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर की याद भी दिलाती हैं.
गाँव
गामड़ी देवकी के कुछ लोगो के अनुसार महारावल आसकरण के समय में मन्दिर बनाया गया था , पर किसने बनवाया ये स्पष्ट नही
हो पाया । यहाँ पहले खुला शिवलिंग था, पौराणिक मान्यता अनुसार
जब किसी गाय के शिवलिंग पर दुग्ध धारा से अभिषेक करते देखा , गाय के प्रतिदिन इस प्रकार करने के कारण और शिवलिंग की स्थिति का पता लगने
के कारण यह स्थान प्रसिद्ध हो गया ।
मंदिर
के पास में एक छोटी नदी (गलियाणा नाला बारिश का) बहती है । जो किसानों के लिये
खेती और आजीविका के लिये सिंचाई के लिये महत्वपूर्ण है । इस मन्दिर की मान्यता है
की यहां जिनके संतान न हो वे बाधा रखते है और नगर भोजन करवाते है । यहां पर अन्य
राज्यों के भी भक्त आते है ।
इस मन्दिर के शिखर पर भी उत्कृष्ट कला कृति की हुई है ।इस मन्दिर के आलावा गाव में 4 मन्दिर और भी है । केवल 297 घरों की आबादी के साथ यह गाँव अच्छी बसावट और शिव मन्दिर के कारण जिले में प्रसिद्ध है । इस गांव में 87% लोग आज भी पशुपालन और कृषि से जुड़े हुये है। सभी मकान हिन्दू धर्मावलंबियो के ही है ।
प्राप्त
जानकारी के अनुसार यह छोटा गाँव था, इसलिये इसे लोग वागड़ी में ‘गाम’ न कह कर ‘गामड़ी’ कहते थे ।
फिर शिव मन्दिर के कारण गामड़ी देव कहने लगे पर धीरे धीरे गामड़ी देव की जगह देवकी
बोलने लगे । कुछ लोग मानते है की यहां देवी की मूर्तियां महादेव के साथ है इसलिये
देवकी कहते है ।
जो
भी हो इस मन्दिर की चर्चा देवस्थान विभाग से लगाकर खुजराहो के इतिहास कारों तक रही
है वे सब इसको देख चुके है । आप हर सोमवार , हर पूर्णिमा और शिवरात्रि के दिन में किसी भी भरने
वाले मेले में पधार कर दर्शन लाभ ले सकते है ।
वागड़
के कई मंदिरो की तरह यहाँ भी मंदिर के साथ ही प्राचीन प्रतिमाओ को भी चूना (सफेदा)
लगा देने से वह स्पष्ट नहीं दिखती है. लेकिन इनकी कलात्मकता का निखरा स्वरूप देखने
के लिए मुर्तियो पर सफेदा पुतने से बचना चाहिए. इस मंदिर में शिव के साथ ही गौरवशाली अतीत का साक्षात
होता है.
आलेख
एवँ तस्वीरें- राजेन्द्र कुमार पंचाल सामलिया
गांव सामलिया, डूंगरपुर
मूल के पंचाल आध्यात्म शिक्षण, लेखन और ‘शुभवेला पंचांग’ का सम्पादन करते हैं एवँ ज्योतिषविद हैं.
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