प्रेम का आनंदोत्सव का पर्व रंग पंचमी पूरे देश में मनाया जाता है
आलेख - राजेन्द्र पंचाल सामलिया
भारत देश त्यौहारों का देश है, यहाँ विविधता में एकता है । हमारी सभ्यता और संस्कृति में व्रत- त्यौहार हमें जीवन शक्ति, उल्लास , सामाजिक जीवन में एकात्मकता, समरसता, त्याग व प्रेम का वातावरण निर्माण करते है । ऐसा ही खास त्यौहार है होली और उसके बाद रंग पञ्चमी, जो होली के समाप्ति का संकेत है ।
कहा जाता है की भगवान नारायण ने त्रेता युग में घूली वन्दन किया तब
से रंग पंचमी मनाई जाती है । जिसका भावार्थ यही था - की पंच तत्वों से यह सृष्टि
बनी है जिसे भगवान नारायण ने पहली बार सृष्टि में आभास कराया । यह सृष्टि पाँच
देवों से बनी है - गणेश , सूर्य , शिव , शक्ति और विष्णु ।
ये पंच देव पंच तत्व है, ये पाँच रंग
है । ये पाँच रंग जीवन में संयम, तेज , उल्लास (चेतना) , वीरता और योगशक्ति के प्रतीक है ।
इनके आधार पर ही सृष्टि संचालित है । इन्ही से योगक्षेमं
वहाम्यहम् होता है ।
होली के पाँचवे दिन रंग पंचमी पर इन देवताओं का आव्हान किया जाता था , जिससे जीवन में ये रंग विविधताओं के साथ आवश्यकताओं को पूरा करते थे । ये भी कहा जाता है की भगवान शिवजी में काम वासना पैदा करने के कामदेव के असफल प्रयास करने के कारण क्रोधित होकर महादेव ने तीसरा नेत्र खोला, जिससे कामदेव जलकर भस्म हो गए । शिवजी का क्रोध शांत होने के पश्चात रति द्वारा बार बार निवेदन करने पर भगवान शिव ने वरदान दिया की द्वापर में कृष्ण जन्म के समय तुम्हारा पति कृष्ण की रूप में मिलेंगे, तुम गोपी रूप में राधा बनोगी । तब तुम्हे कामदेव का प्रेम पुनः मिलेगा । जब जब भगवान श्री कृष्ण रास लीला करेंगे तब तुम्हें तुम्हारे कामदेव का पुनर्जन्म रूप मिलेगा ।
इसलिए कहा जाता है - राधा- कृष्ण को भारतीय शास्त्रों में विशुद्ध
प्रेम का प्रतीक माना है यह एक कामदेव और रति का रूपांतरण रूप माना जा सकता है ।
वैसे श्रीमदभागवत में प्रधुम्न को कामदेव का अवतार भी कहा जाता है जिसका तात्पर्य
काम का पुनर्जन्म कृष्ण के पुत्र रूप में माना है । भगवान कृष्ण ने इस पंच भूतों
के शरीर में होली के तेज को पंच रंगों में बदला, जीवन
में प्रेम, उल्लास , सत , चित व आनन्द को नया रूप दिया वह रंग- पंचमी का स्वरूप बना , आज भी होली और रंग- पंचमी गोकुल- मथुरा सहित उत्तर भारत में बड़े उल्लास और
तैयारियों के साथ मनाई जाती है । इस त्यौहार के साथ होली की समाप्ति होती है ।
पाँच का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है । पंच इंद्रियां , पंच ज्ञानेन्द्रिय , पंच कर्मेन्द्रियां , पंचगव्य , पंच पुष्प , पंच गंध , पंचामृत, पञ्चाङ्ग आदि का हिन्दू धर्म मे बड़ा महत्व है । इसी भांति इन पंच रंगों का भी महत्व है । होली के बाद आज पाँच दिनों तक ये रंग प्रकृति में बसंत के कारण खिलखिलाते है अथवा कह सकते है की ऋतु परिवर्तन के कारण हमारे मन, प्रकृति , चित्त और चेतना व शरीर पर इस रंग पंचमी का अलग अलग तरह से प्रभाव देखा जाता है । जिसे हम विभिन्न रंगों के माध्यम से अबीर , गुलाल , कुंकुम आदि को उड़ा कर अथवा लगा कर इस त्यौहार में खुशियां मनाते है ।
पूरे देश में चैत्र कृष्ण पंचमी को यह त्यौहार मनाया जाता है ।
महाराष्ट्र में तो रंग पंचमी को बड़े स्तर पर मनाया जाता है । माना
जाता है कि यह मछुआरों के लिये बहुत खास त्यौहार है, इस दिन
सब नाचने गाने में मस्त होते हैं। इस मौके पर कुछ जगहों पर खूब धमाल मस्ती की जाती
है । रंग पंचमी कोकण क्षेत्र का भी खास त्यौहार
है । साथ ही गुजरात , बंगाल , बिहार व
असम व केरल में भी धूमधाम से मनाया जाता है ।
लोग मानते हैं कि हवा में रंग उड़ाने पर और एक-दूसरे को लगाने पर
विभिन्न रंगों की ओर देवता आकर्षित होते हैं. इससे वातावरण (ब्रह्मांड) में
सकारात्मक तंरगों का संयोग बनता है और रंग कणों में संबंधित देवताओं के स्पर्श की
अनुभूति होती है । माना जाता है कि इस दिन वातावरण में उड़ते हुए गुलाल व्यक्ति
में सकारात्मक गुणों को भरते हैं और नकारात्मकता का नाश करते हैं ।
वही इंदौर शहर रंगपंचमी की कुछ अलग ही विशेषताओं को लिए हुए है । इंदौर में होली से ज्यादा रंगपंचमी का त्यौहार काफी पौराणिक है । इतिहासकारों के अनुसार रंगपंचमी के दिन होलकर राजवंश के लोग आम जनता के साथ होली खेलने के लिये सड़कों पर निकलते थे । जिनमें हर तबके के लोग सामूहिक रंगों के त्यौहार मनाते थे । इंदौर की रंगपंचमी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है , रंगपचंमी गेर हिन्दू मुस्लिम मिल कर खेलते हैं।
राजस्थान में भी रंग पंचमी बड़े उल्लास के साथ मनाई जाती है इस दिन
होली की राख को एक दूसरे को लगाई जाती है जिसे शुभता का प्रतीक मानते है । कही कही
इस दिन राड (कंडे, टमाटर आदि फेंकना) भी खेली जाती है ।
रंगपंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय प्राप्ति का उत्सव भी है । ऐसी
मान्यता है कि रज-तम के विघटन से दुष्टकारी या कहें पापकारी शक्तियों का समापन भी
इस दिन होता है। वागड़ में प्रत्येक गांव और शहर में रंग पंचमी मनाई जाती है , इस दिन गाँवो में समूह में लोग एकत्रित होकर रंग लगाते है मन्दिरों में
भांग का शर्बत पिलाया जाता है व प्रसाद बांटा जाता है ।
आमोद -प्रमोद और उल्लास का यह पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक है ।
इसमें सभी उम्र और सभी वर्ग के लोग भाग लेते है । भारतीय संस्कृति का यह अनोखा
आनन्दोत्सव है जो आज के विषाद व तनाव भरे वातावरण में सकून और खुशियां देता है ।
~ राजेंद्र कुमार पंचाल, सामलिया, ज्योतिषाचार्य एवम शुभवेला पंचांग के सम्पादक
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