माँ त्रिपुरा सुंदरी का अनन्य भक्त पंचाल समाज
राजस्थान की दक्षिणेश्वरी माँ त्रिपुरा सुंदरी अपनी अगाध आस्था की आभा, सुंदर वास्तुशिल्प युक्त मंदिर परिसर के कारण सिर्फ़ वागड़ अंचल ही नहीं, देशभर में विख्यात है. दशको पहले जब वागड़ अंचल विकास से दूर विपन्नता से संघर्षरत था, तब विश्वकर्मा ब्राह्मणो की एक शाखा पंचाल समाज ने इस मंदिर के जीर्णोद्वार करने का बीड़ा उठाया. पंचाल समाज की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित होने के कारण माँ त्रिपुरा सुंदरी से समाज का अनन्य भक्ति भाव और स्नेह भी रहा है. यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि, आज मंदिर के भव्य स्वरूप में सनातन के प्रखर प्रहरी इस पंचाल समाज का अतुलनीय योगदान है. पंचाल समाज ने अपने पुरुषार्थ और सर्व समाज को साथ लेते हुए वागड़ की इस अनमोल थाती माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को सहेजा, संवारा और समृद्ध किया है. नवनिर्मित मंदिर परिसर के नवम पाटोत्सव पर माँ के अनन्य भक्त एवँ पंचाल समाज के एक अग्रणी विचारक भगवती लाल पंचाल (रिटायर्ड नायब तहसीलदार) की कलम से कुछ संस्मरण पढिए.. -(जितेंद्र जवाहर दवे, सम्पादक, वायरल वागड़ )
सौभाग्य की बात है कि हमारे पूर्वजो और वडील (पँचाल समाज विश्वकर्मा ब्राह्मण) जिनके त्याग, तपस्या और समर्पण के कारण आज हम सभी सनातनियो को माँ कुलदेवी त्रिपुरा सुन्दरी के दरबार के रूप में एक अनमोल विरासत मिली है
जब हम सब के
पिताजी, दादाजी पैदल चलकर हमारी कुलदेवी माँ त्रिपुरा सुंदरी के दरबार में पँहुचते थे। वे लोग उस समय
अपने साथ 2 दिन का भोजन,
पूड़ी, पराठे
आदि बांधकर ले जाते थे।
वे लोग सुबह 5 बजे घर से निकलकर दूर दराज के विभिन्न गांवो के चौदह चोखरो के गांवो से निकलते थे और लगातार पैदल चलकर जंगलों के रास्ते भटकते हुए, जंगली जानवरों से बचते बचाते दूसरे दिन सुबह में माँ के दरबार में पँहुचते थे। लेकिन उनकी आस्था अगाध थी, माँ उनकी रक्षा करती थी। पँचाल समाज के उन सभी पुराधाओँ को दण्डवत प्रणाम करते हुए नमन करता हूँ।
साथ ही पँचाल समाज के युवा जो कुवैत सहित अन्य खाड़ी देशों में एवं मुंबई, अहमदाबाद आदि शहरों में रोजगाररत हैं,उनके द्वारा अपनी कुलदेवी के मंदिर निर्माण व धर्मशाला निर्माण में अभूतपूर्व सहयोग राशि दान दी गई हैं।
बांसवाड़ा जिले के सभी सात चोखरो के एवं स्थानीय गांव तलवाड़ा व नजदीकी शहर बांसवाड़ा एवं व सभी गांवो के पँचाल भाइयों औऱ बहनों ,युवाओं के समर्पण, त्याग का तो मैं अपने शब्दों में वर्णन कर ही नहीं सकता हूँ। औऱ वैसे अन्य सभी गांवो का नाम इस छोटे से आलेख में लिखना सम्भव भी नहीं है जिनका त्याग अभूतपूर्व हैं।
पँचाल समाज के
चौदह चोखरो के लोगों का तन मन औऱ धन से त्याग,
दृढ़ इच्छाशक्ति, कठोर
परिश्रम समय का त्याग,अपनी कुलदेवी के प्रति अटूट श्रद्धा के
कारण ही आज हम सब माँ के विशाल दरबार में खड़े होकर गर्व के साथ यह कह सकते हैं कि
यह हमारी ईष्टदेवी आद्य शक्ति राजराजेश्वरी जगदम्बा माँ त्रिपुरा सुंदरी का
चमत्कारिक मंदिर हैं।
माँ के दरबार के परिसर में लगा हुआ विशाल ऊंचा कीर्ति स्तम्भ जो की स्वर्ण धातु की परत से सु- सज्जित हैं, जिसको पँचाल समाज के दानदाताओं द्वारा समर्पण कर स्थापित किया गया है जिसके कारण माँ की कीर्ति चहुओर ,सम्पूर्ण जगत में प्रकाशित हो रही हैं।
यह विश्व का पहला
मंदिर है जिसमें मंदिर निर्माण में उपयोग की गई प्रत्येक शीला पत्थर का नवचंडी यज्ञ,विधिविधान के साथ शीला पूजन करने के बाद
ही निर्माण में उपयोग किया गया है,
इस शीला पूजन में पँचाल
समाज चौदह चोखरो से लगभग हर परिवार द्वारा आर्थिक सहयोग कर शिला पूजन में भाग लिया
गया है।
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 2025 की प्रतिपदा को पँचाल समाज के दानदाताओं द्वारा माँ को बहुमूल्य स्वर्ण मुकुट भेंट कर अपनी आस्था को प्रगाढ़ किया है।
माँ की कृपा दृष्टि पँचाल समाज पर अविरल बरस रही हैं। पँचाल समाज द्वारा इतने विशालकाय दरबार में पाताभाई भोजनालय से लेकर सभी प्रकार की सुविधाएं सर्व समाज के आनेवाले हर दर्शनार्थियों के लिए निःशुल्क प्रदान की जा रही हैं।
मंदिर में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है, मंदिर, धर्मशाला की सफाई के लिए, एवं व्यवस्था हेतु 30 से अधिक सवैतनिक कर्मचारी एवं समाज के अनेक युवा स्वेच्छा से सेवा कार्य में हाथ बंटाते हैं। मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्था, देखरेख , रख रखाव--त्रिपुरा सुंदरी ट्रस्ट मण्डल पँचाल समाज द्वारा किया जाता है। ट्रस्ट मण्डल का चुनाव हर तीसरे वर्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया से होता है। हर चोखरे से 5 सदस्य ( यानी कुल14 चोखरो से 70 सदस्य) चुनकर आते हैं, जिनके द्वारा अध्यक्ष एवं मंदिर की कार्यकारणी का चुनाव किया जाता है।
माँ के द्वार न केवल पँचाल समाज बल्कि अन्य सभी समाजों और सम्पूर्ण वागड़, मेवाड़, मालवा, गुजरात से हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और माँ अपनी कृपा बरसाती है। माँ के दर्शन के लिए राजस्थान,दिल्ली, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों के दर्शनार्थी, नेता, अभिनेता, कलाकार, साधु संत, मुनि ज्ञानी दर्शन लाभ लेकर अपने को धन्य समझते हैं।माँ के मंदिर में
पँचाल समाज द्वारा और ट्रस्ट मण्डल द्वारा दर्शनार्थ आने वाले सभी श्रद्धालुओं का
पूरा ध्यान रखा जाता हैं, बिना किसी भेदभाव, छुआछूत
के हर समय माँ का दरबार सार्वजनिक दर्शन के लिए खुला रहता है, और
दरबार में आने वाले सभी ग़रीब, अमीर
श्रद्धालुओं को अतिथि देवो भव की परिकल्पना से सेवा, सहकार,स्वागत
,बहुमान किया जाता हैं। आप भी एक बार माँ के दर्शन कर
जीवन को धन्य बनावें।
(माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, तलवाड़ा
कस्बे में है, जो जिला मुख्यालय बांसवाड़ा, राजस्थान
से डूंगरपुर मार्ग पर 15 किलोमीटर दूरी पर हैं। )
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