सागवाड़ा विधानसभा: भाजपा में चेहरा बदलने की मांग तेज़, अनिता के सामने तनी पांच की मुट्ठी!


कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता भीखाभाई की खानदानी सीट मानी जानेवाली सागवाड़ा विधानसभा में भाजपा के तब के उभरते नेता कनकमल कटारा ने वंशवाद के खिलाफ़ बिगुल बजाते हुए अपनी सियासी ज़मीन खड़ी की थी. 


लेकिन, बरसो बाद खुद कटारा के परिवार के ख़िलाफ़ भाजपाइयो ने बिगुल बजा दिया है.  गौरतलब है कि किसी ज़माने में सागवाड़ा सीट पर भीखाभाई और उनके परिवार का एकछत्र सामाज्य रहा था. और सन 1957, 62, 67, 72, 93 और 98 में भीखाभाई जीते. वहीं 1980, 85 और 90 में उनकी बेटी कमला बाई और सन 2008 में भीखाभाई के पुत्र सुरेंद्र बामणिया ने कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की. इस बीच 1977 के चुनावो में लालशंकर ने भी जीत दर्ज की.

साल 2002 और 03 में संघ से राजनीति में आए कनकमल कटारा ने भीखाभाई और उनके परिवार को टक्कर देते हुए कांग्रेस के इस गढ़ को ध्वस्त किया.  भीखाभाई के परिवार के सामने जनता जहाँ नया चेहरा देखना चाहती थी, वहीं राम मंदिर आंदोलन और क्षेत्र में संघ के ज़मीनी कार्यो और राज्यसभा के रूप में मिले कार्यकाल से भी कनकमल कटारा को लाभ हुआ. दूसरी तरफ़ एक बार भीखाभाई के परिवार को दरकिनार कर बाहरीउम्मीदवार ताराचंद भगोरा को टिकट देने के कारण कांग्रेस में अंदरुनी नाराज़गी चली और कांग्रेस यह सीट जीतते-जीतते रह गई. 


कटारा जीतने के बाद काबिना मंत्री भी बने और वागड़ में भाजपा को एक नया चमकता आदिवासी चेहरा भी मिला. विकास को प्रतिबद्ध होकर कटारा ने क्षेत्र में अच्छी पैठ बनाई, लेकिन जातिवाद के आरोपो के चलते उनकी छवि को भारी धक्का लगा और पार्टी में बगावत के सुर बजने लगे.  साल 2013 आते-आते कटारा टिकट पाने की दौड़ में पिछड़ गए और उनके सामने ताल ठोंक दी ओबरी क्षेत्र से आनेवाले उनके ही शिष्य शंकरलाल डेचा (डामोर) ने. साफ़ छवि के शंकरलाल सरपंच, पंचायत समिती सदस्य और सागवाड़ा प्रधान के रूप में काफ़ी लोकप्रिय रहे हैं. वह सभी जातियो में अपनी स्वीकार्यता और विनम्रता के लिए भी जाने जाते हैं. उनकी दावेदारी के चलते साल 2013 के विधानसभा में भाजपा में टिकट वितरण का ज़बर्दस्त घामासन रहा. कुछ ऐसा ही घामासान 98 के चुनाव में कांग्रेसी खेमे में रहा था, जब भीखाभाई के सामने ओबरी क्षेत्र के ही वकील बक्सीराम रोत (पाडलिया) ने टिकट की दावेदारी करते हुए हडकम्प मचा दिया था.

शंकरलाल की चुनौति के बावज़ूद गुलाबचंद कटारिया के वरदहस्त और भाजपा में महिलाओ के लिए आरक्षण के लाभ के चलते कनकमल कटारा 2013 में अपनी बहू अनिता कटारा को टिकट दिलाने में सफल हुए. अनिता के चुनाव जीतने के बाद कुछ महीने सही-सलामत सियासत करती रही लेकिन  इसके बाद ससुर और बहू के बीच मतभेद सतह पे उभरने लगे. और कनकमल कटारा अज्ञातवास में चले गए. इधर अनिता कटारा पार्टी के नौसीखिया नेताओ के सहारे सियासी कमान सम्भाली और अपने राजनीतिक गॉडफादर ससुर कनकमल के सारे पुराने साथियो को दरकिनार करना शुरु कर दिया.  वही उनकी सीट के लिए बलि चढ़े शंकरलाल डेचा को भी अंधेरे में धकेल दिया. वहीं एक और कद्दावर नेता ईश्वर सरपोटा की पत्नी की प्रबल दावेदारी के बावज़ूद वह सागवाड़ा की प्रधान नहीं बन पाई. इस तरह दरारे खाई बनती गई, जिसे अनिता कटारा समया रहते पाट नहीं पाई.

साल 2018 आते-आते सागवाड़ा भाजपा के सारे समीकरण उलट गए और अब जहाँ अनिता कटारा अलग-थलग नजर आ रही हैं वहीं उनके खिलाफ़ पांच दावेदारो ने कमोबेश एक मुट्ठी बनकर, एकजुट होकर मज़बूती से दावेदारी ठोंक दी है. इन के नाम हैं- शंकरलाल डेचा, ईश्वर सरपोटा, कांतिलाल डामोर, जयप्रकाश पारगी और दिलीप कलासुआ. इन्होने पार्टी नेतृत्व से साफ़ मांग की है कि सागवाड़ा में नेतृत्व बदला जाए. अनिता की बजाय हम पांच में से किसी को भी टिकट दिया जाए. पिछले दिनो क्षेत्रपाल मंदिर में आयोजित भाजयुमो सम्मेलन में गृहमंत्री और मेवाड़ के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया के सामने इन पांचो ने मिलकर अपनी मांग रखी,  वहीं उसके ठीक एक हफ्ते बाद विधानसभा में भाजपा के करीब 55 नेताओ, पदाधिकारियो के साथ उदयपुर में फिर से कटारिया के सामने अपनी मांग रखी.

इस बीच चार दिन पहले कनकमल कटारा को भाजपा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाने से तस्वीर और साफ होती जा रही है. साथ ही दो दिन पहले कनकमल कटारा द्वारा सागवाड़ा में भाजपा के चुनाव कार्यालय का उद्घाटन करने के दौरान अनिता कटारा और उनके गुट का नदारद रहना और भाजपा की इस नई मुट्ठी की भागीदारी इशारा कर रही है कि इनको कनकजी का वरदहस्त प्राप्त है और कनकजी इस बार बहू की सीट की कुर्बानी देकर लोकसभा चुनावो के लिए ही ताल ठोकेंगे !

आम चर्चा भी यही है कि भाजपा को सागवाड़ा सीट निकालने के लिए चेहरा बदलना होगा. अब देखना होगा कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व क्या फैसला लेता है. लेकिन सुगबुगाहट साफ़ बताती है अनिता कटारा को टिकट मिलने पर भीतरघात और बग़ावत जरूर होगी. अनिता के खाते में थोड़ा  बहुत सागवाड़ा को चमकानेका श्रेय है तो ओबरी-सरोदा जैसे बड़े बेल्ट की अनदेखी और ज़मीन से कटे नेताओ से घिरे रहने का ठीकरा भी. गौरतलब है कि अनिता कटारा के एमएलए बनते ही डेढ साल के भीतर उनकी कार्यप्रणाली को लेकर काफी असंतोष सतह पे आने लगा था. चाहे जिलाध्यक्ष के चयन का मामला हो या मंडल अध्यक्षो और विभिन्न मोर्चा पदाधिकारियो का मामला. सवाल ये उठता है कि वह इस असंतोष को समय पर क्यो नहीं साध पाई?

दूसरी तरफ़ कांग्रेस से फिलहाल सुरेंद्र बामणिया के अलावा कोई और दावेदार नहीं उभरा है. लिहाज़ा बामणिया और कांग्रेस कार्यकर्ता निश्चिंत होकर जनसम्पर्क, नुक्कड़ सभाओ में पुरे जोर से लग गए हैं. पिछले दिनो राहुल गांधी की सागवाड़ा रैली से भी पार्टी में उत्साह का माहौल बना हुआ है.

- हेंगड़नाथ

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