कृष्णावतार मावजी महाराज एक युग प्रवर्तक सिद्ध संत भी थे
भारतीय संत परम्परा में अनूठा स्थान है 18 वी सदी के संत, समाज सुधारक, दलित-उद्धारक मावजी महाराज का
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संत मावजी |
जब
जब धर्म की हानि हुई और अधर्म का बोलबाला बढ़ा तब भगवान ने भारतवर्ष में स्वयम् या
अपना अंशावतार पृथ्वी पर प्रकट किया । गीता
में श्रीकृष्ण ने कहा है ~
यदा
यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य
तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय
साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय
सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
(श्रीमद्भगवद्गीता,
अध्याय ४)
वैसा
ही हुआ इस प्रदेश में जब 700 वर्षो
की लंबी गुलामी में मुसलमानों, ईसाइयो और अंग्रेजो ने हमारे
देश में धर्म और संस्कृति को नष्ट कर बलात् धर्म परिवर्तन करने का कार्य किया गया।
जिसमें उन्हें कई क्षेत्रो में सफलता मिली, लेकिन धर्म-प्राण
वागड़ क्षेत्र में वो अभियान असफल रहा। क्योंकि भगवान ने वागड़ को अपने अंशावतार के
लिये चुना । भगवान वही प्रगट होते है जहाँ ज्ञान, भक्ति और
वैराग्य का संगम हो ।
अरावली
की गोद में बसे सोम, माही
और जाखम की कलकल करती सरिताओं के इस वाक् वर प्रदेश वागड़ की पुण्यधरा के डूंगरपुर ज़िले के बेणेश्वर
के निकट साबला गाँव में सुनैया पहाड़ी की तलहटी में सिद्धसंत, त्रिकालदर्शी, धर्मरक्षक और श्री कृष्णावतार पूज्य
मावजी का प्रागट्य वि. सम्वत् 1784 में माघ शुक्ला 11 को हुआ । जो तदनुसार 28 जनवरी 1715 को होता है. उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का आंशिक अवतार माना जाता है.
संत
मावजी का जन्म कुलीन सहस्त्र औदीच्य ब्राह्मण दालम ऋषि के घर हुआ था और उनकी माता
का नाम केसर बाई था । उनको ज्ञान अपने पिता से विरासत में मिला था। पर कुछ विद्वान्
उन्हे अनपढ़ भी मानते है। उनके घर का वातावरण ज्ञान और भक्तिपूर्ण था। पिताजी से
बचपन में ही शास्त्रज्ञान, अद्वैत
वेदांत, वैष्णव भक्ति का बीजारोपण किया गया था ।
जन श्रुति व चौपड़ो (ग्रंथो) के अनुसार मावजी महाराज द्वापर युग की अधूरी रासलीला को पूर्ण करने के लिये यहाँ पर उन भक्तो का पुनर्जन्म हुआ जो भगवान के भक्त होने के बाद भी वो गोकुल की लीला से वंचित रह गये थे उन्हें रास लीला करा कर श्री कृष्ण की ही भाँति भक्ति और ज्ञान का दीप जलाया । साथ ही रास लीला और ज्ञान के दीप की लौ को अखण्ड बनाये रखने हेतु आज भी आपके हस्त लिखित चोपड़े और आपकी गुरु गादी न केवल वागड़ बल्कि पूरे माव भक्तो का मार्गदर्शन करते है साथ ही रास की परम्परा आपके भक्त बखूबी अब तक निभाते है ।
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जनजीवन में आज भी संत मावजी की लीलाओ का बखान होता है. इस लेखक द्वारा रचित पुस्तक |
लीलाएँ
संत मावजी की सहजता-सरलता और अनूठी अलौकिक बातों को
शुरुआत में आमजन समझ नहीं पाता था. कई मौजूदा कुरीरियो का विरोध और नए विचारो के कारण उन्हे ‘गांडा’ मानती रही. वागड़ी और गुजराती में भोले-मासूम व्यक्ति
को प्यार से ‘गांडा’ कहा जाता है. और उनको समर्पित भजन की एक पंक्ति भी यही कहती है...
“मावजी
तो गाडो कैवाय महाराज ”
मावजी महाराज बचपन से कई सारे चमत्कार करते हुये अपनी लीलाएँ दिखाते गये । उन्होने वागड़ी भाषा में 750 छोटे-बड़े ग्रन्थ लिखे । उनके द्वारा रचित 5 बड़े ग्रन्थ है जिन्हें चोपड़े कहा जाता है जिसमे मुख्य है साम सागर । जिसका हिंदी अनुवाद भी हो चुका है। इसमें भगवान कृष्ण की तरह ही मावजी महाराज की लीलाओ का वर्णन उसी प्रकार किया गया है।
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मावजी रचित चित्रावली |
“डोरिये
दिवा बरेंगा ”
भावार्थ
– डोरी
पर दीपक जलेगा । मतलब आजकल तारो द्वारा बिजली जलती है।
“परिये
पानी विसायेगा ”
पानी
को नाप-तौल कर बेचा जायेगा । आज मिनरल वाटर बेचा जा रहा है ।
“वायरे
वात थायेगा ”
भावार्थ
– हवा से
बातचीत होगी । वर्त्तमान
में मोबाइल सुविधा का होना
“भेत में
भबुका फूटेगा ”
मतलब
दीवार से पानी निकलेगा । मतलब
नल सुविधा ।
“पर्वत
गरी नी पाणी होसी ।”
मतलब
पर्वत काट दिये जायेंगे और हम देख रहे है मनुष्य के आगे पर्वत पानी बन गये है।
ऐसी
कई सारी भविष्यवाणियों का और पूर्वानुमान की बातो को बताना मावजी महाराज को भगवान
का अवतार सिद्ध करता है।
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मावजी महाराज रचित चित्रात्मक चोपड़े (ग्रन्थ) |
प्रसिद्ध समाज सुधारक राजा राममोहन राय से भी कई पूर्व वर्षो संत मावजी ने सती-प्रथा, छुआ-छूत, नशे और जाती-प्रथा का विरोध किया था. यही नहीं, वह विधवा-विवाह के भी प्रबल पक्षधर रहे.इसके अलावा, उनकी रचनाएँ प्रमाणित करती हैं कि वह एक कवि, राग-रागिनियों में निपुण संगीतज्ञ, ज्योतिष व खगोल-शास्त्र के विद्वान और कुशल चित्रकार भी थे।
मावजी महाराज ने
निष्कलंक सुकनावली बनाई जिसे श्री शुभ वेला पंचांग (वागड़ से संपादित) में हर वर्ष
प्रकाशित किया जाता है । जिसे देखकर आप पूर्वानुमान और खुद का भविष्य खुद देख
सकते है। 64 कोठो
की यह सुकनावली अत्यंत सरल और सटीक है जिसे इस पंचांग के 100 से 103 पृष्ठ पर देख सकते है।
उन्होने
साबला व आसपास के पूरे क्षेत्र को गोकुल~मथुरा माना है जिसे साबलपुरी कहा गया है और बेणेश्वर
को 'वेणु वृन्दावन' कहा है ।
उनके मार्गदर्शन से भावी कल्कि अवतार भगवान निष्कलंक के मंदिरो का निर्माण हुआ था, जो साबला, पालोदा, शेषपुर, पुंजपुर, संतरामपुर आदि जगह मौजूद है ।
आपने
जाति धर्म से ऊपर उठ कर अपने शिष्यों को सभी जातियों में बनाये । आपके अधिकांश
शिष्य आदिवासी, वनवासी
और निर्धन वर्गो के लोग रहे । साद, बुनकर, कलाल, दर्जी और भील आदि जनजाति
व पिछड़ी जातियो पर आपने ख़ूब स्नेह बरसाया और उन्हे शिक्षित-दीक्षित कियाऔर
आपने समाज में फैली नशे की प्रवृति को उपदेशो से मिटाया । आज भी आपके परम भक्त कोई नशा
नही करते है ।
जाति
प्रथा के विरोधी और समरसता के समर्थक
और
स्वयं अन्तर्जातीय विवाह किया । विधवा विवाह का समर्थन किया ।
और
भविष्यवाणी की ~ ऊच नु
नीच होसे नी नीच नु ऊँच होसे ।
मतलब
छोटी जातियों के लोग आगे बढ़ेंगे और उन्हें प्रतिनिधित्व का मौका मिलेगा ।
आप
के चमत्कार भी कम नही रहे है। आप ने डूंगरपुर के गेप सागर के पानी पर चल कर
तत्कालीन राजा को विस्मित कर दिया था ।
मावजी
ने नदी के पत्थरों को नारियल,
पानी को घी और रेत को शक्कर बना कर प्रसाद बना दिया और लोगो को
बांटा ।
मावजी
खुद गाये चराते थे । प्रतिदिन गायो को साबला से बेणेश्वर ले जाते थे ।
संत
श्री मावजी के बारे में अभी भी लोगो और आमजन में पूर्ण रूप से प्रचार प्रसार की
कमी से भगवान के इस अवतार लीला का ज्ञान कम है।
आज
भी मावजी महाराज के चमत्कार देखे और सुने जा रहे है ।
आपकी
शिष्य परम्परा में गुरु गादी में वर्त्तमान गादीपति पूज्य अच्युतानन्दजी महाराज
विराजते है । जिनके मार्गदर्शन में “महाराज पंथ” चलता है । आपके भक्त मावभक्त कहलाते है । जो दक्षिणी राजस्थान के वागड़ क्षेत्र
में ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में फैले हुए हैं. आपका उदघोष जय-महाराज है । जो घर घर बोला जाता है । आपके धाम् बेणेश्वर पर प्रतिवर्ष माघ मास की शुक्ल एकादशी से कृष्ण पक्ष की पंचमी तक 10 दिवसीय मेला लगता है, जिसका पूर्णिमा पर विशाल रूप होता है । जिसे
राजस्थान का कुम्भ कहते है । यह राजस्थान का एक सबसे बडा मेला है जिसमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि से
माव भक्त भाग लेते हैं.
मूल सामलिया, डूंगरपुर निवासी लेखक ज्योतिष मार्तण्ड, शुभवेला पञ्चाङ्ग के संपादक हैं.
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