गायत्री धाम सागवाड़ा में हुआ ‘दिया’ का संस्कार शिविर
उत्कर्ष – 2019
सम्पूर्ण भारतवर्ष में वर्षो से संस्कृति ज्ञान की परीक्षा सम्पन्न करने वाले गायत्री परिवार और युग निर्माण मिशन ने बालकों में संस्कारवान, चरित्रवान और तेजस्वी जीवन की अनुपम पहल प्रारम्भ की । इस हेतु बाल मन में मूल्य अध्यारोपित कर उनको सुसंस्कारित बनाने का बीड़ा उठाया है ।
योग करते बालक के साथ योग शिक्षक |
वर्तमान समय सभी के लिए चुनौतीपूर्ण है । अथक
परिश्रम व पुरुषार्थ के बाद भी संतोष और
खुशी के पल यदा कदा ही देखने को मिलते हैं । ऐसे में घर परिवार का वातावरण
सौहार्द्रपूर्ण रखना एक चुनौती है। इसी
आपाधापी में हमारे लिये बच्चों के लिए समय न निकाल पाने के कारण उनके पास समय गुजारने के साधन के रूप में मोबाईल, टी वी अथवा
लेपटॉप के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रह जाता ।
इन सबके कारण बच्चों का जीवन मूल्यों से परे दिखाई देने लगा है । साथ-साथ खाना, खेलना,
सीखना, पढ़ना, चर्चा करना
आदि का अभ्यास न होने के कारण बाद में जाकर यही एकाकी जीवन नीरस और बोझिल लगने
लगता है । “उत्कर्ष”
के माध्यम से प्रतिवर्ष यही
प्रयास किया जाता है कि भावी पीढ़ी उन गुणों का अभ्यास कर सके जो जीवन जीने की कला
के रूप में जाने जाते हैं।
क्या है उत्कर्ष ?
व्यसन और कुरीतियों से परे खुशी और आनंद, परस्पर सहकार, अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्य को अधिक महत्व, भारतीय
संस्कृति के आधारभूत तत्वों (रामायण, गीता, यज्ञ, महाभारत) के दर्शन की झलक, हताशा, निराशा, तनाव से बचाव आदि
विषयो पे केंद्रित रहा ये “उत्कर्ष”
।
सभी शिविरार्थी और प्रशिक्षण कर्ता बन्धु |
विभिन्न रोचक, खेल व प्रेरणादायक गतिविधियों से
सुसज्जित यह शिविर बच्चों के लिए यादगार व जीवन मे प्रेरणादायक साबित होगा।
युग निर्माण, गायत्री परिवार, प्रज्ञा अभियान अखंड ज्योति, दिव्य भारत युवा संघ ( दिया ) जैसे सभी नाम एक दूसरे के पर्याय है। उनकी सूक्ष्म ऋषि चेतना विविध माध्यमों से देश मे जन जागृति ला रही है । इसी प्रयास में शिविर उत्कर्ष 2019 रहा। शिविर के दौरान बालकों के 6 दल बनाकर उनको बांटा गया जिसके नाम - गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, जमदग्नि, विश्वमित्र, कश्यप आदि रखे गए , विविध गतिविधियों के माध्यम से शिविरार्थीयो को निखारने के अनुपम प्रयास किए गए -
1. उद्गाटन सत्र में श्री भूपेंद्रजी पंडया
द्वारा विद्यार्थी जीवन में संस्कार, प्रज्ञा, ध्यान, कर्मकांड व वेदमाता गायत्री की शक्ति व
भक्ति का महत्व समझाया ।
2. गायत्री परिवार , पंडित
श्री राम शर्मा आचार्य व उनके उद्देश्य , युग निर्माण क्या
है ? इस विषय पर धीरज यादव ने बालकों को अपनी वार्ता देकर
लाभान्वित किया ।
संस्कार , चरित्र और संस्कृति पर वार्ता देते हुए - राजेन्द्र पंचाल |
3. जीवन में चरित्र , संस्कार और संस्कृति का आपसी तालमेल, सुसंस्कारित और
चरित्रवान कैसे बनें ? इस विषय पर श्री राजेन्द्र पंचाल सामलिया द्वारा वार्ता दे कर बालकों की
विविध उदाहरणों व रोचक प्रसंगों के माध्यम
से प्रेरित किया ।
प्रश्नोत्तर कार्यक्रम - रामायण, महाभारत,
आध्यत्मिक व संस्कृति के विविध प्रश्नों द्वारा छात्रों में
जिज्ञासा व ज्ञान का प्रादुर्भाव किया । धर्मेश भट्ट ने इसमें विशेष कार्य किया ।
ध्यान - प्रातःकालीन वेला में प्रतिदिन एक घण्टा
ध्यान करवा कर बालकों में ध्यान के माध्यम से एकाग्रता का अभ्यास करवाया गया ।
योग - प्रातः कालीन वेला में एक घण्टा प्राणायम, अनुलोम-विलोम,
कपाल भांति व आसन व कसरत आदि के द्वारा उन्हें शारीरिक रूप से
स्वस्थ रहने का पाँच दिवस अभ्यास करवा कर प्रतिदिन अपनाने हेतु प्रेरित किया।
संदीप जोशी द्वारा योग के महत्व पर वार्ता भी दी गई।
समापन सत्र का फोटो |
चित्र कला - बालकों में कला व क्राफ्ट के विकास
हेतु धीरज शर्मा द्वारा प्रायोगिक कार्य करवाया गया ।
खेल खेल में सीखें - पुनीत पंडया द्वारा प्रतिदिन
इन बालकों को खेलों के माध्यम से बौद्धिक व मानसिक विकास करने की कला विकसित करवाई
गई ।
अन्य वार्ता व प्रवचन इस प्रकार रहें -
श्री डायालालजी पाटीदार पाडवा ने आत्मविश्वास ।
श्री दीपक जी जोशी ने उपासना व साधना का महत्व
बताया ।
श्री धवल ठाकुर ने आदत, अभ्यास व
व्यक्तित्व विकास पर चर्चा की ।
श्री गुंजन पुरोहित ने आदर्श दिनचर्या को प्रस्तुत
किया ।
उपेंद्र भट्ट ने जीवन जीने की कला पर प्रकाश डाला
।
बन्धु भट्ट ने वर्कशोप करके विविध आयामों को
सिखाया ।
इस प्रकार दिनांक - 13 से 17 मई 2019 तक चलने वाले पूर्ण आवासीय शिविर में 65 बालकों को अनेक प्रकार से कलाओं द्वारा निखारने का सम्पूर्ण प्रयास किया
गया। समापन में लक्ष्मीशंकरजी जोशी व नारायण जी
पंडया का सानिध्य रहा। इस दौरान कांतिलाल जी पाटीदार नोगामा ने बालकों को आधुनिक
संस्कृति में किस प्रकार समायोजित होना है व अपसंस्कृति से कैसे बचें पर सुंदर
तरीके से समझाया।
बालकों ने समापन में अपने सुझाव साझा किए, सीखे गए योग का
प्रदर्शम किया व दिनचर्या पर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस दौरान नाटक, संगीत व समुहगीत प्रस्तुत किए गए।
गायत्री यज्ञ सीखते बालक |
शिविर में भाग लेने वाले बालकों के अनुभव -1. देवांश व्यास ने बताया की मैं हमेशा प्रातः देरी से जगता था अब सुबह जल्दी उठने की आदत बनी , नए मित्र बने , नए भजन सीखने मिला । अब मेरी टीवी व मोबाईल में रुचि कम हो गई है ।
2. रूपेश पांचाल सामलिया के अनुसार - यह शिविर मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन अनुभव रहा, मैने यहां लीडरशिप सीखी क्योंकि मैं मेरे वशिष्ठ दल का लीडर था। मुझे वार्ताओं के माध्यम से काफी नई बातों का ज्ञान मिला ।
इस प्रकार के शिविर वास्तव में बालकों में नवीन
ज्ञान, शक्ति, प्रेरणा, आदर्श और
मूल्यों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है अवकाशकालीन सत्र में बालकों के
लिए आत्मविश्वास, संस्कार निर्माण और चरित्रवान बनने के लिए
यह एक मृतसंजीवनी बूटी के समान है । जिसका आयोजन गायत्री परिवार प्रतिवर्ष दिया
ग्रुप के माध्यम से करवाता है जो पूरे देश में गायत्री धामों पर आयोजित होते है।
अवश्य ही बालकों को जोड़ कर इस मिशन के माध्यम से सुसंस्कारिता, आस्तिकता, मानवीयता के साथ बहुआयामी उद्देश्य इस
वसुधा पर निर्माण होंगे।
नमोअस्तु गुरुवे तस्मै गायत्री रुपिणे सदा ।
यस्य वागमृतं हन्ति विषं संसारसंज्ञकम ।।
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