जिस मंदिर ने गाँव को पहचान दी, डूंगरपुर ज़िले का वह इकलौता सूर्य मंदिर बदहाली के अंधेरे में

शैव,  वैष्णव, शाक्त पूजक वागड़ धरा में सूर्योपासना का अतीत भी मिलता है. वागड़ अंचल में भगवान सूर्यनारायण को समर्पित अब तक सिर्फ़ दो मंदिर मिले हैं. इन में एक बांसवाड़ा ज़िले के तलवाड़ा कस्बे में है, तो दूसरा डूंगरपुर ज़िले के सूरजगाँव में है.  

इसे जन जागरुकता की कमी कहें या शासन- प्रशासन की अनदेखी, लेकिन सूरजगाँव का ये दुर्लभ और पुरातात्विक महत्व का मंदिर आज एक खंड़हर में तब्दील हो चुका है और अब महज़ उसके अवशेष ही नज़र आते हैं.  और कभी सूरजगाँव को उसका नाम देने वाली ये विरासत दिन ब दिन खुर्द-बुर्द हो रही है.  


राजस्थान के दक्षिणांचल वागड़ के डूंगरपुर ज़िले की सागवाड़ा तहसील और भीलूडा गांव से करीब 10 किमी दूर, सुप्रसिद्ध क्षेत्रपाल मंदिर से करीब 3-4 किमी और गोरेश्वर शिवालय से करीब 3 किमी फासले पर मोरन नदी के तट पर बसे सूरजगाँव की एक पहाड़ी पर है ये सूर्यमंदिर.

इन्ही सूरज बाबा के नाम पे आबाद हुए सूरजगाँव के बसने की कहानी भी दिलचस्प है. बात उस दौर की है जब वागड़ की राजधानी गलियाकोट हुआ करती थी.  उस वक़्त सूरजदेवी नामक रानी यहाँ से गुजर रही थी, तभी वहाँ सूर्योदय की रश्मियाँ बिखरी तो उस उजाले में मोरन नदी के तट के इस रमणीय स्थल से अभिभूत होकर सूर्यदेवता का मंदिर बनवाया था.


प्रसिद्ध शिवालय गोरेश्वर और माही-मोरन नदियों के संगम के समीप बसे सूरजगाँव का यह मंदिर आबादी क्षेत्र में होने के बावज़ूद आबाद नहीं है. खंडहर बताते हैं कि इमारत बुलंद होगी की तर्ज़ पर प्रतीत होता है कि यहाँ कभी भव्य मंदिर हुआ करता था.  फिलहाल इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नही है. ज़्यादातर विग्रह और प्रतिमाएँ खुर्द-बुर्द हो गई हैं या उपेक्षा के चलते तस्करों का शिकार बन गई हैं.

सूर्य मंदिर की ऐतिहासिक धरोहर की सूरत-ए-हाल बयाँ करता वीडियो देखने यहाँ क्लिक कीजिए

अभी बस मंदिर का जर्जर ढाँचा खड़ा है, जिसके आगे के हिस्से में आठ खम्बों पर टिका एक गुम्बद है वहीं पीछे के भाग में एक गर्भगृह जैसी कोठरी सी बनी हुई है. जिसके अंदर तीन तरफ देवी देवताओं की प्रतिमा होने के चिन्ह मौजूद है. कई जगह मूर्तियाँ निकली होने के निशान दीवारों पर बने हुए हैं. लिहाज़ा मंदिर और प्रतिमाओ का कालखंड़ निर्धारित करना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन अभी भी वहाँ मौज़ूद खम्भे, तोरण आदि की कलात्मकता हमारा मन मोह लेती है.


गाँव के ही निवासी शिक्षाविद नर्मदाशंकर व्यास बताते हैं कि, भग्नावशेष मंदिर के आस-पास बड़ी-बड़ी ईंटे निकलती रहती हैं. मंदिर का निर्माण भी पारेवा पत्थरों के स्तम्भो, मेहराब के साथ-साथ टेराकोटा ईंटो से बना प्रतीत होता है. पुरातात्विक विभाग अगर इस पर नज़रे इनायत करे तो इस मंदिर परिसर पर नई रौशनी पड़ने की सम्भावना है.


सुखद बात ये है कि, अपनी इस विरासत को बचाने के लिए गाँव के युवा काफ़ी उत्साहित हैं. कुवैत में रहते हुए भी इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए चिंतित एनआरआई युवा राजेश प्रजापति बताते हैं कि, सूरजगाँव की इस पहचान को आबाद करने के लिए इस मंदिर को तो विकसित किया जाना ज़रूरी है ही, मंदिर परिसर में सामुदायिक भवन, पार्क आदि बनाने के लिए भी पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं. और इसके लिए वरिष्ठजनो के मार्गदर्शन में युवा टीम प्रतिबद्ध है.

एक किवदंती ये भी है कि, इस सूर्य मंदिर से करीब 15 किमी दूर ओबरी कस्बे के सूर्य कुंड से भी नाता है. हालाँकि इसका कोई दस्तावेज़ी साक्ष्य नहीं मिला है.

कभी अपने उजले वैभव का साक्षी देता ये मंदिर आज खुद अंधेरे में है और समाज व सरकार की सोच व सुध-बुध पे सवालिया निशान लगा रहा है. लेकिन ग्रामीणों की जागरुकता से इस दुर्लभ सूर्यमंदिर की शान वापस लौटने की उम्मीद ज़रूर जगी है.

आलेख~ जितेंद्र जवाहर दवे | फोटो: हर्षद रोत, खड़गदा  

5 टिप्‍पणियां

Unknown ने कहा…

ईश्वर करे
आज के नेताओ को अक्ल दे, पुरखों की अमानत को आबाद करने वाले को प्रोत्साहित कर आगे छानबीन में सहयोग प्रदान करे

Ashok Sunvillage ने कहा…

Bahut hi shandar post ki aapne Harshad ji

Unknown ने कहा…

जरूर बनना चहिये और हम जैसे युवा भी इसमें जरूर हाथ बढ़ाना चाहेँगे.

Unknown ने कहा…

यह सूर्यमंदिर वागड़ की धरोहर है हमे इसे पुनर्जीवित करना चिये जय श्री राम

animesh purohit ने कहा…

आपको साधुवाद....इस काम को मूर्त रूप देवे ...भगवत् कृपा से मेरा यथेष्ट सहयोग रहेगा....ॐ सूर्याय नमः, जय महादेव🙏🌷🙏