जंगल के बीच कई रहस्य समेटे देवीस्थल और तपोभूमि-पाडवा के गुफा बावसी


            -  राजेंद्र पंचाल, सामलिया

वागड़ धरा कई सिद्ध अवधुतो, अघोरियो, साधु-संतो की तपोभूमि भी रही है. दक्षिणी राजस्थान का यह इलाका प्रकृति और पहाड़ो का संगम होने के नाते आत्मज्ञान के जिज्ञासुओ, मुमुक्षुओ और तपस्वियो को भी आकर्षित करता रहा है.

एक ऐसी ही तपोस्थली है डुंगरपुर ज़िले के पाड़वा गांव के पास सामलिया और  पाडवा के बीच गुफा बावसी की धुणी. जहाँ माँ जगदम्बा भी विराजमान हैं.
गुफा में माँ की अनगढ़ प्रतिमा 
सामलिया- पाडवा सडक पर सीबी घाटी में वीरान पहाड़ियो के बीच मौज़ूद है यह पावन और गोपनीय गुफा मंदिर. पाडवा से 2 किमी और सामलिया से 3 किमी दूरी पर यह जमीन स्तर से करीब 150 फीट ऊंची है. जहां तक पहुँचने के लिए अब सीसी सड़क भी है और सामुदायिक हाल भी है, जो छोटे- मोटे कार्यक्रम में उपयोग होता है.
माना जाता है यह देवी विजवामाता का स्थान है. इस स्थान पर देवी के स्वरूप का पता 17 वीं शताब्दी के अंत में संत गाडाघरजी ने लगाया था. कहते हैं संत गाड़ाघरजी पहुँचे हुए संत थे. वे आत्मज्ञानी और चमत्कारी सिद्ध पुरुष थे. उन्होने 12 वर्ष तक इस गुफा में योग साधना की थी. इसलिए यह स्थान साधना व तप की दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गया. गाड़ाघरजी महाराज को लोगो ने उस गुफा में तप करते हुए देखा था उनके शरीर पर साँप की बांबी हो गई थी. जब इस तपस्वी के बारे में लोगो को पता चला तब उन्होंने उनको आदर पूर्वक ले जाकर पाडवा में बसाया और वहां भी एक मठनुमा स्थान बनाया,  जिसे आज भी गाडाघरजी की धूणी कहते है.
गुफा का प्रवेश द्वार 
कहते है वो जाती से लुहार थे , इसलिए उन्होंने अपनी धूणी लुहारों की बस्ती में बनाई थी. कभी मौज में होते तो अपने चमत्कार से लोहे के औजार, हसिये, कुल्हाड़ी आदि को किसान लोग टिपवाने (धारदार बनाने) लुहारों के पास  आते तो उनके दर्शन करते तो मौज मस्ती में वो बिना किसी सहारे केवल हाथ घुमा कर इन किसानों के औजार की धार बना देते ! 
वे खाली थाली के ऊपर कपड़ा रह देते और फिर उसमें प्रसाद बन जाता. सूखे में शंख बजाकर बारिश कर देते, तो बाढ़ में शंख बजाकर बारिश बन्द कर देते थे!! 
गुफा में धुणी स्थल 
उनके चमत्कारों के कारण लोग आकर्षित होने लगे. बावसी के  बारे में कई किस्से प्रचलित हैं. पाडवा की धूणी पर लंबे समय रहे, पर एकांतवासी मलंग होने के नाते कुछ समय बाद वहां से धौलागढ़ जयसमंद चले गए. वहां से विहार करते करते वे सलूम्बर कस्बे आ पहुँचे.  माना जाता है सलूम्बर के पास आपने अपनी धूणी डाली और तप किया. उस समय औरंगजेब कत्ले-आम व लूटपाट करने आया था तो सलूम्बर नरेश ने गाड़ाघर बावसी से मदद मांगी थी. तब बावसी ने रात को मिट्टी की तोप बनाई और धूणी की राख से गोले बनाए. औरंगजेब की सेना पर अपने तप के बल से गोले चलाए. फिर औरंगजेब की सेना रातों-रात वहां से भाग गई! दूसरे दिन राज परिवार और आम जनता ने महाराज गाड़ाघरजी को हाथी पर बैठा कर जुलुस निकाला. मगर प्रसिद्धि से दूर रहने और एकांतप्रिय बावसी वहां से भी चले गए. कुछ लोगो का मानना है की उदयपुर के पास डबोक में लुहार बावसी की धूणी को अपना साधना केंद्र बनाया.
पाडवा की गुफा बावसी के इस सिद्ध स्थान के आज भी चमत्कार और लाभ लोगों को मिल रहा है. दोनों नवरात्रि में यहां मेले की तरह लोगों का आगमन रहता है. हाँलाकि साधना और सैर के लिए उपयुक्त इस स्थान का विकास नही हो पाया है. यह पाडवा ओड के जंगल वाले इलाके में स्थित है यहां बहुतायत में नील गायें व जंगली जानवर भी काफ़ी देखे जाते है.

धुणी पर भक्तगण व ग्रामीण
इसमें गुफा के दो भाग है जहां मन्दिर के पास दूसरा भाग है वहां अंदर गहराई तक गुफा जाती है. कहते हैं यह गुफा जयसमंद घोलागढ में निकलती है. लेकिन यह बहुत संकरी गुफा है. जो छोटा दरवाजा है ध्वज के बीच मे दिख रहे है वो उसके अंदर गुफा है । जो दरवाजे लगा कर अब बन्द कर दिया है जो 10 साल पहले तक खुला था.

माँ के इस दिव्य स्थान की तांत्रिक महिमा भी है.  तंत्र साधना के ज्ञाता सामलिया के स्व. धूलजी भाई पंचाल के अनुसार यह स्थान बाहर से भले छोटा है पर गुफा के अंदर विशाल मंदिर है, जिसका अनुभव उन्होंने अपने जीवन काल मे किया था. धूलजीभाई पंचाल हर पूर्णिमा को वहाँ दर्शन करते थे. एक बार पूर्णिमा को वो वहां पहुचे तो कई सारे साधु वहां गुफा के बाहर बैठे थे पर गुफा में दर्शन कर वापस बाहर आए तो सभी ग़ायब थे. ऐसे चमत्कार कई लोगों ने देखे है. पहले यहाँ भैसे, गाय और ऊँट आदि पशु घूम जाते थे तो लोग बाधा लेने आते थे और मिलने पर मिट्टी के बनाकर चढ़ाते थे । माँ के इस स्थान पर जा कर विशेष ऊर्जा और शांति मिलती है.

भंड़ारे के दौरान पधारे बड़लिया धुणी के महंत डॉ.प्रकाशनाथ के साथ लेखक व अन्य
आप अगर साधना या स्वाध्याय के लिए शांत जगह की तलाश में हैं तो ये सबसे बढ़िया जगह है. नवरात्र और रविवार को आप पधार कर दर्शन का लाभ ले सकते है. इस स्थान के विकास में पाडवा के भक्तों का खासा योगदान रहा है.  


राजेन्द्र पंचाल सामलिया 
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2 टिप्‍पणियां

Unknown ने कहा…

Himanshu prajapat

बेनामी ने कहा…

जय गुफा धोनी