हर महायात्रा के ग़म में शामिल होता है सामलिया का ये काला कुत्ता !


आप सोचते होंगे कि, मोक्ष धाम की ओर प्रस्थान करती अंतिम यात्रा में भला कुत्ते का क्या काम? लेकिन याद कीजिए योगेश्वर श्रीकृष्ण जब महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अपने धाम लौटे थे तो उनके साथ कुत्ता भी था..
खैर, आज हम आपको डूंगरपुर जिले के सामलिया गांव के एक ऐसे ही समझदार कृष्ण वर्णी कुत्ते से मिलवाते हैं, जो लोगो की अंतिम यात्रा और उनके गम में शामिल होकर मानवधर्म निभाता है!  
वागड़ में कहावत है कि,भले ताजे मौके नकी जाओ, पण बुदे मौके जरूर जावु” यानी किसी की ख़ुशियो में भले ही शामिल ना हो सको, लेकिन दुख में जरूर शामिल होना चाहिए. यह काले रंग का कुत्ता भी शायद इसी बात की मार्मिकता को समझता है! 


इंसान में पूर्व जन्म के संस्कार होते है जिससे वह इस जन्म में विशेष प्रतिभा का परिचय देता है । कभी कभी इंसान कुछ नया हट कर करता है चाहे वो उस व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि में हो या न हो परंतु वह संगीत में हो या लेखन में हो या वाकपटुता हो अथवा सहयोग की भावना हो या सामाजिक सेवा हम कुछ लोगों में जुनून की तरह देखते है । 

ये बातों इंसानों में हो तब सब मानते है पशुओं में हो तब हमें विश्वास ही नही होता है । वैसे पशुओं में गायों में घोड़ो , पंछियो में तोते, गिद्ध, कबूतर, कुत्तों अथवा बिल्लियों, गिलहरी आदि के हमने कई उदाहरण सुने है जो स्वामी भक्ति, अथवा विशेष समझ या विशेषता का परिचय देते है । 


ऐसा ही उदाहरण एक सामलिया गाँव में देखने मिला । यहाँ एक विचित्र कुत्ता है जो विगत एक डेढ़ वर्ष से गाँव की शमशान यात्रा में साथ-साथ जाता है, चाहे मृतक अमीर हो या गरीब, या किसी भी जाति का हो!  
यह कुत्ता न ही किसी ने पाला है अथवा न ही कोई इसका मालिक है । फिर भी हर किसी की श्मशान यात्रा में गाँव के चौराहे से शामिल हो जाता है वहां से साथ साथ चलता है जब सारे लोग श्मशान यात्रा के दौरान स्नान व सारे क्रिया कर्म करते है वह वही श्मशान घाट पर बैठ जाता है । जब सभी लोग वापसी करते है तब वह साथ मे वापसी करता है । खास बात तो यह है की वहां न कोई खाने के लिए आता है न ही कही इधर उधर गायब हो जाता है । न ही आते समय दौड़ता है बल्कि वैसे ही चलता जैसे कोई समझदार आदमी  श्मशान यात्रा में आता है जाता है । इस तरह वह मृत्यु और अंतिम यात्रा के पलों को भी हल्का फुल्का और सहज बनाने में योगदान देता है.

जब सारे व्यक्ति वापसी के समय गाँव के बाहर हनुमानजी मन्दिर पर बैठते है वह भी बैठता है । उसके बाद गाँव के बीचों बीच राम मंदिर चौराहे पर रुकते है तब वह उन आदमियों के साथ चौराहे के ऊपर बैठ जाता है। फिर जब मृतक के घर जब सभी श्मशान यात्री पहुचते है तब वह वहाँ भी मृतक के घर जा कर काफी समय बैठता है । ये सिलसिला उसका अनवरत है । न जाने किस जन्म के कर्म को यह कुत्ता बखूबी निभाता है । ये भी हो सकता है कि जीते जी किसी की शव यात्रा में नही गया होगा तो यमराज ने सजा दी होगी जा अब तू भले मनुष्य नही  है पर कुछ बरस गाँव की श्मशान यात्रा कर । क्योंकि श्मशान जैसी पवित्र भूमि कही नही है क्योंकि इंसान में राग द्वेष, लाभ हानि, मोह माया को इंसान वहां जाकर भूल जाता है । 
नाथ सम्प्रदाय में साधु बनने वालों का नियम होता था की 6 माह तक अथवा 100 लोगो के मृत्यु पर श्मशान की यात्रा करके  वैराग्य पैदा करके साधु-महात्मा बनने का गौरव मिलता था ऐसी परम्परा रही है उनकी, ऐसा कोई साधना करते व्रत के दौरान मृत्यु प्राप्त पुण्यात्मा अपना व्रत कर रहा हो । खैर चिंतन के दौरान कही बातें आ सकती है पर सामलिया का यह कुत्ता निश्चित ही एक संजोग मात्र बन रहा होगा ऐसा मान भी ले तो भी आमजन को एक संदेश देता है की श्मशान यात्रा भी हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार की वह कड़ी है , वह संस्कार है जिसमें परिवार को सम्बल देने के साथ साथ एक मानव धर्म को पूरा करता है जिसको  मन से हर व्यक्ति को सांमान्य परिस्थिति में निभाना पड़ेगा । 

पर आज के युग मे इंसान केवल बदले की भावना, स्वार्थ, भौतिकवाद , विलासिता और मॉडर्न बनने के चक्कर में अधिकार तो याद रखता है पर कर्त्तव्य भूल जाता है।
काश इन पशु पक्षियों से मानव कुछ सीखें और परोपकार की भावना के साथ सर्वे भवन्तु सुखिनः की धारणा बनी रहे है । 


- राजेन्द्र पंचाल सामलिया
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1 टिप्पणी

बेनामी ने कहा…

मैं भी बहुत बार देखा है श्मशान भूमि जाता