माही के कारण पुराणो में वागड़ को माहेय प्रदेश कहा गया



 वागड़ की जीवनधारा माही नदी   
-- डॉ. श्रीकृष्‍ण जुगनू
हमारे मन में पौराणिक वागड़ के बारे जानने की जिज्ञासा हमेशा बनी रही है. इतिहास के उस दौर में कैसा था वागड़? क्या था उसका नाम? क्या संस्कृति और सभ्यता रही होगी,  जनजीवन कैसा था? वागड़ के इन्ही अनछुए पहलुओ पे प्रकाश ड़ाल रहे हैं डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू 

वागड़ दक्षिणी राजस्‍थान का वह क्षेत्र है, जिसको पुराणकारों ने 'माहेय' प्रदेश के नाम से जाना था। यहां माही जैसी महान नदी नित्‍य प्रवाहमान रही है। इसी कारण इसे माहेय कहा गया है। बहुत सुंदर नाम है यह, बिल्‍कुल गंगा के तटवर्ती गांगेय और वितस्‍ता से वितस्‍तेय... की तरह। नदियों के नाम पर प्रदेशों के नामकरण की ऐसी सुंदर परंपरा का दिग्‍दर्शन कराने 
वाला एक अनूठा, अजूबा और अद़भुत प्रदेश है यह। 

 चीनी यात्री ह्वेनसांग 
क्‍या नदियां और क्‍या संगम। जिन संगमों को देखकर प्रयाग के तीर्थराज की परिकल्‍पना की गई, वैसा ही 'वेण्‍य' यहां भी है, जिसे वेणेश्‍वर नाम दिया गया है। मंडन के 'देवतामूर्तिप्रकरणं' में यह नाम भी आया है। (श्रीकृष्‍ण जुगनू संपादित देवतामूर्तिप्रकरण, दिल्‍ली, 2004; चतुर्थ अध्‍याय, शिवमूर्ति अधिकार)

चीनी यात्री ह़वेनसांग ने छठवीं सदी में भारत यात्रा का विवरण लिखते हुए कहा है कि मालवा के साथ ही माही नदी का यह प्रदेश भी जुडा हुआ है, जहां बौद्धों के साथ ही अबौद्ध लोग भी कम नहीं बसते हैं, उसका विवरण इतना सजीव है, मानों आंखन देखी लिख रहा हो। सच ही लगता है कि उस काल तक यहां बौद्धों का पगफेरा था और वनवासियों के बीच उन्‍हें धार्मिक परिवर्तन की ज्‍यादा गुंजाइश नहीं लग रही थी। (मेरा लेख - दैनिक भास्‍कर, बांसवाडा संस्‍करण प्रवेशांक, 31 मई, 2004 ई.)

गुप्‍तकाल के आसपास संपादित मार्कण्‍डेयपुराण में पश्चिम भारतीय प्रदेशों का परिचय बहुत उदारता के साथ दिया गया है। अरावली पर्वत जिसे तब पारियात्र कहा गया था
से निकलने वाली माही ने इस प्रदेश में बसाहत और राज्‍य की संभावनाओं के द्वार खोले हैं। पुराणकार ने कहा है कि यह अन्‍य नदियों की तरह पवित्र है, परंपरा से यह समुद्र से मिलती है यह जगन्‍माता है, इस श्रेष्‍ठ नदी का जल पीने वाले धन्‍यभाग है...। 

इसके प्रदेशों में सोपारा, कलिबल, दुर्ग, अनीकट, पुलिंद, सुमीनी, रूपप, श्‍वापद, कुरुमीन, कठाक्षा के साथ माहेय की गणना है। यहां भारत की महिमा में यह कामना भी की गई है कि देवता भी ये कामना करते हैं यदि वे कभी अपनी योनि‍ से भ्रष्‍ट हो जाएं तो वे चाहेंगे कि ऐसी नदियों से सिंचित भारत में मनुष्‍य रूप में जन्‍म लेना चाहेंगे... वाह। क्‍या प्रदेश है, लिखने वाले ने शायद इस महिमामय माहेय के माहात्‍म्‍य को जी कर लिखा है... नमन।


डॉ. श्रीकृष्‍ण 'जुगनू' 
वरिष्ठ लेखक, इंडोलॉजिस्ट एवं शोधकर्ता 

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