डूंगरपुर शहर में है वागड़ का एक सबसे पुराना खोडियार माता का मंदिर

 मुकेश द्विवेदी 
खोड़ियार माता के ज़्यादातर मंदिर वागड़ अंचल से सटे गुजरात में हैं, लेकिन मेवाड़-मालवा- गुजरात की संगम स्थली दक्षिणी राजस्थान का वागड़ भी प्राचीन काल से देवी खोड़ियार का उपासक रहा है. 
माँ खोडियार का निर्माणाधीन कलात्मक मंदिर
खोडियार माता का एक ऐसा ही मंदिर डूंगरपुर शहर के पुराने हिस्से सूरजपुर मोहल्ले (वर्तमान में दर्जी वाड़ा) में है जो 355 वर्ष पुराना है. यह शायद वागड़ में सबसे पुराना खोड़ियार माता का मंदिर है. 
महारावल गिरिधर दास के समय विक्रम संवत 1717 आसोज सुद 8 (सन 1660) के दिन खुले चबूतरे पर मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई थी. 
सदियो पुराना खोडियार माता का विग्रह
मोहल्ले के पास ही पन्नालाल जी दोषी (जैन) का मकान था, वह खोडियार माँ के परम-भक्त थे और माँ की नियमित सेवा, अर्चना करते थे. आज उनकी चौथी पीढ़ी महेंद्र दोषी, विनोद दोषी भी पूर्ण लगन और श्रद्धा से माँ की सेवा-चाकरी में लगे हुए है और परिवार की परम्परा का निर्वाह कर रहे है.
सन1928 में पन्नालाल जी दोषी ने मंदिर का निर्माण कराया था. और सन1965 से मोहल्ले के दर्जी, पंचाल एवम सोनी समाज के भक्तों द्वारा गरबों का महोत्सव मनाया जाने लगा. इस तरह यह शहर के सबसे पुराने गरबो में से एक है.
पुराना मंदिर, जो अब भरतपुरी पत्थरो से नया बन रहा है 
खोडियार माँ लोकदेवी होने के साथ ही राठौड़ वँश की उपास्य देवी भी है. इस मंदिर में नवरात्रि के दिनों माँ का विशेष श्रृंगार दर्शनार्थियों के आकर्षण का केंद्र रहता है.
किसी ज़माने में स्वर्गीय सुरेश जी पंचाल के द्वारा श्रृंगारित आंगी को दर्शनार्थी एक टक निहारते रहते थे उनके बाद उनके बड़े पुत्र मुकेश पंचाल अपने पिता की शृँगार-साधना की इस विरासत को सम्भाले हुए हैं. 
नए मंदिर का एक और फोटो
वर्तमान में मन्दिर जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है, भरतपुरी पत्थरों से नक्काशी झरोखों से नवीन मंदिर लगभग तैयार होने को है और फरवरी 19 में पूर्ण विधान से मूर्ति यथा स्थान स्थापित होगी.  

मुकेश द्विवेदी,  डूंगरपुर के वरिष्ठ फोटोजर्नलिस्ट हैं 
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