वकालात छोड़कर वंचितो की सेवा में समर्पित रहे, सरकारी वज़ीफा ठुकराने वाले स्वतंत्रता सैनानी व सागवाड़ा के पहले प्रधान शंकरलाल जी शर्मा
- राजेंद्र पंचाल सामलिया
हम
सभी जानते हैं कि, आजादी के आंदोलन में राजस्थान का दक्षिणांचल वागड़ काफ़ी सक्रिय रहा. भोगीलाल
पंडया, हरिदेव जोशी, गौरीशंकर उपाध्याय, शंकरलाल फलोजिया, लालशंकर जोशी वमासा, विष्णु भाई डामडी, शिवलाल कोटडिया, बनवारी लाल मेहता से लेकर गोविंद गुरु, भीखाभाई, नानाभाई खांट समेत कई अनाम विभुतियों ने अहम भूमिका निभाई.
इसी में एक नाम था शंकरलाल शर्मा (भट्ट)। सामलिया मूल के शंकर लाल जी राजस्थान सेवा संघ की डूंगरपुर शाखा के आप अध्यक्ष भी रहें । कॉलेज के दिनों से राजनीति में सक्रिय रहते हुए कार्य किया, 1946 में जब प्रजा मंडल अधिवेशन डूंगरपुर में रखा गया था तब आप सक्रिय सदस्य एवं मुख्य कार्यकर्ता रहें थे ।
आप की शिक्षा दीक्षा आजादी से पूर्व
डूंगरपुर व उदयपुर से हुई थी बाद में आप ने मुंबई से वकालत की डिग्री भी प्राप्त
की थी । एक बार उनसे मेरी चर्चा हुई तो उन्होंने बताया था कि, वह कॉलेज पढ़ने
उदयपुर जाते थे, तब यहां से सलूंबर तक पैदल जाते थे. वहां से बस मिलती थी उदयपुर के
लिए और कठीन परिस्थितियों में आपने ग्रामीण क्षेत्र में रहते हुए भी अपनी शिक्षा पूरी
की। अंग्रेजो के शासन काल में भी शिक्षा के प्रति रुझान और साथ ही विद्यार्थी जीवन में भी आजादी आंदोलन में आपकी सक्रियता आपकी प्रतिभा को दर्शाता है।
आपके
पिताश्री का मुंबई में होटल व्यवसाय था जिसके कारण मुंबई प्रवास अक्सर बना रहता था
आप वहां पर भी राजनीति में सेवा करते रहते थे. आजादी के पश्चात आप के कार्यों और
वकालत की प्रसिद्धि हासिल की. लेकिन उन्होने
वकालात छोड़कर जन सेवा को चुना,
आप का ध्यान वागड़ के प्रति अधिक होने के कारण वहां से पुनः आप
कांग्रेस पार्टी की सक्रिय भूमिका में वागड़ में पुनः वापसी की थी ।
स्वतंत्रता
के पश्चात आप सागवाड़ा के प्रधान भी रहें और वागड़ में कांग्रेस पार्टी के लिए
मुख्य मार्गदर्शक रहें ।
आपकी विशेषता रही की आप स्वतंत्रता सैनानी होने के बाद भी स्वतंत्रता सैनानियों को मिलने वाले किसी भी लाभ को लेने से मना कर दिया । आप स्वयं के नाम के लिए कोई कार्य नहीं करते थे सदैव प्रचार प्रसार से दूर रहकर पर्दे के पीछे की भूमिका निभाते थे जिससे कारण आपको वागड़ के लोग कम ही जानते है, जबकि आप शिक्षा के प्रचार, सेवा और धर्म एवम् अध्यात्म से जुड़ कर लोगों को सदैव सेवा व मार्गदर्शन देते रहे थे ।
आप ने 1996-97 में सामलीया गांव के विद्यालय को एक लाख रुपए देकर राज्य सरकार को सैकंडरी से सीनियर विद्यालय करने को मजबूर कर दिया था एवम् वर्षो से गांव के लोगों द्वारा सीनियर विद्यालय खुलवाने के लंबे इंतजार को पूरा करवाया था आपको भामाशाह रूप में राज्यपाल पुरूस्कार दिया गया था । आपका जीवन सामाजिक समरसता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण था सदैव आप वंचित और गरीब तबके के लिए अपनी सेवा और सहयोग प्रदान करते थे । आप एक अच्छे वक्ता भी थे । समाज सेवा आप अंतिम समय तक करते रहे थे , आप का सरनेम भट्ट था परन्तु आपकी सेवा व कार्यों से लोगों ने शर्मा की उपाधि से आपको नवाजा था ।
16
फरवरी, 2022 को 94 वर्ष की
उम्र में शर्मा जी देहावसान हुआ, और उनके पैतृक गांव सामलिया
में आपका अंतिम संस्कार किया गया।
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