कभी वागड़ में पाये जाते थे जंगी नाटे हाथी....

डॉ. श्रीकृष्‍ण 'जुगनू'
दक्षिण राजस्‍थान यानी वागड़ और मेवाड़ का हिस्सा अपनी अनूठी जैव विविधता के लिए जाना जाता रहा है.  इसी के अतीत पर कुछ मज़ेदार जानकारी...                                               
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                     महर्षि पालकाप्‍य ने बहुत पहले गजशास्‍त्रम़ की रचना की है। इसमें देश के प्राचीन वनों का वर्णन आया है। पालकाप्‍य की रचना इसलिए पुरानी हैं कि उसमें पृथ्‍वी को सात समुद्रों वाली नहीं, जैसा कि गुप्‍तकाल में सप्‍तसिंधुपर्यन्‍त कहा गया है, बल्कि चतुस्‍सागरपर्यन्‍ता कहा गया है, इसलिए यह ईसापूर्व की रचना है। उसमें अंगदेश के चक्रवर्ती राजा रोमपाद के प्रश्‍नों का उत्‍तर है -

अंगानामधिप: श्रेष्‍ठ: श्रीमानिन्‍द्रसमद्युति। येनेयं पृथिवी सर्वा सशैलवनकानना।। चतु:सागरपर्यन्‍ता भुक्‍तासीन्मित्रतेजसा। दानेन चन्‍द्रसदृशो दीप्तिमान् दिव्‍यतेजसा।। स रोमपादनृपतिश्‍चक्रवर्ती महायशा:। रोमेति नाम पद्मस्‍य रेखाकारस्‍य विश्रुतम्।। (पालकाप्‍योत्‍पत्ति क्रम कथनं 1, 1-3)

इस ग्रंथ में विविध वनों का वर्णन आया है। ग्रंथ के अनुसार दक्षिण राजस्‍थान का वन प्रदेश तत्‍कालीन सौराष्‍ट् वन के अंतर्गत आता था। 
यह वन रेवा नदी या नर्मदा की अंतिम सीमा से लेकर आबू पर्वत तक ओर द्वारका से लेकर सौराष्‍टृ तक फैला हुआ था। यह वन पचास योजन में फैला हुआ था। समग्रत: इसे 'सौराष्‍टृ वन' कहा जाता था, श्‍लोक से यह बात पुष्‍ट हो जाएगी - 

रेवावन्‍त्‍यर्बुदाख्‍य प्रमदपुरवर द्वारकानां च मध्‍यं सौराष्‍ट्र्ं तत्र जातस्‍तनुनखवदन: तत्‍वतो अल्‍पायुरज्ञ:।

यह वन अपरान्‍त प्रदेश के वन से घिरा हुआ था। इस पूरी ही सीमा में दक्षिण राजस्‍थान का वह क्षेत्र भी आ जाता था, जिसमें आज का वागड, मेवाड आदि स्थित हैं। अनोखी बात यह है कि इस प्रदेश में हाथी पाये जाते थे। कल मैंने गेंडों की बात लिखी मगर जब गज शास्‍त्र का वर्णन पढा तो रोचक लगा कि पालकाप्‍य को इस वन प्रदेश में पाये जाने वाले, उत्‍पन्‍न होने वाले हाथियों की समग्र जानकारी थी। इस काल के विदेशी यात्रियों के विवरणों को आधार मानें तो ज्ञात होता है कि उस समय यहां पाये जाने वाले हाथियों को पकडकर जहाज आदि के माध्‍यम से विदेशों में भी ले जाया जाता था।
पालकाप्‍य ने लिखा है कि इस वन प्रदेश में जो हाथी उत्‍पन्‍न होते हैं, वे उनकी काया काले रंग वाली होती है, ये छरितांग वाले, मस्‍तक के भाग पर निबिड रोम वाले, छोटे नख वाले, छोटे ही कद वाले और मूढ चेतस होते हैं। इनकी आयु भी कम ही होती थी। इनको हाथियों के समुदाय में अधम प्रजाति के हाथी माना जाता था जबकि अपरांत प्रदेश के वन में मिलने वाले हाथियों का दाम अधिक होता था और वे लडाई में भी अधिक उपयोगी होते थे 
Elephants available in this forest are jet black, dull, short in age and inferior ones. They have thick hair on their heads, narrow faces and small nails. 

हमें इन सूचनाओं के आधार पर यह स्‍वीकारना चाहिए कि इस क्षेत्र में ईसा की प्रारंभिक सदियों में हाथियों का विचरण होता था, उत्‍पत्ति होती थी किंतु युद्ध की अपेक्षा मालवाहक गज के रूप में उनका व्‍यापार भी किया जाता था।


- डॉ. श्रीकृष्‍ण 'जुगनू', उदयपुर
लेखक, इंडोलॉजिस्ट एवं शोधकर्ता 

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