श्रीकृष्ण की कई लीलाओ के दर्शन होते हैं लिलवासा के श्रीगोपालजी में
श्रीकृष्ण के विविध रूपो के दर्शन कराते अलग-अलग मंदिर दुनियाभर में मौजूद हैं, कहीं मुरलीधर तो कहीं राधावल्लभ. कहीं लड्डू गोपाल तो कहीं बाल गोपाल. जनमानस के सदैव मंत्र-मुग्ध करते श्रीकृष्ण का एक ऐसा ही मंदिर है लिलवासा का श्रीगोपाल धाम, जहां श्रीकृष्ण एक साथ कई लीलाऐं दिखाते हैं ! डूंगरपुर ज़िले के लीलवासा गांव में इस मंदिर में सदियो पुरानी पुरातत्व महत्व की मनोहारी प्रतिमा विराजमान है. दक्षिणी राजस्थान के डुंगरपुर ज़िले में पुंजपुर-बनकोडा मार्ग पर मोवाई के पास है गोपालधाम लिलवासा.
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गोपालजी श्रीकृष्ण की प्रतिमा |
मंदिर की सेवा-प्रबंधन से जुड़े श्री
भूपेंद्र रावल बताते हैं कि गांव के पास स्थित माता वाली पहाड़ी की तलहटी से
प्राप्त हुई है जो कि प्राचीन काल में एक प्राचीन नगर हुआ करता था. बरसो पहले पंडित स्व. श्री लीलाराम रावल, जिनके नाम पर ही लिलवासा गांव का नाम है, को स्वप्न आया था कि उस पहाड़ी में
मूर्ति में है. जब इसकी चर्चा गांव में की
तो उक्त मुर्ति को निकट के विकसित और बड़े गाँव पूंजपुर में प्रतिष्ठित करने का
निर्णय लिया.
फिर इस प्रतिमा को लेने हेतु आसपास गांव के करीब 500 लोग एकत्रित होकर बैलगाड़ियों सहित पहाड़ी पर पहुंचे वहां से मूर्ति को बैलगाड़ी रखकर तक दोपहर तक लिलवासा पहुंचे. दोपहर में थोड़ा जल-पान करने और सुस्ताने के लिए रुके और फिर पुंजपुर की ओर बढ़ने के लिए वापस बैल जोतकर गाड़ी चलाने लगे तो बैल हिलने का नाम नहीं ले रहे थे. बैल मुकर गए एवं बैलगाड़ी टूट गई. ग्रामीणो ने कई बार प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली. बैलगाड़ी टस से मस होने को तैयार नहीं. रात होने को आई थी, थक-हार कर ग्रामीणो ने वही रात्रि विश्राम किया. विश्राम के दौरान ही गांव के एक पुजारी को फिर से सपना आया कि “भाई गोपालजी तो लिलवासा में ही विराजेंगे! ”
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गोपालजी के शीर्ष पर बनी गोपिकाओ की प्रतिमाएँ, जो उनके चारो तरफ बनी हैं |
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गोपालजी के दाहिनी तरफ कलात्मक गोपिकाएँ |
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गोपालजी की बाँयी तरफ कलात्मक गोपिकाएँ |
इस मूर्ति के नीचे संवत **15 फागण वदी पाचं का उल्लेख है. जो शायद 15 या 115 हो सकता है. इस लिहाज़ से यह प्रतिमा सदियो पुरानी सिद्ध होती है.
एक बार श्री गोपाल जी के दर्शन हेतु पधारे
तलवाड़ा के प्रसिद्ध गोसंत श्री रघुवीर दासजी महाराज का कहना है कि उक्त मूर्ति
वृंदावन में स्थित सातों मूर्ति का एक ही रूप धारण किए गए है जो कि क्षेत्र की
अद्भुत एवं चमत्कारी मूर्ति प्रतीत होती है. पूरे वागड़ में शायद ही श्रीकृष्ण का ऐसा
रूप होगा. लालशंकर रावल बताते हैं कि मौज़ूदा मंदिर का निर्माण करीब 90 साल पहले सन 1929 में शुरु होकर सन 1931 में पूरा हुआ था.
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गोपालजी के चरणो में खड़ी गाएँ-बछड़ो को दूध पिलाते हुए |
श्रीगोपालजी को भक्तो की मनोकामना पूरी
करने वाले और इस समूचे क्षेत्र में सुख-समृद्धि-सम्पन्नता के दाता के रूप देखा जाता
है. गोपाल भक्त श्री लक्ष्मीकांत पंडया बताते हैं कि संवत 1993
में जब समूचे वागड़ में प्लेग की महामारी फैली हुई थी तब सभी भक्तों
ने इस मंदिर में जाकर जागरण किया एवं अभिमंत्रित जल का गांव में वितरण करके बीमारी
से बचाव किया था.
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वर्षो पूर्व निर्मित पुराना गोपालधाम मंदिर, जहाँ अब नया मंदिर बन रहा है |
इसी तरह सन 1965-66
में जब भयंकर सूखा पड़ा था, जिसे छप्पन का अकाल
के नाम से जाना जाता है, तब सभी गांव वासियों द्वारा इस
मंदिर ने प्रार्थना पूजा-अर्चना करके गोपालक गोपालजी से अनुनय-विनय किया तो बारिश हुई
थी. गोपाल जी के मंदिर में मन्नत मांगने
से निसंतान को संतान प्राप्ति होती है और दिल से मांगी गई हर मनोकामना की पूर्ति
होती है.
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गोपालधाम स्थित एक शिलालेख जिसमें चोरो ने चोरी ना करने का संकल्प लिया था |
श्रीलालशंकर पाटिदार बताते हैं कि एक बार मंदिर में चोरी करने पर चोर अंधे
हो गए थे. जिन्होने बाद में माफी मांगते हुए शिलालेख लगाकर संकल्प लिया कि, जीवन में कभी चोरी नहीं करेंगे. देवीलाल पंचाल के अनुसार गोपालधाम सिर्फ एक मंदिर ही नहीं, बल्कि गाँव की सांस्कृतिक-सामाजिक-मांगलिक गतिविधियो का केंद्र बिंदु है. वेलजीभाई पाटिदार बताते हैं कि यह मंदिर सर्वसमाज को एकसूत्र में पिरोता है और गांव के दैनिक जीवन का अहम हिस्सा है.
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संगमरमर से निर्माणाधीन नया मंदिर |
जन्माष्टमी श्रीगोपाल धाम का मुख्य उत्सव
है. जिसमें कृष्ण गरबा रास का आयोजन कृष्ण लीला रास का आयोजन कृष्ण झांकी का आयोजन
भजन व कीर्तन का आयोजन किया जाता है जिस में मंदिर निर्माण कमेटी एवं श्री गोपाल
भक्त मंडल द्वारा महाप्रसादी का भी आयोजन किया जाता है. उत्सवो में युवाओ की बढिया भागीदारी रहती है. साथ ही एकादशी, गोपाष्ठमी, पूर्णिमा पर भी विशेष आयोजन होते हैं. प्रतिदिन
गांव में भजन-कीर्तन के साथ प्रभात फेरी निकाली जाती है.
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संगमरमर से निर्माणाधीन नया मंदिर |
लालशंकर रावल बताते हैं कि करीब दो साल पहले ग्रामीणो ने मंदिर का जिर्णोद्धार करने का निर्णय लिया और इस पर कार्य शुरु किया.
इस दौरान एक और चमत्कार हुआ कि पुराने मंदिर के शिखर से करीब 90 साल पुराना कलश मिला, जिसमें देसी घी था. हैरानी की बात है कि लगभग एक सदी बाद भी ये घी बिल्कुल ताज़ा था, मानो अभी-अभी बना हो.सफेद संगमरमर से निर्मित श्रीगोपाल धाम का जिर्णोद्धार प्रगति में है. लगभग डेढ़ करोड़ की लागत आंकी गई है. सागवाड़ा के वास्तु शिल्पकार चंद्रशेखर सोमपुरा की देखरेख में और राजस्थान के ही पिंडवाडा और राजनगर के मार्बल से नक्काशीदार कलात्मक भव्य मंदिर बनाने का कार्य जोरो पर है. ग्रामीणो की मंशा है कि गोपालक श्रीगोपालजी के धाम को पूर्णता देने के लिए भविष्य में मंदिर द्वारा गांव में गौशाला भी शुरु की जाए.
फोटो एवँ आलेख:
जयेश रावल-लिलवासा एवँ जितेंद्र दवे
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