गणेश की काष्ठ प्रतिमाओ के माहिर शिल्पकार बड़ोदिया के लीलाराम शर्मा


बड़ोदिया, बांसवाड़ा के रिटायर्ट शिक्षक शर्माजी ने श्रीमंदार को आकार देना ही अपना मक़सद बना लिया है, उनकी रुटीन है गणपति की कलात्मक काष्ठ प्रतिमाएँ उकेरना !
अपनी कलाकृति को आकार देने में मशगुल शर्माजी 
स्वयँ गणेशजी क्रिएटिविटी के देवता माने जाते हैं. और शायद इसीलिए कलाकारो ने सबसे ज़्यादा अनूठे और क्रिएटिव प्रयोग गणेशजी के साथ ही किए हैं. चाहे वह पेंटिंग्स हो, मुर्तिकला हो, कोई इंस्टॉलेशन हो या ड्रॉइंग. अपनी सृजनशीलता और भक्ति भाव के बरक्स एक ऐसी ही मिसाल कायम की है रिटायर्ड शिक्षक श्रीलीलाराम शर्मा ने.
शर्मा की एक गणेश कृति
                           दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा ज़िले के बड़ोदिया गाँव के शर्मा के दिन का श्रीगणेश ही गणेशजी की कला-साधना से होता है, जो दिनभर चलता रहता है. काष्ठकला में माहिर शर्मा बड़ी मुस्तैदी और ख़ूबसूरती के साथ सूखी लकड़ी में गणपति उकेरते हैं...गणपति की प्रतिमाएँ बनाते हैं.  वह किसी भी प्रकार के पॉवर या डिजानिंग टूल्स का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि सिर्फ़ सामान्य औज़ारो और हुनर के बल हेरम्ब को आकार देते हैं.
सामान्य लकड़ी और औजारो से ही रच लेते हैं कलाकृतियाँ 
मज़ेदार बात ये है कि, एक सेल्फमेड कलाकार शर्मा ने कला या शिल्प की कोई पेशेवर ट्रैनिंग नहीं ली है, बल्कि खुद ही अपनी मेहनत और लगन के बल पे अपने हुनर को निखारा. कभी पेंटिंग बनाने के शौकीन रहे शर्मा बताते हैं कि एक दिन एक लकड़ी की शोभावट देखकर ख़याल आया कि क्यो ना लकड़ी पर हाथ आज़माया जाए और आगे की कला-साधना इसी माध्यम से की जाए. और इस तरह शुरु हुआ प्रथमेश गजानन की काष्ठ प्रतिमाओ को आकार देने का ये सिलसिला.
शर्मा की एक त्रिशुल कृति
तेरा तुझको अर्पण
लोग भी शर्मा की कलाकृतियो के मुरीद हैं. पारखी लोग अपने घरों की शोभावट व पूजाघरों के लिए गणेशजी लेने के लिए आते है और ईच्छानुसार राशि भेंट कर जाते है. अब तक सैकड़ो गणपति प्रतिमाएँ उकेर चुके शर्मा की कला-साधना की ख़ास बात ये है कि, वह इनकी बिक्री से प्राप्त सम्पूर्ण राशि वागड़ के विख्यात त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के समीप सिद्धी विनायक मंदिर को भेंट चढ़ा देते हैं. मतलब गणेशजी की कला-साधना से प्राप्त द्रव्य गणेशजी को ही समर्पित. एक कलाकार के लिए इससे बेहतर आध्यात्मिक सफ़र क्या हो सकता है? इन्ही की इस कला भक्ति के कारण सैकड़ो चौखटो और घरो में विराजमान गणपति हर दिन पूजे जाते हैं. उन्होने 2.5 इंच से लेकर 10 इंच तक की काष्ठ प्रतिमाएँ बनाई हैं. 

शर्मा की एक गणेश कृति
शर्मा का ये कला-अ‍नुराग इतना सहज है कि इधर-उधर व्यर्थ पड़ी किसी लकड़ी के टुकड़े में अपने आराध्य का अक्स देखकर, छोटे-छोटे औजारों से छिलना शुरू कर देते हैं... और विघ्नहर्ता स्वयं अवतरित होते नज़र आते हैं. बरसो से यह सिलसिला निरंतर चल रहा है. उन्होंने अब तक कई तरह की लकड़ी में गजानन के विविध रूपों को उकेरा है. लेकिन उनकी काष्ठ- कलाकारी सिर्फ गणेश प्रतिमाओ तक ही सीमित नहीं है. वह लकड़ी के आकर्षक मंदिर, तोरण और द्वार और अन्य आकृतियाँ बनाने में भी माहिर हैं.
शर्मा की एक मंदिर कृति
श्वेतार्क की सूखी लकड़ी से गणेशजी बनाना कठिन होता है, परन्तु उन्हें यह बेहद पसंद है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्वेतार्क गणपति पूज्य और चमत्कारिक होते है. हाँलांकि वह सागवान, आम आदि की लकड़ियो की प्रतिमाएँ भी बनाते हैं, शर्त ये है कि लकड़ी दोषमुक्त हो. वह गणेशजी के अलावा हनुमानजी, श्रीकृष्ण, श्रीनाथजी की मूर्तियो को भी आकार दे चुके हैं.

हर अंदाज के बप्पा,  हरफनमौला शर्मा
उन्होंने न केवल काष्ठ की गणपति प्रतिमाओ को आकार दिया है, बल्कि वह मिट्टी, नारियल और सीमेंट से भी गणपति बना चुके है. एक युवा मंडल के लिए लगातार दो साल तक नारियल के गणपति का निर्माण भी किया था. बरसो पहले जब प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाएं चलन में नहीं थी तब उन्होंने नज़दीक के सज्जनगढ़ और बड़ोदिया में गणेश मंडलों के लिए मिट्टी के गणेशजी का भी निर्माण किया था और यही अनुभव आज गणपति प्रतिमाओं के निर्माण में भी काम में आ रहा है. वे सिद्धहस्त पेंटर के साथ एक उम्दा घड़ीसाज और हारमोनियम वादक भी है. उन्होंने स्वयं के विद्यालय के साथ पास-पड़ौस के कई स्कूलों में भी अपनी सेवाएं दी है.  
अपनी सेवाओ और सृजन के लिए शर्मा को जिला प्रशासन द्वारा जिला स्तरीय समारोह में तथा संस्कार भारती-बांसवाड़ा द्वारा कलागुरु सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है.

~ जितेंद्र दवे, ओबरी

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