“रिटायर्ड हूँ, टायर्ड नहीं!” की हुंकार भरते हुए तैराकी में हैरतअंगेज़ मुकाम हासिल किए हैं शारदाबेन जोशी ने !


उम्र भी बाधा ना बनी स्पोर्ट्स वूमन शारदाबेन जोशी की!
वागड़ से जुड़े परिवार में उदयपुर में जन्मी शारदाबेन गणपतबिहारी जोशी युवाओ, खासकर महिलाओ के लिए एक मिसाल हैं। देश को आज़ादी मिलने के ठीक एक साल पहले जन्मी शारदा बेन ने रिटायरमेंट के बाद भी “रिटायर्ड हूँ,  टायर्ड नहीं!” की हुंकार भरते हुए तैराकी में हैरत अंगेज़ मुकाम हासिल किए हैं !!  अपनी B.A, M.A. की  पढ़ाई उदयपुर राजस्थान से की वहीं सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी से B. Ed. की डिग्री हासिल की।


उदयपुर के भट्टियानी चौहट्टा, जगदीश चौक में अपना बचपन गुज़ार चुकी जोशी फिलहाल राजकोट, गुजरात में बस गई हैं। अब तो वह रिटायर हो गई हैं लेकिन करीब 5 साल शिक्षिका उच्चतर माध्यमिक विभाग, 22 साल प्रधान आचार्या और 5 साल NCC की लेडी ऑफिसर रहीं।  वह राजकोट शहर पुलिस सलाहकार नारी सुरक्षा समिति सदस्या भी हैं।


यूँ हुई स्वीमिंग की शुरुआत:
12 से 14 साल की उम्र में उदयपुर के गणगोर घाट तालाब में भाइयो के साथ पानी में हाथ पैर हिलाना शुरु किया । थोड़ी दूर तैर कर वापिस आ जाती । व्यावसायिक जीवन में कभी भी तैरने का काम नही पड़ा । रिटायर होने के बाद 60 साल की उम्र में घुटनों के दर्द के लिए डॉक्टर के कहने पर एक्सरसाईज के लिए स्नानागार में जाना शुरु किया । सँयोग से वहाँ कोच के रूप में उनकी ही स्टुडेंट मिली । बचपन में पाई तैराकी शिक्षा के कारण पानी का डर न होने से बहुत ही जल्दी तैराकी में पारंगत हो गई । उनकी प्रगति को देखते हुए कोच ने तैराकी प्रतियोगिता में भेजा । आज 73 साल की उम्र मे उन्होंने कई प्रतियोगिता जीतकर अपनी कोच एवं देश-समाज का नाम रोशन किया हें।


डूंगरपुर ननिहाल और उदयपुर ससुराल और कर्मभूमि गुजरात को बनाकर राजस्थान की एक नारी जो कभी रास्ते मे भी घूँघट निकालती थी,  स्वीमिंग कॉस्च्युम पहनकर कामयाबी के भव्य कीर्तिमान स्थापित कर रही है। जो हमारे लिए प्रेरणास्पद है ।


कामयाबियो का सिलसिला: 
जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रमाणपत्र प्राप्त किये है । पांच-छह साल में अब तक 9 गोल्ड, 12 सिल्वर, 10 ब्रोंस मेडल प्राप्त किये है । हाल ही में विशाखापत्तनम में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने पर 1 गोल्ड, 3 सिल्वर मेडल प्राप्त किये है ।
यहाँ तक की पोरबंदर समुद्र तैराकी प्रतियोगिता में भी इस उम्र में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है ।


कामयाबी का राज़:
इन सभी सिद्धियों के पीछे नियमित स्नानागार में कठिन परिश्रम, ( दिसम्बर जनवरी की कडाके की ठंड में भी तैरना), कोच का अमूल्य मार्गदर्शन, परिवार का पूर्ण समर्थन, राष्ट्रीय स्तर में जीतने का लक्ष्य, नियमित समर्पण ध्यान और सदगुरु श्री शिवाकृपानंद स्वामीजी के आशीर्वाद है ।



मुकेश  द्विवेदी, डूंगरपुर-  वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट

6 टिप्‍पणियां

Unknown ने कहा…

परिवार के लिए गौरवपूर्ण.... शानदार आलेख

Unknown ने कहा…

अद्भुत,अविश्वनीय लेकिन सच । धन्यवाद

Jitendra Dave ने कहा…

सही कहा पण्ड्याजी। वाकाई प्रेरक हैं।

Unknown ने कहा…

बहुत ही शानदार ।।

Jitendra Dave ने कहा…

शुक्रिया विकास बाबू।

Jitendra Dave ने कहा…

धन्यवाद। कृपया अधिकतम शेयर कीजिए।