लंका नहीं, डूंगरपुर के रावण का है डंका, राजस्थान से लेकर गुजरात तक
फोटो फीचर: मुकेश द्विवेदी
वागड़ के कारीगरो ने देश-दुनिया में अपना नाम रौशन किया है. चाहे मुर्तिकार हो या सोमपुरा, शोरगर हो या घटी या तबले बनाने वाले हुनरमंद.
हिल सिटी डूँगरपुर शहर के पुराने अस्पताल के पीछे की बस्ती में बसे
बांसड़ा समाज के कारीगर भी कोई कम नहीं हैं. बांस के इन परम्परागत कारीगरों द्वारा बनाए
गए रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण के पुतलों
का राजस्थान, गुजरात के कई शहरों में दशहरे में सप्लाई की
जाती है.
सिर्फ डूंगरपुर या वागड़ ही नहीं, बल्कि सीकर, आबू, सिरोही, गोधरा, शामलाजी, हिम्मत
नगर, मोडासा में अपनी हस्त कला से निर्मित पुतलों का डंका
बजा रखा है.
कारीगरो द्वारा मशीनो का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है, ज़्यादातर कारीगरी हाथ से ही होती है. अनुमानतः 1 से 1.5 लाख
तक की लागत से बनकर तैयार होते है और एक सेट बनाने में लगभग 20 दिन लगते है.
स्थानीय कलाकारों द्वारा अपने घरों में बनाये जाते है. कार्यशाला
में पर मुखोटे बनते है, रंग होता है,बाकी कार्य जहां
का ऑडर होता है वहां ऑनसाइट पूरा करके पुतला खड़ा किया जाता है.
मुकेश द्विवेदी, डूंगरपुर के वरिष्ठ फोटोग्राफर हैं.
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