सहज भाव से उपजी लेकिन आपको असहज करती उपेन्द्र सिंह की कविताएँ: ‘मुझे एक घर चाहिए’

वह वागड़ अंचल के विभिन्न कॉलेजों में बतौर प्राध्यापक पढ़ाते राजनीतिक विज्ञान हैं, लेकिन गुनगुनाते कविताएँ हैं. उपेनउपनाम से लिखने वाले सहृदय और सहज कवि उपेंद्र सिंह का ये पहला काव्य संग्रह है मुझे एक घर चाहिए’, जो अपनी कविताओ में कवि की ठेठ गाजीपुर से डूंगरपुर तक कई जीवन सफर की अनुभुतियों के साथ ही ही वाया प्रयागराज के इलाहबाद युनिवर्सिटी के युवा मन की झलक भी दिखाता है, तो एक चिंतक मन के कुछ संजीदा सवाल भी छोड़ जाता है. पेश है इस काव्य कृति पर मेवा राम गुर्जर द्वारा लिखी गई समीक्षा.  

- जितेंद्र दवे, सम्पादक, वायरल वागड़


प्रत्येक कवि की अपनी अलग ही दुनिया होती है। इस दुनिया में रहने के लिए स्वयं का स्वयं के साथ रहना अनिवार्य शर्त है। अपनी बात को कविताओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का हुनर रखने वाले उपेंद्र सिंह 'उपेन' ने अपने पहले काव्य संग्रह 'मुझे एक घर चाहिए' से हिंदी साहित्य जगत में अपने सशक्त हस्ताक्षर किए हैं।

मूलत: गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) से संबंध रखने वाले उपेन्द्र सिंह अपने पहले काव्य संग्रह 'मुझे एक घर चाहिए' में अलग-अलग विषयों को समाहित करने वाली कविताएं हैं। पुस्तक में प्रेम, विरह, मानवीय संवेदना, प्रशासनिक षड्यंत्र, किसान, प्रकृति आदि विषयों पर उन्होनें  मजबूती से अपनी कलम चलाई है।

 अतीत के नाजुक पलों को वे इस तरह याद करते हैं -

जब भी मिलती है फुर्सत

खोलता हूं अक्सर

टिन का वह डिब्बा

जिसमें ख्वाहिशों की कोरी चादर ओढ़े जाग रहे हैं आज भी

ढेर सारे पीले लिफाफे

और कुछ नीले अंतर्देशीय पत्र।

आधुनिकता के इस दौर में जहां प्रेम भी एक तरह से डिजिटल सा हो गया है, कौन अपनों को खत लिखता है। पर 'आज भी तुम्हारे खत' कविता में वे यह स्वीकार किया है कि आज भी उन्होंने किसी के खतो को बड़े अच्छे सलीके से सुरक्षित रखे हुए हैं।

उन्होंने आधी आबादी के दर्द को भी याद किया है -

कई सदियों से

तमाम मुल्कों में

हाथ बांधे खड़ी है औरत

एक हाशिए पर

उसे जीना है बनकर एक अदद इंसान

सात जन्मों का पुण्य भोगने के लिए

नहीं मरना है इस बार भी

किसी अंधेरे बंद कमरे में कहीं।

स्त्रियों के दु:ख को कवि ने अपनी कविताओं में इतनी शिद्दत से उकेरा है कि कविता हर पाठक को पूरी कहानी सी लगती है। प्रारंभ से अंत तक पाठक को बांधे रखते है। स्त्री विमर्श की कविताओं में उपेंद्र सिंह की कविताएं अपना विशिष्ट स्थान रखती है। इन कविताओं में प्रेम, वियोग, बेचैनी, दु:ख, स्त्री मन के भाव और उसकी पीड़ा साफ झलकती है।

'एक्सप्रेस वे' शीर्षक से दो कविताओं में कवि ने किसान, गरीब और ग्रामीण परिवेश की पीड़ा को बड़े मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।

पहाड़ भी तो मर रहे हैं

कभी दुर्जय समझे जाने वाले इन शिलाखंडों के बदन पर

पिराई जा रही है बड़ी-बड़ी मशीनी उंगलियां

इन पहाड़ों को का मारना केवल पत्थरों का कटना नहीं है

अनगिनत कहानियों का कत्लेआम भी है यह।

 'मुझे एक घर चाहिए' नामक कविता में उपेंद्र सिंह ने एक सच को शब्दों में पिरोया है। मानवीय संवेदनाओं की अनुभूति यह कविता उस मर्म को उजागर करती है जो आज घर-घर में देखने को मिलता है।

उस घर का मर जाना लाजमी है

जिसकी खिड़कियों से कहकहों की ताजी हवा नहीं झरती

बल्कि झरते हैं

व्यंग्य के बासी थपेड़े

जिसके दरवाजे लड़ते नहीं, तनाव से भीचे रहते हैं रात दिन

पर्दे भी अब हंसते नहीं

खामोशी से तने रहते हैं ।

यह एकदम सच है, जहां संवाद नहीं होता वहाँ रिश्ते भी मृतप्राय हो जाते हैं।

उनकी कविताएं दरअसल कुछ उलाहना भी हैं कि इस लंबी यात्रा में नहीं रहा उसका कोई सहयात्री। आदमी का अकेले सफर करना कितना मुश्किल है इसलिए -

आ जाओ न!

कि उदास पसरी पड़ी है वह डाली

जिसके बदन पर महकता है आज भी

तेरी हथेलियों का पसीना ।

सरल, सहज और प्रवाहमय भाषा में अपनी बात को आम आदमी तक पहुंचाने की विशिष्टता उनको साहित्य की भीड़ में अलग खड़ा करती है और ये इनकी ख़ास बात है।


"राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर" के सहयोग से बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा प्रकाशित उपेंद्र सिंह का पहला काव्य संग्रह "मुझे एक घर चाहिए"  काफी चर्चा में है। अमेज़न पर उपलब्ध 100 पृष्ठों की यह पुस्तक का ₹120 में उपलब्ध  है।

स्वयं को स्वयं से मिलाने वाली इस नायाब पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए।

समीक्षक : मेवा राम गुर्जर (जयपुर)

11 टिप्‍पणियां

Upendra singh ने कहा…

बहुत बहुत खूबसूरत कलेवर में प्रकाशित करने के लिए आपकी पूरी टीम को साधुवाद।
👍👍

Meva Ram Gurjar ने कहा…

मेरी समीक्षा को इतनी खूबसूरती से प्रकाशित करने के लिए आपकी पूरी टीम को बधाई। आभार

विजय गोस्वामी 'काव्यदीप' ने कहा…

बहुत सुंदर ...कृति और समीक्षा भी!
आदरणीय 'उपेन' जी को बधाई।

बेनामी ने कहा…

सुन्दर कृति की सुन्दर समीक्षा

बेनामी ने कहा…

सुन्दर कृति की सुन्दर समीक्षा
भोगीलाल

बेनामी ने कहा…

आदरणीय भाई उपेन् जी की ये अदभुत कृति साहित्य के काव्य प्रखंड में बहुत चर्चित और प्रशंसित होगी / उनकी इस पुस्तक पर आदरणीय मेवाराम जी गुजर की समीक्षा इमानदार शब्दों का समूह है बधाई ... ज्योतिपुंज उदयपुर '

रजनीश "अंजन" ने कहा…

जितनी सुंदरता और सहजता से सत्य को शब्दों में पिरोकर कवि ने कविता का रुप दिया है उतने ही प्रभावी ढंग से समीक्षा करते हुए समीक्षक ने न सिर्फ कवि बल्कि पाठकों का भी हौसला बढ़ाया है। पाठकों का हौसला कि भले ही पहली काव्य कृति है पर अवश्यमेव पढ़ा जाना चाहिए और कवि का इसलिए कि वह जीवन में ऐसे नए स्वरूपों में अपने भावों को व्यक्त करने का पुरुषार्थ कर पाए।

जय मां वीणा वादिनी, वर दे!

बेनामी ने कहा…

समीक्षक महोदय ने उपेंद्र जी द्वारा लिखे हुए काव्य पाठ को पढ़ने के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को प्रेरित किया है वास्तव में आपकी यह पुस्तक समाज के लिए एवं समाज के उत्थान के लिए एक आदर्श रूप में प्रस्तुत होगी। आप की पहली काव्य कृति प्रकाशित होने पर आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद।

Meva Ram Gurjar ने कहा…

आभार

Meva Ram Gurjar ने कहा…

आभार

रजनीश "अंजन" ने कहा…

NA