गुदगुदी: क्या-क्या रंग न दिखाए साहेब कोरोना ने !!


बहुत दिलफेंक आशिक है साहेब कोरोनवा!! 
किसी पर भी आ जाता है। घूंघट को कल तक महान अपराध समझने वाली अच्छी-अच्छी आधुनिकाओं के मुँह पर भी पट्टी बंधवा ली इसने तो। उस पर इसका मिज़ाज़ इतना तल्ख और सख्त है कि सभी सकते और सदमे में है। आदमी घरों और स्वयं में कैद है और जंगली पशु सड़को पर आ गए है। कल देर रात लौटते हुए सड़को पर आदमी का कही नामो-निशान न मिला, किंतु कोई तीन-चार बार लोमड़ी, सांप, रोजड़े व चीता सड़को पर दिखे!! 

अनेक बार कार रोक कर मुँह पर पट्टी बांधे कुछ कर्मचारियों व पुलिसकर्मियों को अपना नाम पता लिखवाते हुए उन्होंने लाइट वाली पिस्तौल जब हमारे माथे पर तानी, तो हमें लगने लगा घर से बाहर निकल कर हमसे कोई अपराध हो गया है।

स्कूल में हाल बेहाल है। कल तक मिल बैठ संग टिफिन बांट कर खाने का भारतीय रिवाज़ अब बहुत दूर की बात हो गया। हंसी मजाक और चुटकलों का दौर बीते युग की बाते हो गई। सभी स्वजनी, परिजन हो कर भी आपस में दूरी बना कर संदेह में, सदमे में और सहमे हुए अपना काम करते रहे!! चेहरे देखने को तो साहेब अब पैसे रुपये लुटा दो तो भी कोई न दिखाए।। अधमुहे, सहमे, लटके मुखड़ो पर कोरोनवा का पहरा है। 
दुलहिन की मुँह दिखाई की रस्म अब बन्द हो चुकी है, उसके लिए स्पेशयल स्वीकृति लेनी होगी। कोई लड़का विवाह हेतु लड़की देखने जाए तो पूर्व स्वीकृति ले कर ही जाए, अन्यथा नाक और मुँह पर बंधी पट्टी खुद भी लगाए और पट्टी में हकलाती या टेढ़े मुँह वाली लड़की देख कर ही चुपचाप लौट आए!! 😊😢

कल तक शिशुओं को हगिज़ पहनाई जाती थी, आज सभी के मुँह पर दम घोंटू पट्टी है और हाथों में चिकना सेनेटाइजर!! आह कहो या वाहह कोई फर्क नही। चेहरे की भाव भंगिमाओं और प्रतिक्रियाओं से कोई लेना देना नही। कोरोनवा ऐसा दूल्हा है जी खेतरपाल जी की तरह किसी को भी, कभी भी वर सकता है। खेतरपाल जी तो कन्या को ही चुनते थे किंतु कोरोनवा दूल्हा इतना अतिवादी है कि जाति भेद, धर्म भेद की धज्जियां उड़ा कर सभी चौखटे लांघते हुए लिंग भेद भी नही देखता!! अधमुहे पट्टी बांधे लाचार दूरी बना के बैठे ठालों को भी वर सकता है!! सोंचती हूँ एक जुलाई से जब स्कूलों में घरों की देहरी लांघते बच्चे पहुचेंगे तब क्या आलम होगा?? एक क्लासरूम में पचास -साठ छात्रों के साथ सोशल डिस्टसिंग की कितनी धज्जियां उड़ेगी?? चलिये सा अब तो दमघोंटू माहौल में कई साथियों को मुँह पर पट्टी बांधे यह भी कहते सुन लिया है कि इससे तो बेहतर है एक बार यह कमबखत कोरोनवा हो ही जाए !! 
कोरोनवा मन मर्जी के बादशाह का नाम है, तख्तों-ताज पलट सकता है... सिकन्दर और कलंदरों को भी नही बख्शा इसने तो। अच्छे अच्छो हाथ मिलाने, गले मिलने, किस्सा- किस्सू, टाटा, हाय-बाय करने वालो को दूर से ही हाथ जोड़ना सीखा दिया कोरोनवा ने तो। कुछ भी हो कोरोनवा आज का वह सच है जिसकी बादशाहत के पीछे सदियों की आदमी की भूलो की बारूदी नींव है। यह बिच्छू राजा है साहेब, बच कर रहियो ..और बढ़ते चलियो। नमकीन दारू से हाथ धोइये और चिकने हाथों से मुँह ढाँपे बाय बाय कोरोना कहिए!!

वागड़ी में कहूँ तो--"साब, नाक माते बारूतियु बांधी ने हाबु थकी कलाक-कलाक हाथ धोवो ने हेंडत बणो।"

                                                        -नीता चौबीसा (बांसवाड़ा)

                                             संस्कृतिकर्मी, शिक्षिका एवँ साहित्यकार
                                   ©आलेख के सर्वाधिकार ब्लॉग व लेखक के पास सुरक्षित 

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