खोजने निकले थे भालू तो वैज्ञानिकों को हाथ लगी राजस्थान में नई तितली प्रजाति !!


रोमांच भरी ये ख़ुशख़बरी है कुंभलगढ़ अभयारण्य में दिखी दुर्लभ प्रजाति की लाइलक सिल्वरलाइन तितली के बारे में !!
उदयपुर, 27 जून/दक्षिण राजस्थान में स्लॉथ बियर (भालू) पर शोध कर रहे उदयपुर अंचल के पर्यावरण वैज्ञानिकों ने एक नवीन प्रजाति की तितली को खोजा है। मेवाड़ के साथ ही राजस्थान में इस तितली को पहली बार देखा गया है।

उदयपुर/कुंभलगढ़ अभयारण्य में दिखी दुर्लभ प्रजाति की लाइलक सिल्वरलाइन तितली।
उदयपुर में प्रवासरत इंटरनेशनल क्रेन फाउण्डेशन व नेचर कंजरवेशन फाउण्डेशन के पक्षी विज्ञानी डॉ. के.एस.गोपीसुंदर ने बताया कि प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन की पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. स्वाति किट्टूर और मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के शोधार्थी नाथद्वारा निवासी उत्कर्ष प्रजापति ने दक्षिणी राजस्थान के कुंभलगढ़ अभयारण्य में स्लॉथ बीयर की पारिस्थितिकी पर अपने शोध के दौरान दुर्लभ लाइलक सिल्वरलाइन नामक तितली को खोजा है।  

हल्के पीले रंग की इस दुर्लभ तितली को दोनों शोधार्थियों ने गत दिनों अपनी जैव विविधता के लिए समृद्ध कुंभलगढ़ अभयारण्य की एक चट्टान पर सुबह-सुबह धूप सेंकते हुए देखा। डॉ. स्वाति किट्टूर और उत्कर्ष प्रजापति ने तत्काल ही इसे चांदी की तितली की एक अजीब प्रजाति मानकर इसकी कई सारी अच्छी तस्वीरें क्लिक की, जिसे बाद में वेबपोर्टल आईकॉनिस्ट के लिए अपलोड किया गया।

1880 में खोजी गई थी यह तितली:
डॉ. गोपीसुंदर ने बताया कि वेबपोर्टल पर इसे अपलोड करने के बाद देश के कई वैज्ञानिकों व तितली विशेषज्ञों ने उनसे संपर्क किया और बताया कि जिस प्रजाति की तितली की तस्वीर खींची गई है वह बहुत ही दुर्लभ लाइलक सिल्वरलाइन थी। उन्होंने बताया कि तितली की इस प्रजाति की खोज 1880 के दशक में की गई थी,
और इसे बेंगलुरु में मात्र एक की संख्या में ही देखा गया था। 

शोधपत्र भी हुआ प्रकाशित:
पर्यावरण वैज्ञानिक इस तितली प्रजाति को खोजने मात्र तक ही सीमित नहीं रहे अपितु उन्होंने इस तितली पर एक विस्तृत शोधपत्र भी तैयार किया जिसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की शोध पत्रिका जर्नल ऑफ थ्रेटण्ड टेक्सा
में 26 जून को ही प्रकाशित किया गया है। इस शोध पत्र को संयुक्त रूप से डॉ. के.एस.गोपीसुंदर, प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन की पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. स्वाति किट्टूर, मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के शोधार्थी नाथद्वारा निवासी उत्कर्ष प्रजापति तथा मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व पक्षी विज्ञानी डॉ. विजय कोली द्वारा तैयार किया गया है और इसमे बताया गया है कि राजस्थान के लिए लाइलक सिल्वरलाइन की पहली साईटिंग है। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची द्वितीय के तहत संरक्षित है। शोध पत्र में यह भी बताया गया है कि यह प्रजाति पहले कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और भारत के उत्तरी राज्यों और पाकिस्तान में रावलपिंडी में बहुत कम संख्या में देखी गई थी।

राजस्थान में अब तक 112 प्रजातियां दिखी:
इधर, राजस्थान में तितलियों पर शोध कर रहे डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा निवासी मुकेश पंवार ने बताया कि उन्होंने अब तक राजस्थान में 111 प्रजातियो की तितलियों को देखा और पहचाना है,  वहीं उन्होंने इनमें से 82 प्रजातियों के जीवनचक्र का अध्ययन कर क्लिक भी किया है। पंवार ने बताया कि लाइलक सिल्वरलाइन को देखा जाना वास्तव में उपलब्धिपरक है जिससे यह उद्घाटित होता है कि कुंभलगढ़ जैसे अभयारण्य न केवल भालू और लकड़बग्घे जैसे स्तनधारियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि लीलैक सिल्वरलाइन जैसी दुर्लभ प्रजातियों की तितलियों के भी आश्रयस्थल है।
‌                                                              डॉ. कमलेश शर्मा,  
                                            उपनिदेशक, सूचना एवँ जनसम्पर्क, उदयपुर
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