वागड़-मेवाड़ के संतुलित विकास के लिए ज़रूरी है प्रताप प्रदेश


राजनीति. एक वर्ष पहले पलपल इंडिया ने दक्षिण राजस्थान में तीसरी ताकत के उदय होने के सियासी संकेत देते हुए लिखा था कि- दक्षिण राजस्थान में तीसरी शक्ति के उदय से बेखबर हैं भाजपा और कांग्रेस? यह तीसरी शक्ति बीटीपी के रूप में पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में तब सामने आई जब सबको चौंकाते हुए बीटीपी ने न केवल दो विधानसभा सीटें जीत लीं, बल्कि कुछ अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करवाई. यही नहीं, इस बार लोकसभा चुनाव में भी बीटीपी का प्रदर्शन अच्छा रहा!


बीटीपी का उदय राजस्थान के असंतुलित विकास का नतीजा है. इसीलिए कहा जा रहा है कि राजस्थान के संपूर्ण और संतुलित विकास के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के स्तर पर प्रताप प्रदेश की पहल की जरूरत है, क्योंकि? इस वक्त संपूर्ण राजस्थान की जो तस्वीर है उसमें दो अलग-अलग दृश्य एक-दूजे के एकदम विपरीत हैं, लिहाजा केन्द्र और राज्य सरकारें न तो रेगीस्तानी और न ही दक्षिण राजस्थान जैसे गैर-रेगीस्तानी इलाकों के साथ न्याय कर पा रहीं हैं!

§  जहां रेगीस्तान में पेयजल की कमी की समस्या है वहीं दक्षिण राजस्थान जैसे गैर-रेगीस्तान में जल प्रबंधन की परेशानी है.
§  रेगीस्तान के विकास के लिए पशुपालन ज्यादा जरूरी है तो गैर रेगीस्तानी क्षेत्रों में खेती पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है.
§  रेगीस्तान में पौधरोपण आवश्यक है तो दक्षिण राजस्थान में वन संरक्षण ज्यादा जरूरी है.
§  रेगीस्तान में तेल के भंडार हैं तो हरेभरे दक्षिण राजस्थान में जल और सोने के भंडार हैं.
§  भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, न्यायिक आदि सभी संदर्भों में रेगीस्तानी क्षेत्र दक्षिण राजस्थान के हरेभरे क्षेत्र से एकदम भिन्न है.
§  सबसे बड़े सवाल ये हैं कि... किसी प्रदेश की राजधानी, राज्य के किसी जिले से अधिकतम कितनी दूरी पर होनी चाहिए? किसी प्रदेश का उच्च न्यायालय, राज्य के किसी जिले से अधिकतम कितनी दूरी पर होना चाहिए? इन सवालों के नीतिगत और न्यायिक जवाब दिए जाने चाहिएं!
§  दो सौ किमी किसी भी प्रदेश की राजधानी को केन्द्र मानकर आदर्श त्रिज्या हो सकती है, क्योंकि इससे आगे राजधानी का नियंत्रण भी कमजोर पड़ जाता है और राजधानी तक आम आदमी की पहुंच भी मुश्किल होती जाती है!
§  एक तो राजस्थान बहुत बड़ा प्रदेश है और ऊपर से दक्षिण राजस्थान के ज्यादातर जिले राजधानी जयपुर से बहुत दूर हैं.
§  बांसवाड़ावासियों के लिए- अहमदाबाद, इंदौर, भोपाल, मुंबई आदि राजस्थान की राजधानी जयपुर से ज्यादा पास हैं.
§  जोधपुर के हाईकोर्ट तक पहुंचना किसी गरीब आदिवासी के लिए आसान नहीं है, इसके नतीजे में आजादी के बाद से ही वागड़-मेवाड़ के गरीब आदिवासी गैर-इरादतन अन्याय का शिकार हैं!
§  राजस्थान में प्रारंभिक शिक्षा का कार्यालय बीकानेर में है, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर में है, हाईकोर्ट जोधपुर में है, विधानसभा-सचिवालय जयपुर में है और ये सभी वागड़ से दो सौ किमी से कई ज्यादा दूर हैं!
§  कितने आश्चर्य की बात है कि सारी दुनिया में राजस्थान की पहचान ऊंट और रेगिस्तान से है, जबकि दक्षिण राजस्थान के लाखों लोगों ने कभी ऊंट और रेगिस्तान ही नहीं देखा? यहां का रहन-सहन, तौर-तरीके, प्रकृति-मौसम, खानपान, आर्थिक स्तर, जन-जीवन आदि सब कुछ शेष राजस्थान से एकदम भिन्न है!
§  उदयपुर, चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा,  डूंगरपुर और आसपास का क्षेत्र- सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, भौगोलिक आधार पर शेष राजस्थान से एकदम अलग है और यही वजह है कि तमाम जनहित की योजनाओं का लाभ इस क्षेत्र को शेष राजस्थान के सापेक्ष नहीं मिला है.
§  आदिवासियों के उत्थान के लिए बनी योजनाओं का लाभ भी इस क्षेत्र को नहीं मिला, क्या कोई बता सकता है कि आरक्षण के लाभ से मेवाड़-वागड़ क्षेत्र के कितने आदिवासी कलेक्टर, एसपी बने?
§  कारण एकदम स्पष्ट है कि... जिस क्षेत्र में प्रारंभिक शिक्षा की ही साधारण व्यवस्था नहीं हो, जिनके पास दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं हो, वे कैसे कलेक्टर, एसपी बनेंगे?
§  नतीजा यह है कि आरक्षण का लाभ मेवाड़-वागड़ के आदिवासियों को तो बहुत कम मिला है और आरक्षण का फायदा उन्हें बहुत अधिक मिला है जो दक्षिण राजस्थान के आदिवासियों के मुकाबले पहले से ही शैक्षिक और आर्थिक दृष्टि से सक्षम थे!
§  जाहिर है... दक्षिण राजस्थान के आदिवासियों की शैक्षिक, आर्थिक, आरक्षण आदि की जरूरतें शेष राजस्थान से एकदम अलग हैं, क्योंकि... जिनकी दसवीं तक की पढ़ाई भी ठीक से संभव नहीं हो पाती है, वे आईएएस, आरएएस कैसे बनेंगे?
§  उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, रेलवे सुविधा, हवाई सुविधा, उच्च रोजगार को तो एक ओर रखिए... दक्षिण राजस्थान में प्रारंभिक शिक्षा, साधारण सड़क सुविधा, सामान्य रोजगार तक के मामले में हालत खराब है!
§  जब राजस्थान का कई चरणों में गठन हुआ तब स्थितियां भिन्न थी, राजस्थान के संसाधनों के सापेक्ष जनसंख्या बहुत कम थी, विकास की प्रक्रिया स्थानीय प्रशासन पर ज्यादा निर्भर थी, लेकिन... अब हालात बदल गए हैं और बदले हालातों में दक्षिणी राजस्थान के सही, संतुलित और संपूर्ण विकास के लिए केन्द्र, राज्य सरकार को, उदयपुर, चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और आसपास के क्षेत्र को जोड़ कर प्रताप प्रदेश के निर्माण की पहल करनी चाहिए!
§  महाराणा प्रताप ने स्वतंत्र स्वाभिमान का जो संकल्प प्रदर्शित किया, उसको सम्मान देना, उसको संपूर्ण करना, सभी का कर्तव्य है और यह प्रताप प्रदेश के गठन से संभव है!
§  दक्षिण राजस्थान के आदिवासियों की जरूरतों को समझते हुए यदि प्रताप प्रदेश पर ध्यान नहीं दिया गया तो आनेवाले समय में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही दलों के इस क्षेत्र में राजनीतिक अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा?

‍प्रदीप द्विवेदी,  वागड़ मूल के वरिष्ठ पत्रकार एवँ राजनीतिक चिंतक
साभार: http://www.palpalindia.com


6 टिप्‍पणियां

Unknown ने कहा…

राणा प्रताप ने राणा पुंजा भील की शरण/सहायता ली थी। और प्रताप ने जो संघर्ष किया वह भीलो की देन है। इसलिए नाम तो भील प्रदेश ही रहेगा। शरण देने वाला बड़ा होता है या लेने वाला। आर्थिक सहायता की बात करे तब भी भामाशाह से कही ज्यादा धन संपदा प्रथा भील ने सौपी थी। इस क्षेत्र का नाम तो भील प्रदेश ही रहेगा। और ये हमारी बहुत पुरानी मांग है। नया बखेड़ा खड़ा करने की जरूरत नही है।

Unknown ने कहा…

Adivasi ariya me sirf bhil pradesh

बेनामी ने कहा…

नाम चाहे भील प्रदेश हो या पूंजा प्रदेश या प्रताप प्रदेश, कोई फर्क नहीं पड़ता. सबसे पहले तो हमारे इलाके साथ हुए अन्याय को रोकने की बात है.
दूसरी बात सिर्फ़ डुंगरपुर बांसवाड़ा के आधार पर अलग प्रदेश नहीं बन सकता, उस में राजस्थान के 3 से 4 अन्य जिले जैसे उदयपुर, प्रतापगढ, राजसमंद, चित्तौड़, भीलवाड़ा आदि शामिल करने होंगे. तो ही अलग राज्य बन सकता है. इसलिए प्रताप प्रदेश नाम एक व्यापक रूप से स्वीकार्य नाम होगा.
तीसरी बात, जो नया राज्य बनेगा उस में सिर्फ राजस्थान को ही तोड़कर बना सकते हैं. क्योँकि इस में कानूनन गुजरात या मध्य प्रदेश अपने इलाके नहीं देंगे.
अलग प्रदेश बनने से सबसे बड़ा फायदा हम आदिवासी भाइयो को होगा. क्योंकि हमारा हक़ जयपुर, सवाई माधोपुर, आदि के सम्पन्न मीणा लोग मार लेते हैं. वह रुक जाएगा. साथ ही हम अपने बजट का सही उपयोग कर पाएंगे. इस से आदिवासी मुख्यमंत्री बनने का मार्ग भी प्रशस्त होगा.

आपका: जगदीश रोत

बेनामी ने कहा…

मैं एक गैर आदिवासी 30 वर्षीय ग्रामीण हु और भील प्रदेश की मांग को समर्थन करता हू , मैं यह भी अच्छी तरह से जानता हू कि आने वाले समय मे भील प्रदेश भी बनेगा और हमारा नसीब रहा हो हमारे जीते जी बनेगा।
यह प्रताप प्रदेश वाली बात सिर्फ आदिवासी कम्युनिटी को दबाने के लिए ही निकाली गई है जो ऐसा बिल्कुल भी नही होने देंगे।
आज एक नई समस्या खड़ी हुई है कि आसपुर और साबला ब्लॉक को सलूंबर जिले में सामिल कर लिया जो किस हद तक सही है ?

हमारी न तो बोली न ही रहन सहन उनसे मेल खाता है फिर भी ऐसा किया गया है यह सिर्फ और सिर्फ राजनीति कदम है सागवाड़ा को कुछ भी नही मिला जो जिला बनने को डिजर्व करता था फिर भी उसे इग्नोर किया गया यह कहा तक सत्य है?
चुनावी वर्ष है इसलिए यह सब बतंगड़ किया है मगर सरकार एक बात ध्यान मे रखे कि इतने सारे नए जिले और तीन नई संभाग तथा इतने सारे नए नगर निगम और नगर पालिका की जरूरतों की पूर्ति के लिए बजट कहा से लाएगी ?

बेनामी ने कहा…

प्रदेश बनाने के लिए आत्म निर्भर होना ज़रूरी है, किसी भी राज्य का राजस्व एवं विकास उसके अन्तर्गत होने वाले उत्पादन एवं खनिज सम्पदा के आधार पर तय होता हैं! थोड़ा सोचिए अगर भील प्रदेश बने या प्रताप प्रदेश लेकिन आपके पास कोई कॉपर खदान, लोहा इस्पात खदान, मैनुफ़ैक्चरिंग के लिए उपायुक्त स्थान एवं ट्रांसपोर्टेशन के लिये साधन इत्यादि उपलब्ध हैं या अधिवासियों के नाम पर केंद्र सरकार के पैकेज पर ही निर्भर होंगे ?? सभी सोचियेगा ज़रूर

बेनामी ने कहा…

1000percente correct