शिव और प्रकृति का अदभुत संगम है महानाल मठ



मनोहारी मैनाल झरना 
महानाल यानी मैनाल आपको भगवान शिव के ज़रिए न सिर्फ आध्यात्म, बल्कि राजस्थान के इकलौते झरने और मनमोहक हरितिमा से प्रकृति का भी साक्षात कराता है. वही हमारे गौरवशाली पुरातत्व और इतिहास से भी रु-ब-रु कराता है.

गौरी मंदिर
हाल ही में (जुलाई के अंतिम दिनों में) मुझे कोटा चित्तौड़ हाइवे पर स्वयं के वाहन से जाने का मौका मिला । इस सड़क के कोटा पहुँचने से पूर्व एक सुंदर स्थान के दर्शन का लाभ मिला ,

कभी अपनी भव्यता का साक्षी रहा रानी का महल
जिसको देख कर मन मे प्रसन्न्ता हुई , साथ ही उतनी ही ग्लानि भी हुई । क्योंकि यह आराध्य देव शिव का पौराणिक स्थान खंडहर बन गया है । एक युग, एक समृद्ध संस्कृति, शिक्षा और  सभ्यता की  साक्षी रही  अनमोल विरासत भग्नावस्था में है. 

मंदिर के गर्भगृह का गुम्बज 
इस पुरातात्विक स्थान को भगवान शिव की शैव भक्तों द्वारा की गई, पूर्व तपोस्थली व मठ के रूप में खासा महत्व अनुभव कराती है । इसे महानाल या मैनाल मठ के रूप में भी जाना जाता है ।  

उसी परिसर में तोड़ा गया गौरी मंदिर
प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार मैनाल बेंगु के सरदार की जागीर का गाँव था , यहाँ श्वेत पाषाण का बना हुवा महानालदेव का विशाल शिवालय मुख्य है और इसी के नाम से इस गाँव का नाम मैनाल पड़ा है ।

रानी महल के अंदरुनी हिस्से 

 (1164-69 ) उस समय संत भावब्रह्मा ने यहाँ के भव्य मंदिर और मठ का निर्माण करवाया था ।
 यहाँ बने मन्दिर को 11 वीं शताब्दी के तत्कालीन राजा पृथ्वीराज चौहान द्वितीय के समय बनवाए गए थे ।

ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्थापित सफेद पत्थरो से बना शिवलिंग 

इसी प्रांगण में आठवीं सदी के बने गणेश जी व गौरी के मंदिर भी है । साथ ही यहाँ पर एक प्राकृतिक सुंदर झरना है जिसमे वर्षा के समय विहंगम दृश्य बनता है जो देखा गया । राजस्थान में इतना बड़ा और सुंदर झरना केवल मैनाल में ही बनता है इसलिए इसे एक मात्र झरना कहा जाता है ।

परिसर में एक और शिव मंदिर जो अभी ठीक-ठाक अवस्था में है

इस झरने के ऊपरी भाग में एक शिव मंदिर है जिसे पृथ्वीराज चौहान की पत्नी सुहिया देवी (रूठी रानी) ने बनाया था ।  इसी स्थान के बायीं और एक महलनुमा आकर्षक दो मंजिला इमारत है जो लगभग खण्डर बन चुकी है जिसमें रानी का निवास माना जा रहा है । 

भगवान गणेश का मंदिर

इस मंदिर की योजना में एक गर्भगृह,एक अंतराल, समवर्ण छत वाला एक रंगमंडप तथा एक छोटे प्रवेश मंडप के साथ उसके सामने स्थित एक नंदी मंडप सम्मिलित है नन्दी की विशाल प्रतिमा जिसे तोड़ डाला है अभी भी है । मंदिर की बाह्य दीवारों पर उत्कीर्ण प्रतिमाये बनावट की उत्कृष्ट शैली का प्रतिनिधित्व करती है|

मंदिर परिसर में ऐसी अनेक देवी प्रतिमाएँ मौज़ूद हैं. जो इसकी भव्यता की कहानी कहती हैं. ज़्यादातर मुर्तियाँ आक्रांताओ ने तोड़ दी है.



यहां बने शैव मन्दिर की निर्माण कला भव्य दिख रही है व शिवलिंग भी दर्शनीय है , कहा जाता है यहाँ पांडवो के 12 वर्ष के वनवास में कुछ समय बिताया था, इसलिए यह महत्वपूर्ण स्थान था , इस स्थान का पौराणिक महत्व रहा है - रामायण काल व महाभारत काल में इसे तीर्थ स्थल माना जाता था । 

प्रवेश द्वार 

सल्तनत काल से पूर्व तक यहां हजारों विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे और यह भारत में नालन्दा व तक्षशिला की भाँति मध्य भारत का शैक्षणिक केंद्र था ।  


दुर्भाग्य रहा कि मुगल आततायी, दुष्ट व क्रूर शासक औरंगजेब ने इसे तोड़ने में कोई कसर बाकी नही रखी । सारे मन्दिर , मठ और पौराणिक स्थल की भव्यता को धार्मिक डाह व उन्माद के चलते खंडहर बना दिया । साथ ही हिन्दू शैव भक्तों का कत्ले आम किया जिससे उसके आस पास सभी लोग व शैव मतावलंबी वहाँ से पलायन कर गए ।


आज भी यह स्थान खण्डर रूप में यथा स्थिति में है । 
मेनाल को 1956 से भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया हुआ है। वर्तमान में यहां की देखभाल पुरातत्व विभाग करता है। पर्यटकों की सुविधा के लिए यहां पर विभाग द्वारा एक होटल भी स्थापित किया गया है।

मंदिर परिसर में भग्नावस्था में एक नंदी प्रतिमा

इसका पुनर्निर्माण करना चाहिए व शैव भक्ति के इस स्थल को वापस शैक्षिक नगर के रूप में यहाँ पर विकास करना चाहिए । परंतु दुर्भाग्य पौराणिक धरोहर को भी सुरक्षित रखना एक चुनौति बन रहा है । 

मेनाल में वैसे तो पुरे साल भर लोग घूमने के लिए आते रहते हैं पर यहां पर आने का सबसे अच्छा समय बरसात का है। उस समय मेनाल का झरना बहुत ज्यादा तेजी से नीचे की और गिरता है और चारों और बहुत ज्यादा हरियाली होती है। एक बार यहाँ की यात्रा जरूर करें । 

भग्न अवस्था में गौरी मंदिर का विशाल नंदी

मठ जहाँ विद्यार्थी रहते थे
इस स्थल के बाहर हनुमानजी का विशाल मंदिर है जहां आस पास के  लोगों द्वारा विशाल रूप दिया गया । 
(स्त्रोत - पुरात्व विभाग के अधिकारी रमेश चन्द्र  योगी , शिलालेख व आमजन )
रुठी रानी मंदिर का प्रवेश द्वार 


यह स्थान डूंगरपुर से सिर्फ 310 किमी और बांसवाड़ा से करीब 275 किमी मैनाल देखने लायक है.
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आलेख एवँ तस्वीरें- राजेन्द्र पंचाल सामलिया

सामलिया, डूंगरपुर मूल के पंचाल आध्यात्म शिक्षण, लेखन और शुभवेला पंचांग का सम्पादन करते हैं एवँ ज्योतिषविद हैं.

2 टिप्‍पणियां

सूर्यकरण सोनी 'सरोज' ने कहा…

सुंदर जानकारी ।

Xyz ने कहा…

इस आलेख का प्रभाव रहा की औरंगजेब द्वारा तोड़े गए मन्दिरों का पुरातत्व विभाग द्वारा संज्ञान लेने के बाद इसे जीर्णोद्धार किया जा रहा है ।