वैभव, विध्वंस, विस्थापन और सनातन जीवटता का साक्षी वाणियाप का श्री ठाकुर जी मंदिर
गुजराती पाटीदार (पटेल) बहुल वणियाप गांव वागड़ के प्राचीन वैभवशाली नगरों अर्थुणा और गलियाकोट के बहुत करीब है. नदी किनारे बसे इस गांव ने न सिर्फ़ अपने पुरा वैभव और आस्था पर आघात झेला, बल्कि कडाणा बैक वॉटर के चलते विस्थापन का दर्द भी.
गांव के समीप बहती माही नदी के किनारे स्थित है विष्णु मंदिर, जो कालांतर में ठाकुरजी के मंदिर के रूप में रूपांतरित किया गया. कहते हैं पहले यहाँ वैष्णव वणिको की घनी बस्ती थी. लेकिन विदेशी आक्रमणकारियो के हमलो और अन्यान्य कारणो से वह यहाँ से पलायन कर गए. वागड़ी और गुजराती में वणिकों को ‘वाणिया’ कहते हैं, इसी कारण इस गांव का नाम वणियाप पड़ा. उन्ही वणिकों ने बनवाया था यहाँ का अपने आराध्य का विष्णु मंदिर. ये बात थी लगभग 12वी सदी की. लगभग 500 सालों तक भगवान विष्णु की पूजा अर्चना होती रही।
इसके बाद विदेशी मुस्लिम हमलावारों की कुदृष्टि का शिकार हुआ. 17 वी शताब्दी में क्रूर, आक्रांताओं की सेना ने अरथूना, गलियाकोट के मंदिरों की मूर्तियों, मंदिरों को तोड़ते समय इस मंदिर पर भी हमला कर दिया और भगवान विष्णु की 6 फीट ऊँची मूर्ति का सिर धड़ से अलग कर दिया, मंदिर को तहस नहस कर दिया।इस मंदिर की भव्यता का अंदाज़ा आप उसकी भग्न प्रतिमा से लगा सकते हैं. बहुत उत्कृष्ट कारीगरी का नमूना यह विष्णु प्रतिमा एक हाथ में शंख और दूसरे में सुदर्शन चक्र लिए अब भी अपने वैभवशाली अतीत को बयाँ कर रही है. दुर्भाग्य से क्रूर हमलावरों ने इसे धड़ से अलग कर दिया. और अब यह डूंगरपुर के राजमाता देवेंद्रकुवर राजकीय संग्रहालय में संरक्षित है. लगभग 6 फीट ऊंची इस मुर्ति के चारो तरफ़ भगवान विष्णु के दशावतार उकेरे हैं. जिसमे मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध आदि अवतारों की प्रतिमा उकेरी हुई थी l यह मूर्ति पारेवा पत्थर से बनी हुई थी.
इसे वाणियाप की जीवटता ही कहेंगे कि तहस-नहस होने के बाद भी गांव और आस्थावान लोग हारे नहीं और वापस खड़े हुए. और लगभग 17वी सदी में ही मंदिर का जीर्णोद्धार किया. लेकिन दूसरी बार मंदिर में भगवान विष्णु के ही अवतार द्वारकाधीश ठाकुर जी का विग्रह स्थापित किया. यह मंदिर का दूसरा चरण था. आहत समाज ने उस समय के अभावों से जुझते हुए जैसे तैसे अपनी आस्था का नया केंद्र बनाया. आख़िर वाणियाप अपने ‘वाणियाप सरकार’ के बगैर कैसे रह सकता था? इस तरह प्रतिष्ठापित हुए ठाकुरजी. इस बाबत मंदिर परिसर में ही शिलालेख मौजूद हैं.
17वी सदी के मंदिर में विराजमान ठाकुरजी की प्रतिमा का अंश खंडित हो जाने के कारण वर्ष 2008 में मंदिर का पुन: जीर्णोद्धार करके नवीन मुर्ति स्थापित करके प्राण प्रतिष्ठा की गई. वह भी ठाकुरजी की है और इसके आभा चक्र में पूर्व के विग्रह के अनुसार ही भगवान विष्णु के दशावतार उकेरे गए हैं. परिसर मे 200 साल पुराना हनुमानजी का मंदिर भी है. परिसर में एक कूप (कुआँ) भी था. जिसे अब बंद कर दिया है.
करीब 12 बीघा ज़मीन में फैले इस परिसर के विकास में गांव के युवा विशेष रुचि ले रहे हैं. यहीं के युवा साथी नीलेश पाटीदार, गोपाल पाटीदार और नंदकिशोर पाटीदार बताते हैं कि गांव के करीब सवा सौ पाटीदार परिवार अन्य समाजों को साथ में लेकर मंदिर के विकास और व्यवस्थापन में सक्रिय हैं. मंदिर में सुबह--शाम नित्य आरती उतारी जाती है, पूर्णिमा पर भजन कीर्तन का आयोजन होता है और हर एकादशी पर गांव की महिला मंडल द्वारा संकीर्तन, भजन संध्या होती हैं। ढ़ोल, नगाड़ो, घण्टियों, वेदों की ऋचाओं से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहता था। मंदिर में खासी चहल पहल रहती थी। मंदिर में बिराजमान भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा मनमोहक और आकर्षक है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर हर वर्ष मेला लगता है।
मंदिर परिसर में युवाओं द्वारा पिछले 5 सालों में लगभग 40 लाख रुपयों के कार्य जन सहयोग से किये गए हैं ,और साथ ही एक विशाल डॉम निर्माण का कार्य भी जन सहयोग से करवाया जा रहा है। मंदिर परिसर में एक पुस्तकालय/ वाचनालय और गौशाला निर्माण भी विचाराधीन है. गाँव के युवाओं द्वारा मंदिर परिसर को विस्तृत रूप देने के लिए वर्ष 2021 में प्लान तैयार किया औऱ मंदिर के आसपास के भूमि मालिकों से आग्रह कर मंदिर के पक्ष में भूमि का दान करवा कर एक सुंदर बगीचा, सेल्फ़ी पॉइंट और सत्संग, भजन कीर्तन के लिए समुचित परिसर बनाया गया। कुल मिलाकर पूरे मंदिर परिसर को एक सनातन संस्कृति केंद्र के रूप मे विकसित करने के लिए प्रयासरत है वाणियाप. इस गाँव के युवाओं के उत्साह और कर्मठता, धर्मनिष्ठा को देखते हुए लगता है-भविष्य में इस स्थान पर अनुपम भव्यता, ओर दिव्यता देखने को मिलेगी।
मंदिर के आसपास की भूमि दानदाताओ द्वारा दान दी गई है जिनमे प्रमुख रूप से स्व.अमरजी पाटीदार, स्व. श्री राघवजी पाटीदार का विशेष सहयोग रहा है। इनके अलावा गांव के ही धुलजी रतनलाल रावल, तुलसीरामजी/ शिवराम पाटीदार, गणेश, ईश्वर/ रावण जी ,किशोर, दिनेश/ शिवराम, जगजी /कालिया, पंकज /रामेंग पाटीदार, परेश /अमरजी, गौकल /गौतम, हुका /प्रताप पाटीदार आदि भक्तों ने जमीन दान कर पुण्यलाभ अर्जित किया है, इन दानदाताओ के कारण अब मंदिर परिसर में लगभग 12 बीघा ज़मीन हो गई है। इस पूरे क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण का अत्यंत प्राचीन और एकमात्र मंदिर होने की वजह से यंहा पर भक्तों का आनाजाना अनवरत लगा रहता है।
-भगवतीलाल पांचाल, सामलिया (सेवानिवृत्त नायब तहसीलदार) एवँ जितेंद्र जवाहर दवे
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