वैभव, विध्वंस, विस्थापन और सनातन जीवटता का साक्षी वाणियाप का श्री ठाकुर जी मंदिर


वागड़ के दक्षिण छोर पर बसा वागड़ अंचल सदियों से केवल शैव ही नहीं वैष्णव आस्था का भी प्रमुख केंद्र रहा है. इसी क्रम में वणियाप ग्राम का श्री कृष्ण मंदिर एक समृद्ध इतिहास और अटूट आस्था का केंद्र है. गलियाकोट कस्बे से महज़ ढाई किमी और सागवाड़ा से करीब 13 किमी दूर वागड़ सलिला माही नदी के तट पर वणियाप गांव मे अवस्थित यह मंदिर अपने पुरा वैभव, विध्वंस और बार बार पुननिर्माण का साक्षी रहा है. 

गुजराती पाटीदार (पटेल) बहुल वणियाप गांव वागड़ के प्राचीन वैभवशाली नगरों अर्थुणा और गलियाकोट के बहुत करीब है. नदी किनारे बसे इस गांव ने न सिर्फ़ अपने पुरा वैभव और आस्था पर आघात झेला, बल्कि कडाणा बैक वॉटर के चलते विस्थापन का दर्द भी.

गांव के समीप बहती माही नदी के किनारे स्थित है विष्णु मंदिर, जो कालांतर में ठाकुरजी के मंदिर के रूप में रूपांतरित किया गया. कहते हैं पहले यहाँ वैष्णव वणिको की घनी बस्ती थी. लेकिन विदेशी आक्रमणकारियो के हमलो और अन्यान्य कारणो से वह यहाँ से पलायन कर गए. वागड़ी और गुजराती में वणिकों को वाणियाकहते हैं, इसी कारण इस गांव का नाम वणियाप पड़ा. उन्ही वणिकों ने बनवाया था यहाँ का अपने आराध्य का विष्णु मंदिर. ये बात थी लगभग 12वी सदी की. लगभग 500 सालों तक भगवान विष्णु की पूजा अर्चना होती रही।

इसके बाद विदेशी मुस्लिम हमलावारों की कुदृष्टि का शिकार हुआ. 17 वी शताब्दी में क्रूर, आक्रांताओं की सेना ने अरथूना, गलियाकोट के मंदिरों की मूर्तियों, मंदिरों को तोड़ते समय इस मंदिर पर भी हमला कर दिया और भगवान विष्णु की 6 फीट ऊँची मूर्ति का सिर धड़ से अलग कर दिया, मंदिर को तहस नहस कर दिया। 

इस मंदिर की भव्यता का अंदाज़ा आप उसकी भग्न प्रतिमा से लगा सकते हैं. बहुत उत्कृष्ट कारीगरी का नमूना यह विष्णु प्रतिमा एक हाथ में शंख और दूसरे में सुदर्शन चक्र लिए अब भी अपने वैभवशाली अतीत को बयाँ कर रही है. दुर्भाग्य से क्रूर हमलावरों ने इसे धड़ से अलग कर दिया. और अब यह डूंगरपुर के राजमाता देवेंद्रकुवर राजकीय संग्रहालय में संरक्षित है. लगभग 6 फीट ऊंची इस मुर्ति के चारो तरफ़ भगवान विष्णु के दशावतार उकेरे हैं. जिसमे मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध  आदि अवतारों की प्रतिमा उकेरी हुई थी l यह मूर्ति पारेवा पत्थर से बनी हुई थी. 

इसे वाणियाप की जीवटता ही कहेंगे कि तहस-नहस होने के बाद भी गांव और आस्थावान लोग हारे नहीं और वापस खड़े हुए. और लगभग 17वी सदी में ही मंदिर का जीर्णोद्धार किया. लेकिन दूसरी बार मंदिर में भगवान विष्णु के ही अवतार द्वारकाधीश ठाकुर जी का विग्रह स्थापित किया. यह मंदिर का दूसरा चरण था. आहत समाज ने उस समय के अभावों से जुझते हुए जैसे तैसे अपनी आस्था का नया केंद्र बनाया. आख़िर वाणियाप अपने वाणियाप सरकार के बगैर कैसे रह सकता था? इस तरह प्रतिष्ठापित हुए ठाकुरजी. इस बाबत मंदिर परिसर में ही शिलालेख मौजूद हैं.

 

17वी सदी के मंदिर में विराजमान ठाकुरजी की प्रतिमा का अंश खंडित हो जाने के कारण वर्ष 2008 में मंदिर का पुन: जीर्णोद्धार करके नवीन मुर्ति स्थापित करके प्राण प्रतिष्ठा की गई. वह भी ठाकुरजी की है और इसके आभा चक्र में पूर्व के विग्रह के अनुसार ही भगवान विष्णु के दशावतार उकेरे गए हैं. परिसर मे 200 साल पुराना हनुमानजी का मंदिर भी है. परिसर में एक कूप (कुआँ) भी था. जिसे अब बंद कर दिया है. 

करीब 12 बीघा ज़मीन में फैले इस परिसर के विकास में गांव के युवा विशेष रुचि ले रहे हैं. यहीं के युवा साथी नीलेश पाटीदार, गोपाल पाटीदार और नंदकिशोर पाटीदार बताते हैं कि गांव के करीब सवा सौ पाटीदार परिवार अन्य समाजों को साथ में लेकर मंदिर के विकास और व्यवस्थापन में सक्रिय हैं.  मंदिर में सुबह--शाम नित्य आरती उतारी जाती है, पूर्णिमा पर भजन कीर्तन का आयोजन होता है और हर एकादशी पर गांव की महिला मंडल द्वारा संकीर्तन, भजन संध्या होती हैं। ढ़ोल, नगाड़ो, घण्टियों, वेदों की ऋचाओं से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहता था। मंदिर में खासी चहल पहल रहती थी। मंदिर में बिराजमान भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा मनमोहक और आकर्षक है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर हर वर्ष मेला लगता है। 

मंदिर परिसर में युवाओं द्वारा पिछले 5 सालों में  लगभग 40 लाख रुपयों के कार्य जन सहयोग से किये गए हैं ,और साथ ही एक विशाल डॉम निर्माण का कार्य भी जन सहयोग से करवाया जा रहा है। मंदिर परिसर में एक पुस्तकालय/ वाचनालय और गौशाला निर्माण भी विचाराधीन है. गाँव के युवाओं द्वारा मंदिर परिसर को विस्तृत रूप देने के लिए वर्ष 2021 में प्लान तैयार किया औऱ मंदिर के आसपास के भूमि मालिकों से आग्रह कर मंदिर के पक्ष में भूमि का दान करवा कर एक सुंदर बगीचा, सेल्फ़ी पॉइंट और सत्संग, भजन कीर्तन के लिए समुचित परिसर बनाया गया। कुल मिलाकर पूरे मंदिर परिसर को एक सनातन संस्कृति केंद्र के रूप मे विकसित करने के लिए प्रयासरत है वाणियाप.  इस गाँव के युवाओं के उत्साह और कर्मठता, धर्मनिष्ठा  को देखते हुए लगता है-भविष्य में इस स्थान पर अनुपम भव्यता, ओर दिव्यता देखने को मिलेगी। 

मंदिर के आसपास की भूमि दानदाताओ द्वारा दान दी गई है जिनमे  प्रमुख रूप से स्व.अमरजी पाटीदार, स्व. श्री राघवजी पाटीदार का विशेष सहयोग रहा है। इनके अलावा गांव के ही धुलजी रतनलाल रावलतुलसीरामजी/ शिवराम पाटीदार, गणेश, ईश्वर/ रावण जी ,किशोर, दिनेश/ शिवराम, जगजी /कालिया, पंकज /रामेंग पाटीदार, परेश /अमरजी, गौकल /गौतम, हुका /प्रताप  पाटीदार आदि भक्तों ने जमीन दान कर पुण्यलाभ अर्जित किया है, इन दानदाताओ के कारण अब मंदिर परिसर में लगभग 12 बीघा ज़मीन हो गई है। इस पूरे क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण का अत्यंत प्राचीन और एकमात्र मंदिर होने की वजह से यंहा पर भक्तों का आनाजाना अनवरत लगा रहता है।  

-भगवतीलाल पांचाल, सामलिया (सेवानिवृत्त नायब तहसीलदार) एवँ जितेंद्र जवाहर दवे 

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11 टिप्‍पणियां

बेनामी ने कहा…

दक्षिणी राजस्थान के वागड़ क्षेत्र का अंतिम छोर----जंहा पर 12वी सदी का विष्णु मंदिर जो वर्तमान में भगवान ठाकुरजी का दर्शनीय, चमत्कारी स्थान बन चुका है।
यह सनातन संस्कृति की विरासत हम सब के लिए सनातन धर्म की गौरवशाली अतीत का प्रमाण है।

बेनामी ने कहा…

यह आलेख वागड़ ,गुजरात राजस्थान के कृष्ण भक्तों के लिए एक अनजान विरासत को देखने औऱ समझने के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा,ऐसी आशा करता हूँ।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर आलेख, आज एक नवीन धार्मिक स्थल की जानकारी मिली।
भगवती लाल जी पानंचाल को साधुवाद 👍🌷

बेनामी ने कहा…

आदरणीय , भगवतीलाल जी (रि नायब तहसीलदार साहब) का यह आलेख निश्चित ही हमारे भक्तिकालीन इतिहास को दर्शाता है साथ ही हमारे पूर्वज ईश्वर के प्रति अद्भुद श्रद्धा को तन मन धन से कितना महत्व देते थे और वो काल कितना समृद्धि से परिपूर्ण रहा
वाकई आप के द्वारा बहुत मेहनत से महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई गई है वह वर्तमान पीढ़ी को बहुत गौरव प्रदान करेगी।

Xyz ने कहा…

आदरणीय नायब साहब द्वारा वनीयाप का कृष्ण मंदिर का लेख बहुत अच्छा लगा यह एक ऐतिहासिक और वागड़ को गौरवान्वित करने वाला हैं। धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

वागड़ की बहुत सी विरासते ऐसी है जिनकी जानकारी बहुत से लोगो को नही है। वागड़ में बहुत से प्राचीन कृष्ण मंदिर है। आप द्वारा यह प्रकाशित लेख सुंदर है।

बेनामी ने कहा…

वागड़ की प्राचीन ऐतिहासिक विरासत को को वर्तमान समय में अवगत करवाना बहुत ही सुंदर कार्य। वागड़ का आध्यात्मिक धार्मिक स्थलों की जानकारी आम लोगों को नहीं है।
आदरणीय पचाल साहब द्वारा वनीयाप का कृष्ण मंदिर का लेख बहुत अच्छा लगा यह एक ऐतिहासिक और वागड़ को गौरवान्वित करने वाला हैं। धन्यवाद

Nilesh ने कहा…

हमारे गांव की ऐतिहासिक धरोहर को इस आर्टिकल और ब्लॉग के माध्यम से समूचे वागड़ में प्रसारित करने के लिए श्रीमान भगवतीलाल जी नायब साब और जितेन्द्र जी भाई साहब का खूब खूब आभार धन्यवाद भगवान ठाकुर जी से प्रार्थना करता हूँ की भगवान आपको सदैव अपने पथ पर उन्नति और तरक्की देवे और दीर्घायु बनावे ।
🚩🚩हरे कृष्णा 🚩🚩

बेनामी ने कहा…

भगवती लाल पँचाल का गांव वणीयाप के निवासियों को जय श्री कृष्ण🙏

श्री मान- नीलेश जी हमने जो कुछ भी इस आलेख में समावेश किया है वह सब कुछ ठाकुरजी की लीला है।
जिसने समय समय पर अलग अलग रुपों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर मानव को पुरुषार्थ करते रहने का ज्ञान दिया है।
भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा का फ़ोटो देखकर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं तो सोचिए जब इस 6 फिट ऊँची मूर्ति की पूजा होती होगी तब इसका स्वरूप कितना भव्य, अलौकिक रहा होगा।

ठाकुरजी के इस अद्भुत स्वरूप का वर्णन करते हुए हम अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं।
इस ऐतिहासिक स्थल की सटीक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आप ओर नन्दकिशोर जी पाटीदार का आभार प्रकट करते हैं।
ओर प्रार्थना करते हैं प्रकृति की गोद में बसे इस धाम का विकास, यश, कीर्ती चारो दिशाओं में प्रकाशित हो।
जय श्री ठाकुरजी की 🌷

बेनामी ने कहा…

वागड़ वणियाप के ठाकुर जी का आलेख पढ़ कर बहुत प्रसन्नता हुई । बहुत ही अस्तित्व इतिहास सामाजिक समरसता श्रद्धा आस्था विश्वास के साथ जुड़ा मन्दिर। वागड़ क्षेत्र में कई ऐसे मन्दिर दर्शनीय स्थल हैं जिसके बारे में समय के साथ वागड़ के लोग ही नहीं जानते है वर्तमान समय में ऐसे दर्शनीय स्थलों की से परिचय युवा पीढ़ी को कराने का कर्तव्य कर्म धर्म बनता है 🙏👏

Pankaj Panchal ने कहा…

श्री कृष्ण के दर्शन करने को आतुरता जगाने वाली इस जानकारी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।