वागड़ में आनंद चौदस के रूप में अपना आनंद बिखेरता है अनंत चतुर्दशी पर्व
गणपति विसर्जन का पर्व अनंत चतुर्दशी वागड़ अंचल में एक अनूठे स्वरूप ‘ आनंद चौदस’ के रूप में मनाया जाता है!
गणपति विसर्जन. फोटो: हर्षद कुसुम रोत
भारत वर्ष में बड़े धूमधाम से मनाया जाने वाला गणेशोत्सव पर्व आज समापन होने जा रहा है । हर जगह 10 दिवसीय उत्सव में गणपति के प्रति अगाध श्रद्धा , भक्ति , आराधना , सुमिरन , पूजा और अर्चना की जाती है ।भगवान गणेशजी का आज विसर्जन भी किया जाता है । लोकमान्य तिलक ने
समाज में एकता, सामाजिक समरसता लाने व स्वतंत्रता आंदोलन के लिये प्रेरणा
हेतु इस त्यौहार को सार्वजनिक रूप दिया था । भगवान के आशीर्वाद से इस पर्व ने
दक्षिण भारत में एक बड़ा कार्य किया, समाज में जागृति आई और
संगठन को बल मिला । आज भी पूरे भारत में हर घर, फले, चौराहे, गाँव व नगर में यह उत्सव स्वप्रेरणा से बड़े
स्तर पर मनाया जाता है. जिसमें कोई किसी
का निजी स्वार्थ नही होता है, गणेशजी हमारी संस्कृति के
प्राण है जो भारतीय संस्कृति को अक्षुण्य बनाये हुए है । अग्र पूजा में और
बुद्धिमत्ता में आपका कोई विकल्प नही है । आपके शरीर के हर अंग से प्रेरणा मिलती
है । आपका वाहन मूषक है । आप शिव और पार्वती के पुत्र है । रिद्धि- सिद्धि के दाता
है । गणेश जी कलयुग में जन जन के प्रिय देव है ।
आज ही के दिन भाद्रशुक्ल चौदस को अनन्त भगवान की भी पूजा की
जाती है । ॐ अनन्ताय नमः मन्त्र से भगवान विष्णु को नमन किया जाता है । भगवान की
पूजा के साथ एक सूत्र धारण किया जाता है । जिसे अनन्त सूत्र (अनंत चौदस का डोरा)
कहते है । जिसमें व्रत व कथा भी सुनी जाती है ।
माना जाता है कि प्राचीन काल में सुमन्तु नामक वसिष्ठ गोत्रीय
मुनि थे उनकी पुत्री का नाम शिला था । पुत्री अत्यंत शीलवान थी, उसका
विवाह कौण्डिन्य ऋषि से हुआ था । जिससे कौण्डिन्य के घर में सुख समृद्धि आ गयी और
जीवन सुखमय बन गया । दुर्भाग्यवश एक दिन कौण्डिन्य ऋषि ने शिला का सूत्र तोड़ कर आग
में फेंक दिया और शीला का अपमान किया ।
समय परिवर्तित हुआ ऋषि के घर में दरिद्रता आ गई और वे दुःखी
हो गए । तब वे अपनी पत्नी के साथ वन वन भटकने लगें । दयानिधान भगवान ने वृद्ध रूप
में दर्शन देकर कहा की तुम अनन्त चतुर्दशी का व्रत करो और यह व्रत पुनः किया , भगवान
की कृपा से सुख समृद्धि वापस मिली । कौण्डिन्य व शिला के घर पर सुख समृद्धि मिली ।
तब से महिलाएं यह व्रत करने लगी । इस व्रत में एक लाल रेशमी धागा चौदह गांठ लगाकर ,
जिसे भगवान का पूजन इस मंत्र को पढ़ कर पुरुष दाहिने हाथ में व
स्त्री बाएँ हाथ में बांधते है --
अनन्त संसार महासमुन्द्रे, मगन्नान समभ्युद्धर वासुदेव
।
अनन्तरूपे विनियोजितात्मा अनन्तरूपाय नमो नमः ।।
अनन्तं भगवान के व्रत करने के पश्चात नैवेध चढ़ाकर प्रसाद
बांटा जाता है व स्वयं ग्रहण किया जाता है । यह व्रत चौदह वर्ष तक
किया जाता है ।
सामाजिक समरसता के इस पर्व में हिन्दूओ के सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर कथा सुनते है और व्रत करते है । इस व्रत को
जन जाति , अनुसूचित जन जाति और सामान्य वर्ग के सभी पुरुष -
स्त्रियों द्वारा किया जाता है जिसमें कोई जातिभेद न होकर सभी माता- बहने मिलकर
करती है , यह व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है । 🙏🍂🌹🚩
अनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र पंचाल सामलिया
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