वनवासी राम बिराजे है वागड़ की अयोध्या नादिया में, यहाँ अनूठी है रामजी की लीला और रामनवमी मेला



वागड़ धरा पर भगवान श्रीराम के प्राचीन मंदिरो में प्रमुख स्थान है डूंगरपुर ज़िले के नादिया गांव के श्रीरघुनाथ मंदिर का! ज़िला मुख्यालय से करीब 55 किमी और सागवाड़ा से करीब 22 किमी दूर चितरी-चिखली मार्ग पर स्थित है नादिया-गरियाता. इसके करीब 10 किमी दूर वागड़ की प्राचीन राजधानी गलियाकोट है.


नादिया रघुनाथजी के विग्रह के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. यहाँ के शिक्षाविद हंसमुख जोशी बताते हैं कि यहाँ वेणाजी ब्राह्मण नामक एक भक्त हुआ करते थे. जो संवत 1545 में जन्मे थे और भक्तिमती मीराँ बाई व गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे. कहते हैं कि भक्त वेणाजी से मीराँबाई की मुलाकात पर मीराँ ने उन्हे भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा भेंट की थी, जो रघुनाथजी की मुख्य प्रतिमा के साथ आज भी इस रघुनाथजी मंदिर में विराजमान है. बताते हैं कि मस्त-मलंग वेणाजी अपने भक्ति भाव की धुन में सीमावर्ती गुजरात में भटक गए तो आसरे की तलाश में एक गाय के पीछे-पीछे एक गुफा में पहुंच गए. वहाँ गाय तो गायब हो गई लेकिन साधुवेश में भगवान नारायण ने उन्हे दर्शन दिए और भोजन करवाकर वेणाजी को एक शिला देकर कहा कि, “इससे मुर्ति बनवाकर पूजा करना !”


श्रीराम का वनवासी स्वरूप:
मंदिर से जुड़े मुम्बईवासी बिजनेसमेन विनोद जोशी बताते हैं कि,  वेणाजी उस शिला को अपने सिर पर लादकर वागड़ लौटे और कुशल शिल्पकार की तलाश शुरु की. आखिर में उन्हे एक प्रज्ञाचक्षु (अंधा) शिल्पकार मिला तो वेणाजी ने एक केले के पत्ते पर वनवासी धनुर्धारी श्रीराम का चित्र उकेरकर दिया. और जब उसे प्रज्ञाचक्षु शिल्पकार ने मुर्ति बनाने के लिए छैनी हथौड़ा हाथ में लिया तो उसे दिव्य दृष्टि मिली, जिसके बल पर मुर्ति को आकार दिया.  जब रामजी का विग्रह बन गया तो शिल्पकार उसे चकित होकर भक्ति भाव से निहारने लगा और उसी भाव विह्लता में उसके कान पर रखी छैनी गिरकर प्रतिमा के पैर पर पड़ी. जिससे उसका अंगूठा थोड़ा खंड़ित हो गया. सभी आशंकित और दुखी हो गए. लेकिन रात में शिल्पकार को सपने में प्रतिमा ने कहा कि, “मुर्ति कोई खंड़ित नहीं हुई है. दरअसल ये रावण से युद्ध के दौरान मेरे पांव में लगे तीर का निशान है!”



वागड़ का अहम मेला:
श्रीरामनवमी का पावन दिन इस मंदिर के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण वागड़ क्षेत्र के लोगो के लिए विशेष महत्व रखता है. मंदिर प्रवक्ता हरिशंकर जोशी बताते हैं कि, इसी दिन वागड़ के प्रमुख मेलो में एक मेला यहाँ भरता है. तैयारियाँ तो नवरात्र कलश स्थापना से ही शुरु हो जाती हैं, जब जावरा (जौ) की वाडियाँ रोपी जाती हैं. रामनवमी के दिन प्रभू को अर्पण करने के लिए भक्तगण अपने अपने घरो में श्रद्धाभाव से ज्वार बोते हैं. जोशी बताते हैं कि, नवमी के एक दिन पहले अहमदाबाद से भक्तो का कारवाँ ध्वज लेकर रवाना होता है और उसी दिन क्षेत्रपाल मंदिर (खड़गदा) में ठहरता है और ठीक रामनवमी को पैदल ही सुबह 10 बजे तक नादिया गांव पहुंचता है. वहाँ बस स्टैंड पर बरगद के समीप उनका स्वागत सत्कार किया जाता है. वहाँ से अपनी मन्नत (बाधाओ) के अनुसार कुछ भक्त दंड़वत चलते (रेंगते) हुए करीब एक किमी दूर मंदिर जाते हैं. और वहाँ पर दोपहर 11 से 12 के बीच मुख्य मंदिर का ध्वजारोहण और भजन-कीर्तन होता है. ठीक 12 बजे भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और प्रसाद वितरण व सभी के लिए भोजन भंड़ारा किया जाता है.


रसिको के लिए रासलीला:
इसके साथ ही मेला अपने परवान पर चढ़ता है, जिस में न सिर्फ़ वागड़ बल्कि गुजरात, मालवा आदि से भी कई श्रद्धालु मेलार्थी आते हैं. शाम को करीब साढे चह बजे श्रीरामनवमी की महाआरती के बाद शुरु होती है यहाँ की मशहूर रासलीला ! रामनवमी की इस शाम को नादिया गांव वाकई में आनंद से सरोबार होकर नंदपुर बन जाता है. आस पास के गांवो ओबरी, दिवडा, भीलूड़ा, और पादरडी (बांसवाड़ा) से रावल (योगी) तथा ब्राह्मण समाज के कई कलाकार भगवान राम के जीवन की लीलाओ का मंचन करते हुए दर्शको को मंत्रमुग्ध करते हैं. श्रीराम जन्म, सीताहरण, रावण वध आदि प्रसंगो वाली यह रासलीला अगले दिन सुबह 7 बजे तक चलती रहती है. हैरानी की बात है कि सदियो पुरानी यह परम्परा आज के डिजिटल युग में भी अपनी मौलिकता के साथ कायम है.


एकादशी-द्वादशी
रामनवमी के मेले और रासलीला के बाद भी आयोजनो का सिलसिला जारी रहता है. दशमी तिथि को विश्राम के बाद एकादशी की रात को फिर से रासलीला का मंचन होता है. और द्वादशी के दिन सुबह में भगवान को मुकुट पहनाया जाता है और लोग अपनी मनोकामनाएँ पूरी होने पर मन्नते छोड़ते हैं
, छत्र आदि चढ़ाते हैं.

मुम्बई में आईटी प्रोफेशनल गांव के युवा राजेश जोशी एक और दिलचस्प मान्यता के बारे में बताते है कि यहाँ रामनवमी के दिन प्रभू श्रीराम की प्रतिमा का आकार घटता-बढ़ता है. उन पर चढाए जाने वाले ज्वार के गिरने से भक्त प्रतिमा की कद वृद्धि का कयास लगाते हैं. इस तरह इस वनवासी अंचल में श्रीराम की ये वनवासी प्रतिमा पूरे विश्व में अनूठी है.

~ जितेंद्र जवाहर दवे, ओबरी | मुम्बई  ©सर्वाधिकार सुरक्षित

7 टिप्‍पणियां

Pandya ने कहा…

जय श्री राम
एक बार रामनवमी के दिन दर्शन करने का सुअवसर मिला है

Roaming Tribe ने कहा…

अद्भुत।

यश सुथार चितरी ने कहा…

जय श्री राम

Unknown ने कहा…

जय श्री राम

newsbharat ने कहा…

Jay shree ram

बेनामी ने कहा…

Jay shree Ram
Vastav mein Katha sarahniy hai

बेनामी ने कहा…

जोरदार संकलन