सरोदा में सिर्फ़ 5 रुपए में ज़रूरतमंदों की भूख मिटाती है 'माँ की रसोई' !



भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाने जैसे मानवीय कर्म से बड़ा दान पुण्य क्या होगा?? भूख मिटाना हर इंसान के लिए एक चुनौति है, लेकिन जात-पांत, ऊंच-नीच, धर्म नस्ल से परे होकर सबकी भूख मिटाने की ज़िम्मेदारी कुछ विरले ही उठाते हैं.
मानव सेवा की इसी बुनियादी ज़िम्मेदारी को निभाने का बीड़ा उठाया है सरोदा गांव के जवाहर तरुण प्रेरित माँ की रसोई ने !!डूंगरपुर ज़िले की सागवाड़ा तहसील में सरोदा गांव में हाल ही में सेवा और परमार्थ की विशुद्ध भावना से, निजी स्तर से सिर्फ़ पांच रुपए में भरपेट भोजन का यह प्रकल्प शुरु हुआ है.

               रिटायर्ड शिक्षाविद,साहित्यकार और ज्योतिषाचार्य जवाहर तरुण ने अपनी दिवंगत पत्नी स्व. शशिकला की स्मृति में नर सेवा, नारायण सेवा के मूल भाव से जब इस प्रकल्प की इच्छा ज़ाहिर की तो उनके बेटो, सागवाड़ा उप प्रधान और भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता हितेश रावल, एडवोकेट कल्पेश रावल और ज्योतिषी निश्छल रावल ने अपने परिजनो और ग्रामवासियो के साथ मिलकर इसे साकार करने का बीड़ा उठाया. और इस तरह इस साल (2020 में) शिवरात्रि के पावन अवसर पर बेणेश्वर पीठाधीश्वर अच्युतानंद महाराज एवँ लोकसभा सांसद कनकमल कटारा के कर-कमलो से इसका श्रीगणेश हुआ.

               फिलहाल सरोदा गांव के नीलकंठ मोड़ पर अपने ही आवास के बाहर चलने वाली इस माँ की रसोई से रोजाना करीब 200 लोग स्वादिष्ट और सेहतमंद भोजन पाकर अपनी क्षुधा शांत करते हैं. तरुण बताते हैं कि बच्चो की भूख को माँ से बेहतर कोई नहीं समझता. और कुछ समय पूर्व बेटे हितेश ने जब दिल्ली में दादी की रसोई प्रकल्प के बारे में देखा-सुना तो उन्हे अपनी माँ की स्मृति में ऐसा ही प्रकल्प शुरु करने का विचार आया. जिसे सभी परिजनो और शुभचिंतको ने योजनाबद्ध रूप देकर साकार किया.

                         इसके अलावा जिस तरह माँ प्रेम से और बच्चो के लिए शुद्ध से शुद्ध भोजन की भावना से खाना बनाती-परोसती है, इसी भाव से यहाँ बकायदा सामग्री की शुद्धता और लोगो की सेहत व सम्मान का बहुत ध्यान रखा जाता है. महंगे बासमती चावल, बढिया क्वालिटी की दाल, सब्जियो व मसालो से तैयार यह भोजन वाकई में माँ के हाथ से बने भोजन की याद दिला देता है. पांच रुपये का मामुली टोकन शुल्क इसलिए रखा है, कि खाने वाले के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचे. यहाँ कई लोग मुफ्त में भी भोजन कर लेते हैं.
                                  ‘तरुण बताते हैं कि अभी एक वर्ष तक का खर्च उन्होंने स्वयँ वहन करने का फैसला किया है, उसके बाद भी हरि इच्छा और जनसहयोग से यह क्रम जारी रखने की उनकी विधिवत योजना है.  फिलहाल सिर्फ़ पांच रुपए में भरपेट स्वादिष्ट दाल-चावल-सब्जी परोसी जाती है. आगे रोटी व नमकीन आदि जोड़ने की भी इच्छा है, जिसके लिए रोटीमेकर मशीन लाने की भी योजना है. इसके अलावा जो व्यक्ति अपने दिवंगत परिजन की स्मृति में या जन्मदिवस या विवाह की वर्षगांठ आदि में दान देना चाहे तो उसे यहाँ सहज स्वीकार किया जाएगा. 
                             दोपहर 11 से दो बजे तक चलने वाले इस अन्नक्षेत्र में एक कूक और एक सफ़ाईकर्मी रखा है. बाकी काम काज खुद जवाहर तरुण और उनके परिजन हितेश, कल्पेश, निश्छल और नरेश, नरेंद्र रावल, बहुए, भूपेंद्र भट्ट, किशोर भट्ट, चंद्रकांत शुक्ला, हेमेंद्र पंड्या,  निखिल व्यास, दिलीप जैन, संतोष भाई, गजेंद्र जैन, चिमन पटेल, मुकेश पटेल, सेवालालजी जैन, आदिश जैन, विमल भगोरा, कड़वा भगोरा, सपना रावल, और बहुए और नाती-पोतो समेत गांव के जागरुक नागरिक श्रमदान करके सम्भाल रहे हैं. जनजाति बहुल क्षेत्र में इस प्रकल्प का लाभ ना केवल आते-जाते राहगीर, बल्कि आस-पास के स्कूली बच्चे व अस्पताल के मरीज़ भी उठा रहे हैं.

- जितेंद्र जवाहर दवे  

4 टिप्‍पणियां

Unknown ने कहा…

Thanks

Shree Surya Times ने कहा…

अच्छी पहल

Unknown ने कहा…

बेहतर शुरुआत परमात्मा का साथ है, इसी कारण यह भाव.जागृत हुआ है।

JitDave ने कहा…

आप सभी सराहने वालो को धन्यवाद।