हरिजन बस्ती में आते हैं ओबरी के प्रथमेश गणेश ‘ओबरी के राजा’ !!
आज़ादी की लड़ाई के दौरान जन जागरण के मकसद से लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को सार्वजनिक स्वरूप दिया. और इसके बाद यह पूरे देशभर में फैला. तो उत्सवधर्मी वागड़ इससे कैसे अछूता रहता? अब वागड़ के हर गांव-शहर में गणेशोत्सव धूम धाम से मनाया जाता हैं. इसी सिलसिले में अपनी अलग पहचान रखते हैं ‘ओबरी के राजा’ जो कस्बे की हरिजन बस्ती में बिराजते हैं.
ओबरी हरिजन समाज के गणपति |
करीब 10-12 साल पहले ओबरी में सार्वजनिक गणेशोत्सव शुरु
हुआ. और पूरे ओबरी क्षेत्र में प्रथमेश गणेश को सर्वप्रथम लाने का श्रेय जाता है
ओबरी के धर्मपरायण हरिजन समाज को. आप इसे हरि इच्छा ही कह सकते हैं या हरिकृपा जो हरि
के अपने सर्वप्रिय हरिजन समाज को यह गौरव और सौभाग्य मिला ! नानुराम हरिजन बताते हैं कि साल 2009 में समाज ने सर्वसम्मती से गणपति बप्पा लाने का फैसला
किया.
यहाँ गणेश चतुर्थी के पावन पर्व से शुरु होकर अनंत चतुर्थी तक पूरे 10 दिन गणपति बप्पा बिराजते हैं. कई वर्षों से यह सिलसिला अबाध रूप से जारी है और इसकी ख़्याति भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. अब ओबरी में सूर्यकुंड आदि अन्य जगहों पर भी गणपति लाने की परम्परा शुरु हुई है, लेकिन हरिजन बस्ती के ‘ओबरी के राजा’ के ठाठ ही निराले हैं. अमूमन हर बार यहाँ की गणेश प्रतिमा बेहद आकर्षक और विशाल होती है. शुरुआत में हरिजन समाज तक केंद्रित रहा, लेकिन फिर आस-पास के जागरुक बुनकर व यादव समाज और आख़िरकार ओबरी का सर्वसमाज इस और आकर्षित होने लगा. इसी के चलते हरिभक्तो के यह गणपति ‘ओबरी के राजा’ के रूप में विख्यात हो गए हैं.
ओबरी हरिजन समाज के युवा गणपति लाते हुए |
इस दस दिवसीय आयोजन में पूरा समाज बढ़ चढ़ कर भाग लेता
है. साथ ही सुबह शाम विधी विधान के साथ पूजा-अर्चना भी होती है. यही नहीं, रातभर
सितार, मृदंग, ढोल की थाप के साथ भजन-कीर्तन
का आयोजन भी किया जाता है. जिनमे पूरे समाज के लोग पंडाल में होते है. अब गणेशजी ठहरे सात्विक देवता, लिहाज़ा इस दस दिवसीय उत्सव के दौरान समाज का कोई भी व्यक्ति मांस-मदिरा
सेवन नही करता!! वे सभी सात्विक जीवन जीते
है, सभी परहेजो का सख्ती से पालन करते हैं. इन व्यसनो पर सामाजिक
रूप से भी पाबंदी है और अगर कोई भी व्यक्ति इस दौरान मांस-मदिरा सेवन करता है तो उसे
दण्ड दिया जाता है. दंड के रूप में राशि भी निर्धारित की है. साथ ही उसको बप्पा से
दर्शन या किसी भी विधि में शामिल नही किया जाता है. ख़ुशी की बात है कि इतने बरसो में
आज तक किसी ने भी इस नियम का उल्लंघन नहीं किया. इससे आप उनकी शुचिता और सात्विक भक्ति
भाव को समझ सकते हैं.
ओबरी हरिजन समाज के युवा गणपति लाते हुए |
गणेश चतुर्थी के एक दिन पहले बड़ी शान और धूम- धाम के साथ
बप्पा को लाया जाता है. वहीं, दस दिन बाद बप्पा को उसी शान के साथ पालकी
पुष्प, केलो के पत्तो से सजी पालकी में सजाकर गाजे-बाजे के
साथ नाचते-गाते हुए विदा किया जाता है. ये उत्साह भरा नज़ारा देखने लायक होता है. शोभायात्रा
को कस्बे के मुख्य मार्गो से होकर ले जाया जाता है और माताजी तालाब की पाल पर पूजा
अर्चना और आरती करके प्रसाद वितरण किया जाता है. फिर श्रद्धा से आँखोँ में आंसू लिए
बप्पा की मूर्ति तालाब में विसर्जित की जाती है. समृद्धि और विकास की रफ्तार नापता ओबरी का हरिजन समाज गणपति स्थापना ही नही
करता, बल्कि नवरात्री के नव दिन तक रास गरबा, डांडिया का
आयोजन भी इतनी ही श्रद्धा और और भक्ति से करता है.
रमणलाल हरिजन बताते हैं कि गणपति बप्पा के प्रति अनन्य प्रेम और श्रद्धा के चलते उन्होंने हर जगह बप्पा की स्थापना को देखा, लेकिन कस्बे में उन्हें देखने की लालसा ने समाज को ओबरी का पहला गणपति लाने की प्रेरणा दी. और यह अपने मोहल्ले में स्थापना करने का विचार आया. वार्ड पंच रहे सुखलाल बताते हैं कि, हरिजन बस्ती में विराजमान ‘ओबरी का राजा’ मंड़ल में लक्ष्मण, मोहन/नाथु हरिजन, शंकरलाल, धनाभाई, हेमचन्दभाई , नाथुलाल/लालु, नाथु/धीरिया, शान्तिलाल, कचराभाई, कांतिलाल, हक्करीया भाई, रमण/लालू, नन्दा, मोहन/लालु हरिजन के साथ नवयुवक मण्डल के युवा प्रमुख कार्यकर्ता कार्यक्रम को सफल बनाते है.
हरिजन युवाओ
ने बताया कि हमे क़स्बे मे ग्रामीणो या ग्राम पंचायत ओबरी से किसी प्रकार का कोई
सहयोग नहीं मिलता. यहाँ तक कि बगल में सूर्यकुंड के गंदे नाले की सफ़ाई भी नहीं कराई
जाती, जिससे ज़हरीले जीवों, मच्छर- बीमारी की समस्या होती है. और पंड़ाल में बैठना मुश्किल होता है. दूसरी
दिक्कत लाईट कि होती है अक्सर लाइटे आती जाती रहती ओर पंडाल मे लाईट कि व्यवस्था
खुद को करनी पड़ती जो काफी महंगी पड़ती है. हालाँकि कस्बे के सभी दुकानों से श्रद्धा अनुसार चंदा मिल जाता है. वहीं हरिजन समाज के हर घर से चंदा लेकर आयोजन सम्पन्न
करते है.
ओबरी हरिजन समाज का नवरात्रि विसर्जन |
Post a Comment