डूंगरपुर: गिरिपुर के गिरिराज गोवर्धन- दुनिया की सबसे बड़ी श्रीनाथ प्रतिमा
डूँगरपुर में आप चाहे किसी भी दिशा से प्रवेश करें, चारों ओर पहाडों के बीच खड़ी एक सुरम्य पहाड़ी आपकी दृष्टि को आकर्षित कर ही लेती है. नाम है फतहगढी. इसी फतहगढी के नीचे पूर्व दिशा में हिलोरें लेती मनमोहती है महारावल गेबा द्वारा बनवायी गयी गेप सागर झील. ख्यातों व शिलालेखों में महारावल गेबा को गोपीनाथ, गजपाल, गोपाल, गोप, और गईप आदि नामों के साथ ही, तबकाते अकबरी में गनेश नाम से भी पुकारा गया है. इन्ही के द्वारा वि. सं. 1483 (ई.सन् 142) से वि. सं. 1513 ( ई.सन् 1456) के दौरान निर्मित है गैप सागर.
मुख्य मंदिर में विराजमान गौवर्द्धन नाथ जी
व राधा रानी । फोटो: मुकेश द्विवेदी
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फतेहगढ़ी से सम ग्रमंदिर का विहंगम नज़ारा । फोटो: मुकेश द्विवेदी |
गैपसागर पाल
से मंदिर का दृश्य ।
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मंदिर परिसर में विराजमान अन्य देवी-देवताओ की गुमटियो की श्रंखला । फोटो: मुकेश द्विवेदी |
गरूडजी
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इसी क्रम में जब वि.सं.1869-72 (ई.सन्1812-15) सिंध के आक्रांता खुदादाद खाँ के आक्रमणों व गलियाकोट में युद्ध के दौरान हुई तोड़-फोड़ के चलते कई देवालय और देव प्रतिमाओं को क्षति पहुँची जिसे वि.सं. 1899 (ई.सन् 1842 ) में समय समय पर तत्कालीन महारावल श्री जसवंत सिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया.
मंदिर परिसर में एक शिलालेख |
इतिहासकार श्री गौरी शंकर हीराचन्द जी ओझा के अनुसार उन्होने खण्डित प्रतिमाओं के स्थान पर नवीन प्रतिमाएँ की पुन: प्रतिष्ठा करवायी शासकों द्वारा जीर्णोद्धार करवा कर नवीन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवाया इसी क्रम में वि. सं 1968-69 (ई.सन् 1911-12) में सन् में तत्कालीन महारावल श्री विजय सिंहजी इसके मुख्य प्रवेशद्वार व कचहरी का निर्माण करवाया, महारावल श्री लक्ष्मण सिंह जी द्वारा वि. सं. 1995 (ई.सन् 1938) देवालय पर स्वर्ण ध्वजदण्ड की स्थापना करवायी गयी. वि.सं 2046 (ई.सन् 1991) में महारावल श्री महीपाल सिंह द्वितीय ने खण्डित मूर्तियों व ध्वजदण्ड के स्थान पर नये ध्वजदण्ड की स्थापना एवम् चौक में छतरी के नीचे महाकालेश्वर की प्रतिष्ठा करवायी.
परिसर में विजवामाताजी और भगवान परशुराम के मंदिर । फोटो: मुकेश द्विवेदी |
पुजारी जी
के साथ लेखक घनश्याम सिंह जी भाटी
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