वागड़ में परशुराम जयंति की अलख जगाई थी पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी तलवाड़ा ने !
वागड़ क्रांतिदूतो
के साथ-साथ संस्कृति दूतो की भी धरा रही है. पं. नंदलाल दीक्षित, पं. महादेव शुक्ल आदि विद्वानो
की कड़ी में एक और नाम है वागड़ की काशी तलवाड़ा के पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी का.
लीमथान, बांसवाड़ा स्थित भगवान परशुराम के मन्दिर में पूजा करते द्विवेदीजी |
पंडितजी ने
कई विषयों पर राजस्थान के दक्षिण स्थित वागड़ अंचल का प्रतिनिधित्व किया. वह राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातनाम ज्योर्तिविद्, समाजसेवी, शक्तिपीठ त्रिपुरा सुन्दरी के परमभक्त थे. द्विवेदी ने विभिन्न क्षेत्रों
में अपने कार्य व उपलब्धियों से अंचल को गौरवान्वित किया है. आल इण्डिया ब्राह्मण
फैडरेशन, अखिल भारतीय औदिच्य महासभा और राजस्थान ब्राह्मण
महासभा ने भी उनके योगदान को सराहा है.
कर्मचारी
कल्याण, ज्योतिषीय ज्ञान, समाजसेवा, जनकल्याण आदि के लिये राष्ट्र व राज्य
स्तर पर कई बार सम्मानित और दुर्गा सप्तशती का कंठस्थ पाठ करने वाले पं. द्विवेदी
अपने अंतिम समय तक सक्रियता से देवी साधना में जुटे रहे. जीवन के अंतिम दौर में
गंभीर बीमारी की अवस्था में भी उन्होंने देवी त्रिपुरा सुन्दरी की साधना-आराधना
जारी रखी.
लीमथान, बांसवाड़ा स्थित भगवान परशुराम के मन्दिर में तीन दशक पूर्व परशुराम जयन्ती के आयोजन को प्रारम्भ करने वाले पं. द्विवेदी के प्रयासों से परशुराम जयन्ती के आयोजन अब सम्पूर्ण क्षेत्र में प्रभावी ढंग से हो रहे हैं.
द्विवेदीजी
कर्मचारी कल्याण में भी अग्रणी रहे. बेरोजगार को रोजगार नहीं तलाशना पड़े, बल्कि बेरोजगार को रोजगार
तलाशे! अपने जीवन काल में इसी नजरिए से कार्य करने वाले पं. द्विवेदी ने हजारों
लोगों को न केवल रोजगार से जोड़ा, बल्कि रोजगार से जुड़ी
विभिन्न समस्याओं- स्थानान्तरण, पदोन्नती, वेतनवृद्धि आदि के समाधान में भी सहयोग प्रदान किया.
चार दशक
पूर्व द्विवेदी ने बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु सरकारी कार्यालयों व
अधिनस्थ व्यवस्थाओं सहित जनसेवा केन्द्रो में पारी व्यवस्था कायम करने व कार्य की
समयावधि बढ़ाने का सुझाव देकर बेरोजगारी, की समस्या का एक व्यावहारिक समाधान दिया था. वर्तमान में
हो रहे बदलाव इसी सुझाव का अनुसरण माने जा सकते हैं. उनका, 24 घंटे सातों दिन समस्त सरकारी सेवाओं पर आधारित रोजगार माॅडल बेरोजगारी को
समाप्त करने का बहुत बड़ा आधार बन सकता है.
त्रिपुरा
सुंदरी में नवरात्री मेला प्रारंभ करवाने वाले तत्कालीन तलवाड़ा सरपंच अपने पिता
समाजसेवी पण्डित वासुदेव द्विवेदी की समाज व जनसेवा की परम्परा को पं. द्विवेदी ने
सतत बनाये रखा. कर्मचारी महासंघ व राज्य कर्मचारी संघ के वर्षों प्रदेश अध्यक्ष
रहकर कर्मचारी हितों के मुद्दें उठाये व कर्मचारी हित में निर्णय करवाये. राष्ट्रीय
स्तर पर अपने ज्योतिषीय ज्ञान, समाजसेवा और कर्मचारी कल्याण हेतु कई बार सम्मानित हुए द्विवेदी ने
विभिन्न सामाजिक व राष्ट्रीय सेवा से जुड़े संगठनों को कई दशकों तक सेवायें दी.
विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में पं. द्विवेदी के सैकड़ों धर्म-ज्योतिष विषयक
उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक रचनाओं का प्रकाशन हुआ.
द्विवेदी
ने ऑल इण्डिया ब्राह्मण फेडरेशन, अखिल भारतीय औदिच्य महासभा व राजस्थान ब्राह्मण महासभा से जुड़ कर वरिष्ठ
पदाधिकारी के रूप में राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर कार्य किया और समाजहित में
महत्वपूर्ण योगदान किया. सैकड़ों धार्मिक, सामाजिक, कर्मचारी कल्याण और जनहित के आयोजनों का नेतृत्व करने वाले द्विवेदी ने
लोगों के हितों को लेकर भी प्रभावी प्रयास किये. पं. द्विवेदी का देश के प्रख्यात
मोहनखेड़ा महातीर्थ से चार दशक का जुड़ाव रहा, तीर्थ के प्रति
आस्था और रविन्द्र सूरीश्वर, ऋषभचन्द्र सूरीश्वर महाराज से
सम्पर्क के कारण वे अपनी नियमित सेवाएं देते रहे. तीर्थ की पत्रिका ऋषभचिन्तन और
पंचाग में ज्योतिष विषयक लेखन भी किया.
राजकीय सेवाकाल के दौरान राज्यस्तर पर स्थापित पहले मंत्रालयिक कर्मचारी राज्यस्तरीय पुरस्कार से सम्मानित पं. द्विवेदी कई राज्य स्तरीय सरकारी समितियों में सदस्य रहे और राज्य बीमा सहित विभिन्न राजकीय सेवाओं की व्यवस्थाओं के विकेन्द्रीकरण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. कर्मचारियों के वेतनमान व अन्य विषयों पर भी उन्होंने सकारात्मक कार्य कर कर्मचारी हित में निर्णय करवाये.
उनके
ज्योतिषीय ज्ञान से हजारों लोग लाभान्वित हुए तथा करोड़ों पाठकों ने ज्योतिष विषयक
विशेष जानकारी अर्जित की. देश, प्रदेश, समाज और जनहित में कार्य करने वालों को
प्रेात्साहन एवं सम्मान देने, बांसवाड़ा में स्थापित संस्कृत
प्रचार मण्डल के सचिव के रूप में संस्कृत को बढ़ावा देने का प्रयास करने, क्षेत्र में सामाजिक समन्वय, सौहार्द व सहयोग को
बढ़ावा देने आदि में भी पं. द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
~ जितेंद्र जवाहर दवे
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