गायत्री शक्तिपीठ सागवाड़ा में गूंजा ‘अनूठे आरोग्यमयी आहार’ का संदेश


आलेख - राजेन्द्र पंचाल सामलिया

येषां न विद्या न तपो न दानं,
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता,
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥

अर्थात, जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म। वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते हैं।

गायत्री शक्तिपीठ सागवाड़ा के बारे में :
सच में देखे तो मनुष्य के जीवन में विद्या, तप , जप , दान , संस्कार और गुणों का प्रादुर्भाव तब होता है जब कोई मार्गदर्शन मिले, कोई प्रेरणा मिले।

ऐसी प्रेरणा का स्त्रोत भारत मे ही नही बल्कि विश्व में वर्षो से गायत्री परिवार और युग निर्माण मिशन बन कर सेवा दे रहा है ।  इस हेतु युग पुरुष आचार्य श्री राम शर्माजी ने जीवन जीने के अद्भुत सूत्र और पद्धति है जो भारत देश में बहुआयामी रूपों में प्रकट होती है ।
इन पद चिन्हों पर चलते हुए सागवाड़ा के गायत्री शक्तिपीठ केवल 5- 7 वर्षो में एक संस्कारधानी बनकर उभरा है,  जहाँ पर विविध सेवा कार्य और लोक कल्याणकारी प्रकल्प  सबको लाभान्वित कर रहे है।

इस स्थान पर विशाल मंदिर, सप्तऋषियों के दर्शन, विभिन्न झांकिया लाभ, ध्यान व सत्संग हॉल, रमणीय शांत वातावरण परिसर में रविवार को मुझे भी माँ गायत्री का  6/7 घण्टे का सानिध्य मिला। इस परिसर में शिव मंदिर भी है जिसका लिंग स्फटिक का बना हुआ है , शायद वागड़ में एकमात्र है।

गायत्री प्रज्ञा मंडल द्वारा साहित्य, सत्संग, यज्ञ और संस्कारों  के माध्यम से धर्म जागरण , सामाजिक समरसता, जन जन में दान, दया, भक्ति अध्यात्म , मानवीयता , सामाजिकता, सद्प्रेरणा के साथ योग व स्वास्थ्य जैसे सुंदर प्रकल्पों की सुगन्ध वागड़ में फैलाने का कार्य बख़ूबी से किया जा रहा है । इस दौरान मुझे भी रविवार को गायत्री परिवार के सौजन्य से आयोजित एक विशेष शिविर में भाग लेने मिला।

आरोग्य के लिए आहार का अनूठा फॉर्मूला
आरोग्य के लिए आहार कैसा हो? इस पर तथ्यपरक और वैज्ञानिक विधी कौनसी है?  आयुर्वेद में कैसे आहार पर जोर दिया है? ऐसे ही कई बिंदुओ पर सूरत से पधारे श्रीकालुभाई सांवलिया ने अहम बाते बताई । वह स्वदर्शन साधना केंद्र गुजरात नासिक के माध्यम से नई भोजन प्रणाली अपक्व आहार से आरोग्य प्राप्ति का नया फार्मूला देकर जन जागरण कर रहे हैं । सागवाड़ा आयोजन में इस विषय पर सुरेखाबेन सांवलिया ने काफ़ी ज्ञानवर्धक प्रस्तुति दी गई।

वैसे प्रणाली के प्रणेता बी. वी चौहान को माना जाता है जिन्होंने इस आयुर्वेदिक पद्धति को जन जन तक नए तरीके से पहुँचाया । यह काचु ते सांचु नी रनधायलु ते गंधाएलु की थीम पर स्वास्थ्य वर्धक व 130 बड़ी बीमारियों का इलाज माना जा रहा है ।

जिसमें तीन चरणों में भोजन की पद्धति अलग तरीके से अपनाई जाती है : 
1. प्रथम चरण में प्रातः 6 घण्टे निराहार रहकर ग्रीन जूस लिया जाता है जो विविध प्रकार के पत्तो से बनाया जाता है । (पालक, पुदीना, ककड़ी, टमाटर, गाजर, बीट धनिया, तुलसी पत्र, लोकी जूस आदि सहित)

2. दोपहर बाद हल्के फ्रूट्स जिसमें अंगूर, केले , सब्जियां कच्ची, अंकुरित दाने व कंदमूल खाये जाते है ।
3. रात्रि को हल्का भोजन खिचड़ी, कढ़ी, दाल, छाछ, दूध आदि का प्रयोग करें । (जिसमे 70% सब्जी व 30% अनाज व धान्य का प्रयोग करे ।)

इसके साथ एक एनीमा प्रयोग सिखाया गया जो हमें कब्ज व पेट की बड़ी बीमारियों से निजात पाने का सरलतम उपाय बताया गया । इसे चित्र सहित एक फोटो में संलग्न कर रहा हूँ । जरूर पढ़ें।
जब भगवान राम ने 14 वर्षो तक कंद मूल फल का प्रयोग किया तो वे स्वस्थ रहकर रावण का नाश किया ।
  • भगवान शिव पूर्ण रूप से कच्चे भोजन का ही प्रयोग करते है वे प्रकृति से जुड़े हुए है ।
  • हमारे ऋषि मुनि इस पद्धति से 200 से 500 वर्षो तक जीवन जीते थे ।
  • कच्चे भोजन में फल फूल पुष्प और रस व मूल भी आते है ।
यह पद्धति सचमुच जीवन दायक है, एंर्जेटीक बनने का एक सूत्र देती है साथ ही 30 दिन के विशेष प्रयोग द्वारा कई सारे रोगों के निजात पाने का सरलतम उपाय है ।
इसे आप गायत्री परिवार के सागवाड़ा धाम पधार कर मार्गदर्शन पुस्तिका
, एनीमा का प्रयोग, जूस बनाने के तरीके आदि सीख सकते है, हजारों रुपयों की दवाओं से निजात पा सकते है ।
इस सत्र में गुजराती उद्योगपति श्री वी.डी. पटेल, डॉ. हरबीर छाबड़ा, लक्ष्मीशंकर पाटिदार,  भूपेंद्र पंड्या,  डायालाल विकासनगर,  वेलचंद पाटिदार, हरिमुख  भट्ट, भगवतीलाल  पंचाल, जितेंद्र सुथार सहित गायत्री परिवार के बंधुओ ने निष्ठा से भाग लिया.

मित्रों अब समय आ चुका है की हम प्रकृति के साथ वापस जुड़ कर आयुर्वेद के माध्यम से न केवल स्वास्थ्य बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भी प्राप्त कर सकते है ।


राजेन्द्र पंचाल सामलिया
ज्योतिषाचार्य एवम शुभवेला पंचांग के सम्पादक
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