डूंगरपुर के ये 12 ज्योतिर्लिंग आपको देशभर के ज्योतिर्लिंगो से साक्षात कराते हैं
शिवरात्रि
और डुंगरपुर ज़िले के शिवालयो पर राजेंद्र कुमार पंचाल का शोध परख आलेख
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अदभुत निर्माण के लिए प्रसिद्ध बहुमंज़िला देवसोमनाथ मंदिर, ज़िला डूंगरपुर. फोटो सौजन्य: Esteem |
वैसे हर हिन्दू के जीवन में 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन का एक सपना होता है । और इन ज्योतिर्लिंग दर्शन के पश्चात व्यक्ति शिव स्वरूप बन जाता है । ऐसा पुराणों में वर्णन मिलता है ।
शिव की अनन्य भक्ति और तप का फल ये रहा,
प्रभु की ऐसी कृपा रही की घर बैठे गंगा का फल मुझे तब मिला जब मैंने डूंगरपुर (वागड़) के इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करके प्रभु का आशिष पाया । अन्तः प्रेरणा
मिली की अब किसी और ज्योतिर्लिंग के दर्शन की जरूरत नहीं रही ।
वागड़ के इन 12 ज्योतिर्लिंगो को जानने से
पहले शिवजी व महाशिवरात्रि की महिमा को जानते है --
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पीठ का सलारेश्वर मंदिर |
फाल्गुन मास में कृष्ण चतुर्दशी को
महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से
हुआ था । पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग से हुआ था ,
जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है । उसके उदय से हुआ था । यह मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह
देवी पार्वती के साथ हुआ था। वर्ष में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से
महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
दुनिया में ऐसा कोई स्थान नही, जहाँ शिव भक्त न हो । त्रिलोक में ऐसा कोई स्थान नही जहाँ शिवलिंग न हो ।
सारी सृष्टि शिव द्वारा रचित और उन्ही के संकल्प द्वारा संचालित है ।
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ठाकरड़ा के सिद्धनाथ |
जितने भी सृष्टि के देव,
दानव और मानव का पराक्रम, पूजा और सफलता के
लिए कारण रहे होंगे वो शिव के ही आशिर्वाद का फल रहे है, शक्ति
- संचालन और पालन व विनाश का मूलाधार शिव है । परमाणु के कण में इलेक्ट्रॉन ,
प्रोटोन और न्यूट्रॉन जैसे कणो में शिव की सूक्ष्म शक्ति है तो
विशाल ब्रह्माण्ड में अनन्त आकाश गंगा की शक्तियों का कारण भी शिव ही है । अर्थात शिव समस्त आगम - निगम और पुरागमन के
कर्ता है ।
शिव को महादेव कहते है ,
क्योंकि वे देवों के पूजनीय है । शिव को भूतनाथ कहते है क्योकि वे
अनादि (भूतकाल) काल से है । शिव को त्र्यम्बकेश्वर कहते है क्योंकि त्रिलोक के
ईश्वर है । भोलेनाथ कहते है क्योंकि शीघ्र प्रसन्न भी होते है । भोले भाले लोगों
के आधार है।
उनका पूजन- यजन ,
मन्त्र जप और दर्शन का महत्व और फल की व्याख्या कोई नही कर सकता है
।
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डूंगरपुर के 12 ज्योतिर्लिंगो का नक्शा (राजेंद्र पंचाल का अध्ययन) |
शिव पूजन से भगवान ब्रम्हा सृष्टि की रचना की शक्ति प्राप्त करते है । उन्ही से विष्णु पालन व सृष्टि का संचालन करते है ।
शिवरात्रि भगवान शिव के उपासना का सबसे बड़ा
दिन है । शिवजी के इस एक दिन के पूजन और उपासना का
फल मानव के लिए अनन्त है । पुराणों में शिवरात्री के महत्व की अनन्त महिमा गाई है
।
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जीर्णोद्धार बाद भव्य रूप में सलारेश्वर महादेव,पीठ |
बिल्व पत्र की महत्ता बिल्वाष्टक में इस प्रकार कही गई है-
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।
त्रिजन्मपापसंहार बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।अग्रत: शिवरूपाय बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोकमवाप्नुयात्।।
इसलिए एक बिल्वपत्र मात्र शिवजी को
शिवरात्रि के दिन चढ़ाने मात्र से अनन्त गुना फल मिलता है।
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पाड़ली गुजरेश्वर मंदिर |
आइए भारत देश के प्रमुख शिव मंदिर जिन्हें
ज्योतिर्लिंग कहते के बारे में जाने
1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़
में स्थापित है।
2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में
कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित
महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का
नाश किया था।
4. ॐ कारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल
ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देते
हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट
स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में
स्थापित शिवलिंग।
7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के
किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
8. त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से
25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
9. घुमेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले
में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।
10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ
ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ
मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
12. रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास)
समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
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वागड़ के खजूराहो के नाम से प्रसिद्ध गामड़ी देवकी मंदिर |
1. देव सोमनाथ - डूंगरपुर से 24 किमी दूरी
पर देवगांव में है । जो वागड़ का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है ।
सौराष्ट्र में सोमनाथ की भांति यहाँ विशाल
मंदिर स्थित है जो स्थापत्य कला की दृष्टि से खासा महत्व रखता है । जिस तरह समुद्र
तट पर सोमनाथ बिराजे हैं, वैसे ही यहाँ भी नटी तट पर
देव सोमनाथ विराजमान हैं।
2. गोरेश्वर महादेव - जो सागवाड़ा से 12
किमी दूरी पर नदी किनारे है । यहाँ आस पास मन्दिर , घाट
बने हुए है । मल्लिकार्जुन को भाँति यह ज्योतिर्लिंग वागड़ में काफी चमत्कारी रहा
है ।
3. सिद्धनाथ ठाकरडा - यह सागवाड़ा के पश्चिम
में डूंगरपुर मुख्य मार्ग से थोड़ा अंदर ठाकरडा गाँव में है जो भगवान शिव का
आशीर्वाद स्वरूप पुत्र प्राप्ति जैसी मनोकामना पूरी करता है । यह महाकालेश्वर की
भांति हर मनोकामना पूरी करता है । जिस प्रकार मध्यप्रदेश में देश जे मध्य
महाकालेश्वर है वैसे ही ये डूंगरपुर के मध्य में है ।
4. क्षीरेश्वर - सागवाड़ा के समीप यह खड़गदा - अंबाडा के पास
स्थित निरंजनी अखाड़े के साधुओं का गढ़ रहा है , प्रसिद्ध
मंदिर है जो ओंकारेश्वर की भांति दर्शनीय स्थान है । मोरन नदी के तट पर प्राचीन मठ
और प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है.
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पहाड़ी पर केदारनाथ की याद दिलाता ओड़ का जेतोलेश्वर शिवालय |
5 पाडली गुजरेश्वर - यह विकासनगर से पूर्व
दिशा में प्रसिद्ध मंदिर है , यह डूंगरपुर -धम्बोला
सड़क पर पाडली गाँव में स्थित है । आदिवासियों के लिए यह मंदिर विशेष आराध्य है
यहां विशाल कल्पवृक्ष है । इसकी तुलना नागेश्वर से कर सकते है ।
6. श्रीभुवनेश्वर - यह डूंगरपुर से लगभग 15 किमी पश्चिम दक्षिण में
बिछीवाड़ा रोड पर छोटे से गांव की मुख्य सड़क पर पहाड़ी की गोद मे स्थित श्री वैधनाथ
महादेव के सदृश्य अति प्राचीन मंदिर है यहाँ हमेशा दर्शनार्थियों का तांता लगा
रहता है।
7. कटकेश्वर महादेव - यह मंदिर आसपुर तहसील
के कतीसोर गाँव के पास स्थित है यहाँ विशाल मंदिर व परिसर है सामने श्मशान घाट है , यहाँ जाने पर आपको भीमाशंकर
महादेव के दर्शन का लाभ मिलता है । इस मंदिर का शिवलिंग भी स्वंयम्बू है ।
8. गामड़ी देवकी -डूंगरपुर में गामड़ी देवकी के
महादेव के स्वयम्भू शिवलिंग के दर्शन करना त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिलिङ्ग के
दर्शन करने के समान है ,
इस मंदिर में देवाधिदेव महादेव साक्षात विराजमान है इनके दर्शन से
पाप , ताप व संताप का तुरन्त शमन हो जाता है । यहां मन्दिर
के बाहर रतिक्रीड़ा की मूर्तियां भी है। इसे वागड़ का खुजराहो भी कहते है ।
9. सलारेश्वर पीठ - यह डूंगरपुर के सीमलवाड़ा
तहसील के पीठ कस्बे में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर है ,
श्री घुश्मेश्वर महादेव की भांति इसकी महिमा अपरंपार है । यहाँ वागड़
और राजस्थान से ही नहीं बल्कि गुजरात से भी
काफ़ी दर्शनार्थी आते हैं. हाल ही के वर्षों में इसका जीर्णोद्धार करके भव्य मंदिर बनाया
गया है।
10 . जेतोलेश्वर ओड - केदारनाथ की भांति
पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह मंदिर गुप्त था , विगत
5/7वर्षो में खासा प्रसिद्ध हुआ । जो पाडवा और सागवाड़ा के बीच ओड गाँव के पूर्व
में 2 किमी दूरी पर है ।
11 . बेणेश्वर महादेव - संत मावजी के धाम
पर स्थित यह मंदिर काशी विश्वनाथ की भांति पहाड़ी पर त्रिवेणी संगम पर स्थित है ।
इसके दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है ।
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जंगल के बीच मोरन तट पर क्षीरेश्वर मंदिर |
12 . बोरेश्वर महादेव - यह डूंगरपुर के अंतिम
छोर में बासँवाड़ा की सीमा पर नदी के पास स्थित है । यहां का रमणीय वातावरण और महादेव की लिंग के दर्शन कर लगता है यहाँ
भगवान राम ने सेतु बन्ध हेतु इसे स्थापित किया हो।
इसके अलावा भी डूंगरपुर में कई मन्दिर स्वयम्भू
है जैसे - सागवाड़ा में गमलेश्वर महादेव , सामलिया
में बेणेश्वर महादेव , सरोदा में नीलकंठ , माल में खंडेश्वर , भीलूड़ा में नीलकंठ , सोम कमला आबा बांध पर सोमेश्वर महादेव , चितरी में
सिधेश्वर पादरड़ी बड़ी में सोमनाथ महादेव, ओबरी में धात्रेश्वर, घोटाद में नीलकंठ महादेव आदि।
भगवान महादेव की महिमा और उनके साकार प्रतीक शिवलिंग अपरम्पार है । वागड़ भूमि धन्य है यहां प्रभु की कृपा रही है । इसलिए यहां हमेशा संतो और महापुरूषो का आगमन व अवतरण होता रहता है । हम सब शैव भक्त है पूरा वागड़ शिवजी की भक्ति से धन्य ही नही बल्कि धान्य से भी भरपूर है , शिव के कारण माँ जगत जननी अन्नपूर्णा भी हम पर प्रसन्न है ।
ॐ नमः शिवाय ।
~ राजेन्द्र कुमार पंचाल सामलिया ,
शुभ वेला पञ्चाङ्ग के संपादक , ज्योतिष
मार्तण्ड
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