छापी- जहाँ गोवंश की रोमांचक दौड़ से जानते हैं भविष्य !


~ मुकेश द्विवेदी


दिवाली और गोवंश का सनातन नाता रहा है. गाएँ हमारे देश की कृषि प्रधान संस्कृति में सुख और समृद्धि का प्रतीक रही हैं. और शायद इसीलिए नव वर्ष पर गोवर्धन पूजा के साथ ही देश के विभिन्न स्थानो पर गोवंश से जुड़ी कई स्थानीय परम्पराएँ और पर्व भी इसका हिस्सा रही हैं.

एक ऐसी ही अनूठी परम्परा के तहत वागड़ के ही खड़ग क्षेत्र में डूंगरपुर बिछीवाड़ा मार्ग पर छापी गांव में नववर्ष पर गाएँ बताती हैं अगले साल का भविष्य!

जी हाँ दीपावली के बाद नव वर्ष पर छापी गांव में सैकड़ो की तादाद में गोधन की दौड़ का नजारा बेहद रोमांचकारी होता है । और इसी रोमांच और जिज्ञासा के बीच होती है आने वाले साल का भविष्य जानने की कवायद.

राजस्थान के दक्षिणांचल वागड़ के छापी गांव में नव वर्ष पर सैकड़ों गायों को सजा-धजा कर अलग-अलग रंगो, मोर पंखों, घुंघरुओं की खनक के साथ गांव के अंतिम छोर पर इकट्ठा किया जाता है। और सबसे पहले वहाँ श्रद्धा से गोपूजा होती है.

इस गो-पूजन एवं दौड़ को देखने आसपास के 20-30 किलोमीटर के हजारों लोग पहुँचते है। लोकगीतों को गाते युवाओं की टोलियां, हाथों में लट्ठ नाचते लोगों के बीच शुरू होता है गायों, बैलो की इस अदभुत दौड़ का आयोजन।

किवदंती के अनुसार छापी गाँव को प्राचीन काल में चम्पावत नगरी कहा जाता था. पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ वक्त यहां गुजारा था.  इसके साक्ष्य के रूप में गांव से कुछ दूर ही पांडवो की धूणी आज भी है। 

शिव उपासक पांडवो की इच्छा थी कि सोमवती अमावस्या के साथ सोमवार हो और एक यज्ञ हो. लेकिन यह संयोग न होने से उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी.  इस कारण वे शिव प्रतिमा को कुएं में विसर्जित कर आगे की ओर प्रस्थान कर गए ।

वर्षों बाद खुदाई के दौरान मूर्ति पर चोट लगने से खून की धारा बहने लगी, यह सूचना पाकर तत्कालीन शासक इसी मूर्ति को डूंगरपुर लाने के लिए पहुँचे पर मूर्ति को हिली नही तब वही स्थापित कर दी गयी जिसे आज केदारेश्वर मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

अलग प्रकार के स्वर के साथ गाय-बैलो को प्रेरित किया जाता है और फिर वह दौड़ना शुरू कर देते हैं.  यह गोवंश गांव की गलियों से होते हुए दूसरे छोर पर स्तिथ मंदिर की ओर दौड़ता है. आख़िरकार सबसे पहले जिस रंग की गाय मन्दिर की ओर पहुँचती है, उससे आने वाले वर्ष का अनुमान लगाया जाता है. मसलन हरे रंग वाली या सफेद रंग वाली गाय पहुँचती है तो खुशहाली, खेती के लिये लाभकारी एवम शांति का संकेत माना जाता है वहीं लाल रंग की गाय से खूनी संघर्ष और काले रंग से अकाल एवम अशुभ का संकेत माना जाता है ।

खैर ये तो हुई मान्यता की बात, लेकिन यह गोवंश दौड़ वाकई में अनूठी और रोमांचक है इसमें कोई दोराय नहीं.
मुकेश द्विवेदी डूंगरपुर के वरिष्ठ फोटोग्राफर हैं

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