कभी ओबरी को पहचान दिलाने वाला सूर्यकुंड अपनी दुर्दशा पे आंसु बहा रहा है !
| दिलीप आर दवे |
पवित्र सूर्यकुंड एक बदबूदार गड्डे में तब्दील हो रहा है. प्रशासन बेखबर, लेकिन प्रजा भी कम दोषी नहीं! करीब एक सदी पुराना ऐतिहासिक सूर्यकुण्ड बन रहा है डम्पिंग ग्राउंड !
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काई, कचरे और बदबू का केंद्र बनता ओबरी का सूर्यकुंड़ |
एक तरफ देश के प्रधानमंत्रीजी, राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री महोदया एवं डूॅगरपुर के सभापति जिले को स्वच्छ भारत मिशन को सफल बनाने के लिए अपनी जी तौड कोशिश कर रहे। वही ओबरी कस्बें में इसका कोई असर नहीं है । इस मिशन की सरेआम धज्जियाँ उड रही हैं.
इसे नादानी ही कहेंगे कि, सूर्य कुंड के अन्दर, शौचालय निर्माण की राशि का उपयोग तो कर लिया गया है पर सूर्य कुण्ड के उपरी भाग के मकानों में बने शौचालयों का गंदा व दूषित पानी बहाने के लिए इस धरोहर में पाइप लाइन दे रखी है। जिससे ग्राम पंचायत भी परेशान है। वही सूर्य कुण्ड में शौचालय के गंदे पानी से पूरा परिसर बदबू मार रहा है। और वातावरण दुषित भी हो रहा है। यही नहीं, गांव का गंदा पानी भी नदीयों का रूख अपना रहा है। जिससे नदियाँ भी कचरे से लबालब होकर अपना आस्तित्व खोती नजर आ रही है।
हालत ऐसी है कि कभी घुमने-फिरने-देखने लायक रहे
इस कुंड का कोई धणी-धोरी नहीं है। यही कारण है कि पानी के पुराने जलस्त्रोत को
सहेजने और जल स्तर को बढाने के लिए सरकार जल स्ववलंबन जैस अभियान भी चला रही हैै
लेंकिन इस सूर्यकुण्ड पर कुछ काम हुआ नही है। सूर्यकुंड अपने अस्तित्व को बचाने का
लाचार है। किसी ज़माने में आधुनिक वाटर पार्क, स्वींमिग पुल को कभी मात देने वाला यह सूर्यकुंड नकारा बनकर रह गया है।
सूर्यंकुड पर फैली गंदगी और बदबू के कारण लोग अब नही जा रहे है। इस कुड के ऊपर से
आ रहे नाले पर बना एक एनिकट में भरा कुडा कचरा होने से आसपास बडे बडे मच्छरों की
फैक्ट्री बनी हुई है। न तो पंचायत को साफ करने की फुरसत है, न
ही लोगो में इस विरासत को साफ़ रखने की जागरुकता. जिससे आसपास की आबादी अक्सर
बिमारीयों की चपेट मे ही रहती है। उपर से आ रहे नाले पर गांव का कचरा और नालियों
का गंदा पानी के साथ अब सूर्य के उपरी भाग पर लोगो ने शौचालय के गंदे पानी की
निकासी भी इस सूर्यकुण्ड में दे रखी है।
विदेशी बबुल, झाडीया,
प्लास्टिक, खराब कपडे-लत्ते से अटा हुआ है
पानी की निकासी में भी रूकावट आ रही है। आठ साल पहले तत्कालिन सरंपच पन्नालाल मीणा
के कार्यकाल में नाल की साफ सफाई करवाई गई थी। विभिन्न जन प्रतिनिधियो व जनता ने
इस धरोहर केा बचाने के लिए श्रम दान भी किया गया था एवं इसके बाद ना तो पंचायत ने
इसकी सुध ली और ना ही आला अधिकारियों ने और ना ही किसी नेता ने इसकी तरफ रूख किया। धीरे धीरे यह सूर्यकुण्ड एक डंम्पिंग ग्राउन्ड में बदल गया। इसके एक दशक
से कस्बें के इस सूर्यकुण्ड पर पत्थरों से निकलता गौ मुखी पानी अब भी बह रहा है।
लेकिन रख रखाव के अभाव में आसपास गंदगी फैल रही है। वर्ष 1998 में ग्राम पंचायत ओबरी के संरपचं गोविन्द बुनकर ने खुली पडी गौमुखी को
टंकी बनाकर बंद दिया तब से पानी की आवक निरन्तर है। जो आज भी पेयजल के उपयोग में
लाई जा सकती है। लेकिन उसके बाद भी किसी ने इसकी सुध नही ली कभी गौमुखी पुरे गांव की
प्यास बुझाया करती है। जो आज बदहाल स्थिती मै है लेंकिन गौमुखी अपनी वेदना किसे
बताने जाये।
सजग ग्रामीण नेपाल सिंह चौहान 'ओबरी' बताते हैं कि ओबरी की
शान सूर्यकुंड ही है। प्रशासन और ग्राम पंचायत द्वारा इसका स्थाई और समुचित ध्यान
देकर इसे वापस इस अनमोल धरोहर का आबाद करना चाहिए इसके लिए प्रशासन के साथ साथ
ग्रामीणों का सहयोग आवश्यक है। जिससे लोगो राहत मिल सकें।
सूर्यकुंड बचाने को सदैव अग्रसर समाजसेवी कांतिलाल सरैया ने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि इस धरोहर को बचाने व सजाने के लिए न तो पंच-सरपंच कुछ कर रहे हैं ना ही सांसद-विधायक. न जाने लाखो की कमाई वाली ग्राम पंचायत का बजट कहाँ जाता है? सूर्यकुंड की दुर्दशा से यहाँ कस्बे का पुराना बाज़ार भी खत्म होने के कगार पर है.
सूर्यकुंड बस्ती के पुराने बाशिंदे शांतिलाल दर्जी का कहना है कि, यह प्राचीन सूर्यकुण्ड है इसे समय रहते बचाना आवश्यक है। समय समय पर पानी की आवक हेतु पुख्या प्रबंध करवाने चाहीए। इस कुण्ड का पानी पशुओं के लिए भी काम का नही रहा है। इस हेतु जनसहयोग एवं भामाशाह एंव युवाओ को मिलकर इसे पुन जीवित करना होगा.
सूर्यकुंड बचाने को सदैव अग्रसर समाजसेवी कांतिलाल सरैया ने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि इस धरोहर को बचाने व सजाने के लिए न तो पंच-सरपंच कुछ कर रहे हैं ना ही सांसद-विधायक. न जाने लाखो की कमाई वाली ग्राम पंचायत का बजट कहाँ जाता है? सूर्यकुंड की दुर्दशा से यहाँ कस्बे का पुराना बाज़ार भी खत्म होने के कगार पर है.
सूर्यकुंड बस्ती के पुराने बाशिंदे शांतिलाल दर्जी का कहना है कि, यह प्राचीन सूर्यकुण्ड है इसे समय रहते बचाना आवश्यक है। समय समय पर पानी की आवक हेतु पुख्या प्रबंध करवाने चाहीए। इस कुण्ड का पानी पशुओं के लिए भी काम का नही रहा है। इस हेतु जनसहयोग एवं भामाशाह एंव युवाओ को मिलकर इसे पुन जीवित करना होगा.
सूर्यकुंड बचाने के लिए सक्रिय जितेंद्र दर्जी ने कहा कि, जनसहयोग के अलावा प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को भी इस ओर ध्यान देना
चाहिए। समय समय पर जल स्वावलंबन अभियान में भी इस कुण्ड की सफाई एंव जल आवक के
बारे में इंतज़ाम होना चाहिए. और ग्राम पंचायत द्वारा कुडा कचरा एवं गंदगी फैलाने
वाले पर उचित दण्ड का प्रावधान रखना चाहिए. और जिस किसी ने शौचालय के गंदे पानी की
निकासी के पानी के पाईप सूर्य कुण्ड की तरफ किये है उनकों प्रशासन और ग्राम पंचायत
द्वारा नियमानुसार कार्यवाही करनी चाहिए।
पता नहीं, प्रशासन और प्रजा कब जागे, लेकिन ये सच है कि कभी ओबरी
को पहचान दिलाने वाला सूर्यकुंड और उसकी सदानीरा गौमुखी बर्बादी के कगार पर है और
अपनी दुर्दशा पे आंसु बहा रहा है !
- दिलीप आर दवे, पत्रकार एवं समाज सेवी
(C) सर्वाधिकार ब्लॉग के पास सुरक्षित
- दिलीप आर दवे, पत्रकार एवं समाज सेवी
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