बीच शहर जंगल के रखवाले बेडसा !!

इस दौर में हमने हरे-भरे जंगल काटकर कॉन्क्रीट के जंगल खड़े कर दिए है, वहीं कुछ प्रकृति प्रेमी लोगो ने अब भी जंगल से राबिता नहीं छोड़ा है! एक ऐसी ही शख्शियत है Virendra Singh Bedsa {वीरेंद्र सिंह बेडसा}। शिक्षक के पेशे की विवशता से भले ही वह हिल सिटी डूंगरपुर में बस गए हो, लेकिन दिल में बसा है अपना बीहड़ गांव (बेडसा) भला कैसे निकाल पाते??


लिहाज़ा धुन के पक्के बेडसा ने शहर के बीचों बीच अपने घर के पीछे खाली पड़े प्लाट में इश्क़-ए-जंगल की नई इबारत लिख डाली-बोनसाई जंगल उगाकर!

बेडसा के इस अनूठे और शायद वागड़ के इस इकलौते बोनसाई जंगल में आपको महज़ 6 इंच से लेकर 24 इंच तक के और 5 साल से 15 साल तक कि उम्र के पौधे आपको अचरज में डाल देंगे! 20 इंच का बरगद भी मिल जाएगा, तो डेढ़ फीट का लहलहाता पीपल भी! पिपली, गूलर, निम्बू, संतरा, कल्पवृक्ष, फिकस की विभिन्न प्रजातियाँ ऐसे न जाने कितने ही पेड़ हमे हैरत अंगेज़ बौनी साइज़ में मिल जाएंगे। 

दर असल बोनसाई एक जापानी तकनीक है, जिसमें वृक्षो को बहुत नाटे कद में पल्लवित किया जाता है। इनका कद जितना छोटा होता है, उसमे मेहनत भी उतनी ज़्यादा लगती है। पेड़ पौधों को कलात्मक ढंग से उगाने की ये परंपरा अब तक अमीर लोगों का शगल रहा है, लेकिन अब तेज़ी से आम लोगो मे भी ये लोकप्रिय हो रही है।जापानी शब्द बोनसाई में बोन का अर्थ है छिछला पात्र और साई का अर्थ है पौधा।

ये तो बेडसा की प्रकृति से प्रेम की एक छोटी सी मिसाल मात्र है। डूंगरपुर जैसे छोटे से शहर में बरसों से बर्ड फेयर, वन महोत्सव, वन्यजीव बचाव, पर्यावरण संरक्षण, लेखन एवं दस्तावेजीकरण जैसे अभियानों में सदैव अग्रणी रहनेवाले बेडसा पुराने शहर में हेरिटेज वॉक शुरू करवाने जैसे भागीरथ कार्यो में भी सक्रिय रहे हैं।
इनके इसी प्रकृति प्रेम के चलते उन्हें पिछली सरकार ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मानद वन्य जीव प्रतिपालक मनोनीत किया था।
~ जितेंद्र जवाहर दवे

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