फिर ज़िंदा हुई गलालेंग की गाथा
आदिवासी अंचल की
विलुप्तप्राय थाती गलालेंग और गाथा गीतों को मिला अपूर्व संबल
300 वर्ष
पुराने अनछुए मौखिक साहित्य की पहली बार हुई ऑडियो और विडियो रिकार्डिंग
बाँसवाड़ा, 16 सितम्बर/विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी और अब
तक अनछुई रही वागड़ की प्राचीन और गौरव की प्रतीक संगीतमयी वीरगाथाओं को लोढ़ी
काशी बांसवाड़ा में अपूर्व संबल प्राप्त हुआ है और पहली बार इनकी ऑडियो और विडियो
रिकार्डिंग की जा रही है। यह अनूठी पहल की है वर्षों से संगीत की साधना में रत
अभिनव शिक्षा समिति बांसवाड़ा एवं कला व संस्कृति को संरक्षण प्रदान करने वाले
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर के द्वारा।
अभिनव शिक्षा समिति की सचिव सुश्री मालिनी काले के प्रयासों से जनजाति अंचल की वीरगाथा गलालेंग एवं जोगी सम्प्रदाय के गाथा गीतों को संरक्षण प्रदान करने के लिए यहां सूर्यानंद नगर में समिति कार्यालय में आयोजित हो रही तीन दिवसीय विशेष कार्यशाला में इन गीतों की ऑडियो और विडियो रिकार्डिंग की जा रही है। पिछले दो दिनों से सुबह 10 से रात्रि 8 बजे तक लगातार चलने वाली इस कार्यशाला में बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले के दो दर्जन से अधिक जोगी जाति के लोक कलाकार अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं। इन कलाकारों में छोटी सरवन पंचायत समिति के कालाखेत निवासी 82 साल के वयोवृद्ध भैरूनाथ के साथ ही डूंगरपुर जिले के कुरनाथ, खेमनाथ, नाथूनाथ, हीरनाथ और अन्य कलाकार भी हैं जो सुबह से लेकर शाम तक वागड़ अंचल की इस विलुप्त कला को जीवनदान दे रहे हैं। अब तक आठ तरह के गाथा गीतों की रिकार्डिंग पूर्ण की जा चुकी है और शेष की रिकार्डिंग जारी है। कार्यशाला का समापन रविवार को किया जाएगा।
स्मृतियों में
संजोये गीतों को शब्दों में पिराने का प्रयास :
इस कार्यशाला की
विशेषता यह है कि अब तक मानस पटल पर स्मृतियों में अंकित इन गीतों के साथ परंपरागत
वाद्ययंत्रों की स्वर लहरियों के साथ गायन तो हो ही रहा है अपितु पहली बार इन
गीतों का लेखन भी किया जा रहा है। गीतों के लेखन के कार्य में समिति सचिव मालिनी
काले के साथ आदित्य काले, खेमराज
डिण्डोर, भरत नानावटी, अश्विनी रोत,
मोहनलाल द्वारा सहयोग किया जा रहा है।
गलालेंग के साथ 10 अन्य गाथाएं भी:
गलालेंग के साथ 10 अन्य गाथाएं भी:
अभिनव शिक्षा समिति की सचिव
सुश्री मालिनी काले ने बताया कि 300 से अधिक वर्षों से वागड़ में जोगी जाति के कलाकारों द्वारा मौखिक रूप से
गाई जाने वाली वीर गुलालसिंह की गाथा ‘गलालेंग’ के साथ ही श्रवण कुमार के गीत ‘हरवण’, भाई-बहन का गीत ‘काछली’, भजनों
मेें गोरखनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, मीरा व
कबीर के भजन, कृष्णा की प्रेमगाथा ‘कलमण’,
साखल देश की लड़की की गाथा ‘हाकली’, बाराबीज के मन्नत गीत ‘मादा’, डिण्डोर,
रोत, चरपोटा व ननोमा भीलों की वंशावलियों के
साथ खांदू के सरदारों के गीत ‘हरदारेंग’, मृत्युगीत ‘घाटा’ तथा चौहान
गीतों का गायन व लेखन किया जा रहा है। लोक कलाकारों द्वारा प्रमुख वाद्य यंत्रों
केन्दुरू, मंजीरा, तम्बूरा, ढोलक आदि की संगत देते हुए प्रस्तुतियां दी जा रही है।
बांसवाड़ा/अभिनव शिक्षा समिति सभागार में गाथागीतों की रिकार्डिंग करवाती समिति सचिव सुश्री मालिनी काले व मौजूद लोक कलाकार। |
गाथा गीतों को
परखेंगे शास्त्रीय संगीत की कसौटी पर:
समिति की सचिव
काले ने बताया कि इन गीतों की रिकार्डिंग के बाद समस्त गीतों को शास्त्रीय संगीत
की कसौटी पर परखा जाएगा तथा यह पता लगाया जाएगा कि ये गीत कौन-कौनसे राग-रागिनियों
पर आधारित हैं। इनकी सांगीत की विशेषताओं का पता लगाते हुए शोधपत्र तैयार किया
जाएगा। उन्होंने बताया कि प्रथम दृष्टया इन गीतों में संगीत के सात सुरों में से
कहीं दो तो कहीं चार सुर ही प्राप्त हुए हैं और कहीं-कहीं तो कोई गीत सिर्फ एक सुर
में ही प्राप्त हो रहा है। उन्होंने इस दृष्टि से वागड़ अंचल के इस अनूठे लोक
साहित्य को परखने की आवश्यकता प्रतिपादित की है।
~ आलेख व छाया: कमलेश शर्मा, DIPR सहायक निदेशक बांसवाड़ा
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