गरियाता गणपति- दूरदर्शी युवाओं की पहल से इको फ्रेंडली, मितव्ययी और स्थाई व्यवस्था


स्वाधीनता सेनानी लोकमान्य तिलक की पहल से महाराष्ट्र से शुरु हुआ सार्वजनिक गणेशोत्सव आयोजन अब देश के कोने कोने में पहुंच गया है. ऐसे में दक्षिणी राजस्थान का वागड़ अंचल भी कैसे अछूता रहता? लिहाज़ा आज वागड़ के कई गांवो और नगरों में बड़े ही धूमधाम से गणेशोत्सव मनाया जाता है. सिर्फ़ मनाया ही नहीं जाता, बल्कि इस में निरंतर नवाचार भी हो रहे हैं.

एक ऐसा ही नवाचार किया है डूंगरपुर ज़िले की गलियाकोट पंचायत समिति के गांव गरियाता ने. यहाँ 15-20 वर्षों से सर्व सनातन समाज द्वारा गणेशोत्सव मनाया जाता है. लेकिन दो वर्ष पूर्व गांव के युवाओ ने गणपति विसर्जन के बाद गणपति की प्रतिमाओ कि दुर्दशा देखकर और प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी गणपति प्रतिमाओ से होनेवाले प्राकृतिक नुकसान को जानकर कोई स्थाई समाधान खोजने का संकल्प लिया. और फिर गरियाता युवा संघ के अध्यक्ष विमलेश एम सुथार के नेतृत्व में गांव के विकासशील और जागरुक युवाओ ने धातु की सुंदर प्रतिमा लाकर स्थाई समाधान का निर्णय लिया.

अब धातु की प्रतिमा यहाँ वागड़ में तो मिलती नहीं. तो मध्य प्रदेश के चक्कर लगाए. धातु की प्रतिमा काफी महंगी भी होती है. तब कुवैत मे कार्यरत गरियाता के प्रवासियों ने सम्बल दिया. गरियाता मूल के प्रवासियों के कुवैत फाउंडेशन के संस्थापक संतोष यादव ने कुवैत से करीब 65 हजार के योगदान की व्यवस्था की. बाकी की राशि गरियाता के सनातनियों ने प्रदान की. इस तरह पीतल से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा लाने का सपना साकार हुआ.

इस वर्ष से गणेशोत्सव में इसी पीतल की 151 किलोग्राम वज़नी, करीब पांच फीट ऊंची गणेश प्रतिमा स्थापना का श्रीगणेश हुआ है. इस पूरे प्रकल्प में संगठन के उपाध्यक्ष योगेन्द्र सिंह राठौर ,दीपक कलाल,उप सरपंच  कमलेश प्रजापति, सचिव चिराग प्रजापति, प्रवीन प्रजापति, महासचिव दिलीप माली, खुशपाल कलाल, संगठन मंत्री पुनीत, विहान, मीडिया प्रभारी हर्षित झाण्डा, राजेश प्रजापति, दीपेश यादव, गौरव रावल, राहुल भाटिया, हितेश कलाल आदि सभी कार्यकर्ताओ का अहम योगदान रहा. इस बार आचार्य भारत भूषण जी जोशी के सानिध्य में यजमान मित्तल कलाल एवं मनीष कलाल द्वारा स्थापना का लाभ लिया गया. दस दिवसीय गणेशोत्सव के अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी के दिन इस गणेश विग्रह का नदी/ तालाब पर स्नान करवाकर अगले वर्ष पुन: पंड-आल में स्थापित किया जाएगा. इससे न केवल पर्यावरण को कोई नुकसान होगा, बल्कि बार-बार प्रतिमा खरीदने में व्यय भी नहीं होगा.   

गणेशोत्सव में धातु की प्रतिमा पर शास्त्रों के जानकार और वागड़ के विख्यात ज्योतिषी पंडित रमेश जी भट्ट, भीलूडा ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि,..

 “पहले गणपति की प्रतिमा मृदा (मिट्टी) की बनाकर स्थापित होती थी. लेकिन कालांतर में पीओपी की मुर्तियाँ बनने लगी. जो कि पर्यावरण के लिए काफ़ी घातक होती हैं. ऐसे में पीतल की प्रतिमा की स्थापना एक बढिया और शास्त्र-सम्मत प्रयास है. इसे बढ़ावा देना चाहिए. यहाँ भीलूडा में भी गणेशोत्सव पर गणपति की अष्टधातु की प्रतिमा ही स्थापित की जाती है.”  

गरियाता गणेशोत्सव आज युवाओं की आधुनिक सोच के साथ धार्मिक जागृति, सनातन समाज में सामाजिक समरसता और प्रकृति प्रेम का अनुपम उदाहरण पेश कर रहा है.  

 -जितेंद्र जवाहर दवे

 


7 टिप्‍पणियां

बेनामी ने कहा…

याह जो न्यूज डाली है वो बिल्कुल गलत है यहां मूर्ति सिर्फ 3 फीट की है वो 80 से 100 किलो की है

बेनामी ने कहा…

🤔

बेनामी ने कहा…

कभी कभी लिखते लिखते कलम ज्यादा चल जाती हे

बेनामी ने कहा…

मुझे लगता है कि 90 से 110किलो के बीच में होगी

JitDave ने कहा…

भाई थोडा साहस जुटा और अपना नाम, फोन नम्बर भेज, मैं तुम्हे प्रतिमा का बिल और फीते से मुर्ति का नाम भेजता हूँ.

JitDave ने कहा…

आयोजको को पूछ लो. उनके पास सारे प्रमाण हैं. या खुद जाकर देख लो कि कितना वजन और ऊंचाई है.

बेनामी ने कहा…

तेरे जैसे आवारा बदचलन कुत्तों कि वज़ह से हि गांवों का विकास नहीं होता,लगता है किसी कि नाजायज पैदाइश है
वेसे देखा जाए तो आयोजको द्वारा बहुत हि उत्कृष्ट कार्य किया गया है, जिसकी वज़ह से एसे चमन चु...यो कि जल रही है