श्रीराम का इतिहास और वर्तमान, जन मन से अपने प्रांगण तक की यात्रा
अवध का अति प्राचीन नाम साकेत नगर था । पर्याय रूप में इस इसे अयोध्या और श्वावस्ती भी कहा जाता हैं, अयोध्या कौसल राज्य का प्रसिद्ध नगर था।
रामायण के अनुसार अवध की स्थापना सरयू के तट पर भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु ने की थी । मनु के दस प्रतापी पुत्र थे जिसमें इक्ष्वाकु सबसे प्रतापी राजा हुए । इक्ष्वाकु वंश में ही काफी प्रतापी राजा हुए । इसी वंश में मांधाता, सगर, हरिश्चंद्र, दिलीप , भगीरथ, पृथु आदि । प्रथु का वंश आगे बढ़ते हुए रघु, रघु के अज , अज के दशरथ और दशरथ के चार पुत्र में सबसे बड़े पुत्र श्रीराम जी विष्णु के 7 वें अवतार में प्रकट हुए। श्री राम जी को अवध बिहारी भी कहा जाता हैं। रामजी सूर्य वंश के 68 वी पीढ़ी में हुए थे। राम जी ने इस पृथ्वी पर पापियों का नाश और रावण व कुंभकर्ण जैसे राक्षसों का अंत कर धरती के भार को उतारा था। राम जी एक मात्र आदर्श पुरुष है जिन्होंने कभी मर्यादा का उल्लंघन कभी नहीं किया। ऐसे राम को आम जन से लगा कर बड़े बड़े राजाओं ने अपना आदर्श, अपना मार्गदर्शक , अपना इष्ट देव, अपना रक्षक और तारणहार माना और इसलिए तो सुबह उठते ही हम रामजी को याद करते है, कहते हैं राम जी की बेला , किसी के स्वागत में राम राम, दुःख में हे राम, पीड़ा में अरे राम ,लज्जा में हाय राम, अशुभ में अरे राम राम, अज्ञानता में राम जाने, अनिश्चितता में राम भरोसे, अचुकता में राम बाण , मृत्यु में राम नाम सत्य है। सुशासन के लिए राम राज्य। राम जी तो हमारे रोम रोम में बसे हैं। कहा जाता हैं राम जी तो हर प्राणी की औषधि हैं....
राम नाम की औषधि खरे मन से खाय। अंग रोग व्यापे नहीं भय रोग मिट जाय।।
मुझ में राम , तुझमें राम सबमें राम समाये हुए हैं।
भगवान की महिमा अनन्त है इसका विस्तार जितना भी करें कम ही पड़ता है । पार्वती जी को पता चला तो वह भी गणेशजी को लेकर अयोध्या रामजी के दर्शन को चली । मतलब श्रद्धा और ज्ञान जहां राम जी होते हैं वहां पहुंच ही जाते है।
जो ज्ञान गुण में प्रवीण हो वह शुद्र है ही नही । उसे शुद्र नही कह सकते है जो धर्म, यज्ञ व अध्यात्म का पालन करता हो वह तो ब्राह्मण ही है । जात पात का तो भ्रम तोड़ देना चाहिए । अब शुद्र शब्द तर्क संगत नही रहा ।
रामजी को जब राज्य मिलने ही वाला था तब कैकई ने दो वरदान दशरथ जी से मांगे , रामजी को वनवास और भरत को राज गादी।
रामजी ने पिता की आज्ञा समझ कर 27 वें वर्ष सन्यासी बन कर वन गमन किया , लक्ष्मण और सीता जी भी राम की सेवा में वन गमन में साथ हो गए।
केवट ने गंगा जी पार करते समय रामजी को मना किया और कहा -
मोरी छोटी सी नाव, तोरे जादू भरे पांव। मोहे डर लागे राम, कैसे बेठाऊ तोहे नाव॥
केवट को अहिल्या का प्रसंग पता था।
तब भगवान ने केवट को अनुनय विनय किया , ईश्वर की लीला देखो , विनम्रता और सौहार्द देखने मिलता है। फिर केवट ने गंगा पार कराई। जब सीताजी ने अंगूठी की भेंट केवट को दी तो केवट ने रोते हुए प्रभु के पैर पकड़ लिए।
प्रभु आए मोरे द्वार, पार में उतार दिन्हो। जब आऊं तोरे घाट, पार मोहे उतारियो।।
रामजी परमात्मा है, लक्ष्मण सत्य स्वरूप है और सीता जी रितंबरा प्रज्ञा है । जहां राम है वहां सत्य है वहां बुद्धि है।
जो अधम है राम उनके पास जा कर उद्धार करते है - मारीच, ताड़का , खर दूषण आदि। जो सात्विक हैं, भक्त है, उनके पास राम स्वयं गए - अहिल्या, कबंध, जटायू , शबरी , सुग्रीव , बाली व लंका तक गए ।
जय माया मृद मंथन , जय माया मदन गिद्ध। जय कबन्द सुंदन , जय भवन बाली बदन सूदन ।।
शबरी के घर राम आए तो शबरी द्रवित हो गई। राम महल से गरीब शबरी के झोपड़ी तक जाते है , उत्तर से सुदूर दक्षिण में अंतिम महिला के पास जाकर झूठे बैर खाएं, यही तो अंतोदय है।
बालकाण्ड का प्रारंभ , अरण्यकांड का मध्य और अयोध्याकाण्ड का अंत, जो जाने वही संत है। ऐसा अवध के संत कहते है। हमारे मन मे विवेक की गंगा बहती है तब राम गंगा तट पर आ ही जाते हैं। राम आते है तब संयम बढ़ता है| जब संयम होता है , जीवन में तेज आता है । विषम परीस्थिति आवे तब कैलाशी बनो , विष पी कर पेट मे मत उतारो न ही वमन करो । जहर कंठ में ही रखों । अयोध्याकाण्ड युवानी है, जो शंकर की भांति जहर पीना पड़ता है । महादेव युवानी में बनना ही पड़ता है। राम को राज्य मिलने ही वाला था तब वन में जाना पड़ा , राम निराश नही हुए । गुरु का जीवन मे काम युवानी में पड़ता है। बचपन में माँ ही गुरु होती है।
जीवन मे खूब सुख आते है तब दुःख आने की भी तैयारी रखना, क्योंकि सुख में दुख व दुख में सुख खोजने वाला राम है। दशरथ जी ने प्राण त्याग दिए। भरतजी अयोध्या वासियों को लेकर प्रभु को वापस लाने के लिए आए । रामजी पिता की आज्ञा पालन करते हुए वन में ही रहने लगे। खूब विनती की रामजी को पर राम पिता की आज्ञा मानकर ,भरत को प्रभु पादुका देते है । भरत ने बड़ा निर्णय लिया की मै नन्दीग्राम में कुटिया बना कर रहता हूँ । भरत तप व्रत के साथ 14 वर्ष अयोध्या से बाहर रहने का निश्चय करते है। माँ कौशल्या को दुःख हुआ, राम के वन गमन व दशरथ के अवसान के बाद कभी कक्ष में नही गई बाहर आहते में दर्भ के बिछोने पर नीचे ही सोती रही । कौशल्या की विरह वेदना का बखान करना मुश्किल है।
भरत जी ने कौशल्या जी से आज्ञा मांगी. कौशल्या जी का जीवन बहुत दुःखों से भरा रहा उनको क्षणिक समय मे निर्णय लेने पड़े।
राम भक्त को भी इसी प्रकार निर्णय लेने पड़ते है। प्रेम हमेशा हार जाता है । न चाहते हुए भी भरत को कौशल्या ने नन्दीग्राम रहने की आज्ञा दी। क्योंकि माता जानती थी 14 साल तक भरत राम के विरह को सह नही सकता है। इसलिए माँ ने उसे भी साधु रूप धर कर नन्दी ग्राम में रहने की आज्ञा दी। शत्रुघ्न उस समय खम्भा पकड़ के खड़े है। माँ समझ गई , बेटा अन्दर से कितना सहनशील है। रामायण में शत्रुघ्न कही बोलता नही है। माँ ने कहा - बेटा ! हम सूर्य वंशी है हमारे हृदय में कभी ठंडक नही रहेगी।
नगर में बात फैल चुकी थी। भरत नन्दीग्राम रहेंगे। पूरे अयोध्या में एक बार पुनः उदासी छा गई। अयोध्या का राज्य रामजी की चरण पादुका संभाल रही है।
भरतजी ने शत्रुघ्न को गले लगाते हुए कहा - भाई तुझको एक सेवा देता हूँ । माताओं की सेवा कार्य करना उनका ध्यान रखना।
भरतजी ने वल्कल वस्त्र पहने। उर्मिला ने लक्ष्मण के वियोग में कठिन समय निकाला परंतु किसी से कोई शिकायत नहीं की भरत जी नन्दीग्राम रहने लगे । राम जी 13 वर्ष चित्रकुट रहे फिर भगवान का पंचवटी में आगमन हुआ । खर- दूषण को दंडित करते है । सूर्पनखा के नाक को लक्ष्मण काटते है । सीता जी का रावण द्वारा हरण होता है । जटायु का उद्धार किया , फिर कबन्ध मिला हाथ काटे । शबरी के आश्रम जाते है । आगे सुग्रीव के साथ मित्रता होती है बाली का वध होता है । सुग्रीव को राजा बनाते है ।
चार माह विश्राम के बाद सीता खोज हुई , हनुमानजी की वानर टोली सहित चार दिशाओं में चार टोलिया सीता खोज के लिए निकलती है , हनुमानजी का दल प्रभावती के आश्रम में जाते है । वो समुन्द्र किनारे पहुँचा देती है । वहां सम्पाती का मिलन हुआ , उसने हनुमानजी को सीता जी को अशोक वाटिका में स्थित होना व रावण की लंका की जानकारी बताई ।
जामवन्त ने हनुमानजी को उनकी शक्ति याद कराई ....
हनुमानजी जय सियाराम करके विराट रूप धारण करके लंका की तरफ आकाश मार्ग से उड़ चले । रास्ते मे सुरसा, मैनाक आदि मिलते है । लंका के द्वार पर लंकिनी को मुष्टिका मारी ।
विभीषण व हनुमान जी का मिलन हुआ , विभीषण जी ने हनुमानजी को अशोक वाटिका में सीता का मार्ग बताया।
हनुमानजी रात्रि के चौथे प्रहर सीताजी के अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष पर चढ़ गए । रावण आया , सीता को डराया धमकाया , हनुमानजी सब देखते रहे । फिर रामजी की मुद्रिका गिराई , रामकथा सुनाई । सीताजी को शांति मिली , बजरंगबली माताजी से मिलते है लंका के अक्षय कुमार को मारते है, लंका जलाते है । हनुमानजी माता से चूड़ामणि लेकर राम जी के पास पहुँचते है। रामजी हनुमानजी के कार्य से द्रवीभूत हो जाते है । रामजी वानरों के दल बल के साथ सुग्रीव की सेना लेकर लंका के लिए रवानगी करते है । समुन्द्र किनारे पहुँचते है , रामेश्वर की स्थापना करते है । समुन्द्र को तीन दिन प्रार्थना की कुछ असर नही हुआ । रामजी को क्रोध आया, धनुषबाण उठाए , समुन्द्र ब्राह्मण रूप में प्रकट हुआ । नलनीर को सेतु (पुल) बांधने का आग्रह किया।
उधर रावण को पता चला फिर भी निश्चिन्त हो कर अप्सरा के साथ गान व नृत्य को देख रहा था। भगवान ने एक बाण ऐसा मारा की रावण का मुकुट गिर गया । मंदोदरी को चिन्ता हुई । वह राम के पराक्रम से डर गई।भगवान ने सेतु बाध कर लंका जाकर राक्षसों का वध किया , मेघनाथ , कुम्भकर्ण सहित रावण का वध हुआ । युद्ध के समय रामजी की आयु 40-41 वर्ष की थी. विभीषण को लंका का राज्य दिया । पुष्पक विमान में बैठकर भगवान ने वापसी की तैयारी की। हनुमानजी ने पहले पहुँचकर भरत जी को आगमन की सूचना दी। भगवान का आगमन हुआ दीपावली मनाई ।अंगद व सुग्रीव को विदा किया, राम का वापस राज्याभिषेक हुआ। रामराज्य की स्थापना हुई । विद्वानों का कहना है रामजी ने 11000 वर्षो तक राज्य किया।
राम राज्य में जनता आनंदमय, सुखी और सात्विक जीवन जी रहे थे।भगवान के गोलोक गमन करते हुए अपने पुत्रों को शासन दिया और धर्म की स्थापना कर लव और कुश ने शासन किया। लव ने लवपुरम और कुश ने कुशापुरम जिसे लाहौर और कसूर कहते हैं।
अयोध्या में रामजी के जन्म स्थान पर कुछ ने भगवान श्री राम का विशाल मंदिर बनाया जो हजारों वर्षों तक रहा इस मंदिर का दर्शन करने एक बार राजा विक्रमादित्य पहुंचा जिसको देखकर वह अभिभूत हो गया उस मंदिर को राजा विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार कराया। वही मंदिर कालांतर में मुगल शासक बाबर के सेनापति ने 1527- 28 में विध्वंस कर मस्जिद बना दिया। माना जाता है की 1528 से 1852 तक 64 बार इस इमारत पर कब्जे के लिए संघर्ष हुआ। 1951 में और 1986 में बाबरी का ताला सरकार ने खोल कर इस धार्मिक और राजनीतिक हलचल बढ़ गई।
कालांतरण में राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा । इस दौरान 80 के दशक में एक बड़ी क्रांति रामानंद सागर की टीवी सीरियल ने भी पैदा की । रामायण ने भी के और लोगों के दिलों में रामजी को पुनः जगाया। विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख अशोक सिंघल ने 1989 में राम मंदिर आंदोलन की योजना बनाई । जिसने भाजपा ने सहयोग दिया और अपने एजेंडे में शामिल किया।
1992 में कार सेवकों ने बाबरी ढांचा गिरा दिया। जयश्री राम का नारा अब जन्म भूमि आंदोलन का हिस्सा बन गया। कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 में कोर्ट के फैसले के बाद सम्पूर्ण विवाद समाप्त होते ही राम मंदिर के बनाने का रास्ता साफ हो गया।
लंबे संघर्ष और युद्ध के बाद हम सब ने आज पुनः उस वैभव को प्राप्त किया है, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदीजी के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा और राम जन्म भूमि न्यास के सभी सदस्यों , भारत के सभी संतो की और देश के प्रतिष्ठित महानुभावों की उपस्थिति में भव्य कार्यक्रम हुआ, इस प्रकार रामजी के आगमन से चहुं ओर प्रसन्नता है। रामजी का मंदिर बना और पूरे देश में जन जागृति आई । भारतवर्ष नए वैभव को प्राप्त हो रहा है।
अवध बिहारी राम अब जन जन के ह्रदय पटल के सूर्य को आलौकित कर रहे हैं। देश का हर गांव और शहर अयोध्या बन रहा है। भेदभाव को मिटा कर समता और समरसता का राम राज्य हमेशा रहें , यही प्रभु से प्रार्थना है।
जय सियाराम।
- राजेंद्र कुमार पंचाल, सामलिया (शिक्षक एवँ ज्योतिर्विद)
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