विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में वागड़ का एक चमकता सितारा थे डॉ. कवित मेहता
कहते हैं, ज़िंदगी लम्बी नहीं लेकिन बड़ी होनी चाहिए. ठीक यही बात खरी उतरती है डॉ. कवित मेहता पर. जिन उपलब्धियोँ को हासिल करने में पूरी ज़िंदगी लग जाती है, उसे महज़ 35 साल की आयु में ही हासिल करके विज्ञान और टेक्नोलॉजी में एक अहम मुकाम पर पहुंचने वाले कवित का जन्म 1 मार्च 1985 को डूंगरपुर ज़िले के भीलूडा गांव में हुआ था.
विज्ञान के शिक्षक पिता से उन्हे बचपन से ही
विज्ञान से रुचि विरासत में मिली. गौरतलब
है कि, उनके पिता सुरेश मेहता विज्ञान व्याख्याता रहे हैं और हाल ही में प्राचार्य
के पद से रिटायर हुए हैं. बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल कवित की आरम्भिक शिक्षा गाँव
के ही विद्या भारती के स्कूल विद्यानिकेतन माध्यमिक विद्यालय से हुई.
उसके बाद मध्यप्रदेश के नामी अहिल्याबाई
विश्वविद्यालय से सम्बद्ध Maharaja Ranjit Singh College of Professional
Sciences, इंदौर से बायो टेक में बी.एससी. और बंगलुरु के Jawaharlal
Nehru Centre Advance Scientific Research, Bengaluru से सम्बद्ध
बृँदावन कॉलेज, बंगलुरु से एम.एससी. किया. वह उस वक़्त बायोटेक जैसे नए विषय की पढ़ाई करने
वाली वागड़ की शुरुआती गिनी-चुनी प्रतिभाओ में से वह एक थे.
एम.टेक. की पढ़ाई के बाद वह गणपत विश्वविद्यालय महेसाणा (गुजरात) से बतौर प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक (बायोटेक) जुड़े. और उसके बाद उन्होने पीछे मुड़कर नहीं देखा. और एक-एक कर अनेक उपलब्धियाँ हासिल करते रहे.
सम्मान:
साल 2018 में उन्होने विज्ञान क्षेत्र में विश्व चैंपियनशिप जीती. जिस में विश्व के 95 देशों के प्रतिनिधियों में उन्होने भारत का प्रतिनिधित्व किया. इसके बाद माइक्रो बायोलॉजिकल रिसर्च (एथनोमेडिसिन) में उन्हे "फादर ऑफ बायोटेक" की उपाधि से अलंकृत किया गया.
साल 2019 में इंस्टीट्यूशन कैपेसिटी बिल्डिंग द्वारा और साल 2020 में जीआरडी फाउंडेशन द्वारा "बेस्ट साइंटिस्ट अवार्ड" दिया गया.
शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए क्रिएटिव इनोवेशन अवार्ड 2017 मिला.
लगातार 2 वर्षों तक "प्रसिडेंट एवार्ड" प्राप्त किया.
वह गुजरात राज्य जैव प्रौद्योगिकी मिशन (GSBTM) गांधीनगर के सदस्य रहे.
उत्तर गुजरात क्षेत्र के CBC के समन्वयक भी रहे.
इसके अलावा, गुजरात में विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने वाली प्रतिष्ठित संस्था विज्ञान गुर्जरी के सदस्य भी रहे.
अध्ययन-अध्यापन के अलावा प्रकाशन जगत में भी कवित ने अपनी छाप छोड़ी और देश-दुनिया के नामी प्रकाशनों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.
कवित की लिखी पुस्तक "The future off Effluent Treatment Plant" का प्रकाशन मरणोपरांत यूएस के पब्लिशर द्वारा किया गया है.
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सेमिनारों को संबोधित किया व उनके शोध का प्रकाशन लगातार हुए.
अध्ययनशील प्रवृत्ति के डॉ. कवित भारत की पहली बायो फ्रंटियर मैगजीन के सह संपादक भी रहे.
इंटरनेशनल जर्नल फॉर इनोवेटिव रिसर्च इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी 2016, प्रकृति, एशियाई जर्नल ऑफ बायोसाइंस, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बॉटनी स्टडीज, इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंसेज, इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंसेज, वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च और अमेरिकन जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी रिसर्च सहित विभिन्न पत्रिकाओं में उनके अनेको रिसर्च पेपर प्रकाशित हुवे और अल्पायु में बॉयोटेक में अपनी शोध के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।
गुरुओं का नाज़ !
कवित की पीएचडी के गाइड रहे डॉ. बी.के जैन, Director, JMD
Institute of Nursing And Science, Rayson, Gandhinagar (Former Principal, MG
Science Institute, Ahmedabad) का कहना है कि,
“कवित एक बेहद ही मेहनती थे और उन पर लीक से हटकर रिसर्च करने की धुन सवार थी. वह
हमेशा ही कुछ नया करने और खोजने में व्यस्त रहते थे. इतनी कम उम्र में दुनिया के नामी जर्नल्स में
अपने पेपर छपना बहुत बड़ी बात है. मैं भी मूलत: वागड़ से होने के कारण कवित से विशेष
स्नेह रहा. उनका आज्ञाकारी और विनम्र स्वभाव बहुत लुभाता था.”
अंतर्मुखी स्वभाव के अध्ययनशील कवित बहुत मितभाषी थे, लेकिन उनके देहांत के बाद भी उनका काम बोलता रहा और हाल ही अपने कार्य स्थल गणपत यूनिवर्सिटी ने घोषणा की है कि, प्रति वर्ष गोल्ड मेडल "डॉ कवित मेहता" के नाम से दिया जाएगा. यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सम्मान है. पिता सुरेश मेहता बताते हैं कि, देहांत के कुछ वक़्त पहले ही कवित का चयन देश के नामी शोध संस्थान रिलायंस लाइफ़ साइंस में एक अहम पद पर भी हो गया था.
लेकिन जैसाकि अक्सर होता है, कुछ प्रतिभाएँ समय से पहले ही इतिहास रचकर इस दुनिया से चली जाती
हैं... डॉ. कवित मेहता ने भी महज़ 35 साल
की आयु में ढेर सारी उपलब्धियाँ अपने नाम करके, वैश्विक
महामारी कोविड-19 के कारण 29 अप्रैल 2021 को अहमदाबाद में देह त्याग दी. वह अपने पीछे वागड़ और ख़ासकर युवाओं के लिए एक
ऐसी मिसाल और प्रेरणा छोड़ गए, जिसका अनुकरण करके विज्ञान और
टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में वागड़ का डंका बज सकता है.
उनके देहांत के बाद उनके बचपन के स्कूल विद्या
निकेतन माध्यमिक विद्यालय, भीलूड़ा की प्रबंध समिति ने
अपने प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए प्रतिवर्ष स्वर्गीय डॉ. कवित मेहता पुरस्कार
समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया है. विद्यानिकेतन प्रधानाचार्य दिनेश व्यास ने बताया कि विद्यालय, गांव और वागड़ की इस बेजोड़ प्रतिभा को इससे बड़ी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है कि युगो युगो तक उनके उत्कृष्ट अकादमिक रिकॉर्ड से हजारों छात्र प्रेरणा पाएंगे.
~ जितेंद्र
जवाहर दवे
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