अर्थुणा: परमार युगीन मोहक पुरा-सम्पदा का खज़ाना
युवा फोटोग्राफर गौरव जोशी, सालिया का फोटो फीचर
मंदिर हमारी सभ्यता का अहम हिस्सा रहे हैं. इनका ना सिर्फ़ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रहा है. बल्कि ये उस काल के आर्किटेक्चर, कलाप्रेम और सामाजिक समृद्धि के गवाह भी हैं.
जनजाति अंचल में बसे वागड़ अंचल के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध अर्थुणा एक ऐसा ही ऐतिहासिक, पुरातात्विक और धार्मिक स्थल है. जहाँ ग्यारहवी सदी की का पुरा-वैभव हमें चकित कर देता है. अर्थुणा गांव से करीब डेढ़ दो किमी दूर करीब डेढ वर्ग किमी के दायरे में यह पुरा सम्पदा फैली हुई है.
सन 1954 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने यहाँ खुदाई की थी. इसके बाद इस क्षेत्र पर देश- दुनिया की रौशनी पड़ी. यहाँ मंदिरो में नियमित पूजा होती है और धार्मिक तीर्थयात्री व सांस्कृतिक पर्यटक भी आते रहते हैं. कुछ वर्ष पूर्व बांसवाड़ा जिला प्रशासन ने यहाँ ख़जुराहो फेस्टीवल की तर्ज़ पर अर्थुणा-माही फेस्टीवल भी आयोजित किया था.
पहुंच: दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित अर्थुणा जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी है. यह गढ़ी-परतापुर से 20 किमी दूर आनंदपुरी मार्ग पर स्थित है. यह निकटतम डबोक (उदयपुर) एयरपोर्ट से 150 किमी और अहमदाबाद एयरपोर्ट से 255 किमी दूर है. निकटतम रेल्वे स्टेशन रतलाम (मध्य प्रदेश) है, जो करीब 115 किमी दूर है.
डूंगरपुर से भी यहाँ पहुंचा जा सकता है. परतापुर और गलियाकोट (जो कि प्राचीन शीतला माता मंदिर और दाउदी बोहरा सम्प्रदाय के पीर फखरुद्दीन की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है) निकटतम कस्बे हैं. यहाँ का टेलीफोन एरिया कोड 0091-2963 है.
अर्थुणा का प्राचीन नाम उथुनका था. जो वागड़ में परमार शासकों की राजधानी हुआ करता था.
उन्ही शासकों ने ग्यारवी व बारहवी शताब्दी में शैव, वैष्णव व जैन मंदिरो का निर्माण कराया था. मालवा के परमार शासको की एक शाखा वागड़ अंचल में भी काबिज़ रही थी.
यहाँ भगवान शिव को समर्पित मंडलेश्वर मंदिर परमार वंश के चामुंडा राजा ने अपने पिता की स्मृति में 1079 इस्वी में बनवाया था. ये यहाँ का प्रमुख मंदिर है. शिलालेख के अनुसार 1080 इस्वी में उसके उत्तराधिकारी अनंतपाल ने एक और शिव मंदिर बनवाया था. यहाँ तीन शिव मंदिर हैं. जो लकुलिसा शैव सम्प्रदाय से जुड़े हुए हैं.
यहाँ भगवान विष्णु और हनुमानजी (अर्थुणिया हनुमानजी) का मंदिर भी विख्यात है. यहाँ भूषण ने 1190 ईस्वी में जैन मंदिर का निर्माण कराया था. 11वी सदी के बाद के कुछ जैन स्तम्भ भी यहाँ मौजूद हैं.
यहाँ एक और महत्वपूर्ण मंदिर है चौसठ योगिनी का. इस अर्थुणा परिसर में शिव तांडव, अंधक वध और माँ चामुंडा की प्रतिमाएँ भी हैं. यहाँ एक सीढ़ीदार कुंड भी बना हुआ है. धार्मिक ही नहीं, पुरातात्विक लिहाज़ से भी अर्थुणा एक बेशकीमती विरासत है. साथ ही पर्यटन की प्रचुर सम्भावनाएँ भी.
भौगोलिक स्थिति: Arthuna (Lat. 23o 30’ N; Long. 74o 05’ E)
आलेख: जितेंद्र
जवाहर दवे, फोटो: गौरव जोशी
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