हाथ से अखबार निकालने वाले, सामाजिक बदलाव व आज़ादी के जुझारू योद्धा और डूंगरपुर रियासत के पहले मुख्यमंत्री: पं. गौरीशंकर उपाध्याय


कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आके शमा जलाये क्यों ?
वक्त के साथ उन पन्नो पर परत जम गई !
गांधी आश्रम डूंगरपुर जो वागड़ में आज़ादी के योद्धाओ का अहम केंद्र था.


वो जंगे आज़ादी के सिपाही, वो प्रखर पत्रकार, वो सामाजिक बदलाव के एक सजग प्रहरी थे।
आज 3 मई  को स्व. गौरीशंकर उपाध्याय का जन्म दिन है। पत्रकारिता के इतिहास में उनका नाम बहुत सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।

आदिवासी बहुल दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा में 3 मई 1910 को जन्मे गौरी शंकर उपाध्याय हाथ से अख़बार निकालते थे। कागज पर दर्ज हाथो से लिखे शब्दों से अंग्रेज हुकूमत और उनकी हिमायत में खड़ी रियासते बैचेन हो जाती थी। वे गाँधी के सच्चे अनुयायी थे। जिंदगी के उसूलो का पाठ पढ़ने वे सबरमती आश्रम गए और गाँधी जी से सीखा।

स्व गौरीशंकर उपाध्याय ने डूंगरपुर और सागवाड़ा को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। वहां हरिजन पाठशालाये खोली। कुछ स्कूल आदिवासी भीलो के लिए तो कुछ दलित बच्चो के लिए। उस वक्त मेवाड़ में भोगीलाल पंड्या की सरपरस्ती में  उपाध्याय जी के साथ हरिदेव जोशी, लक्ष्मण बाबा, भूपेंद्र त्रिवेदी जैसे अनेक अपना सब कुछ छोड़ कर जंगे आज़ादी में लगे हुए थे.
  
स्व गौरीशंकर उपाध्याय के हाथो संचालित ये स्कूलें दिन और रात पारी में चलती थी। दिन पारी में नो और रात पारी में 122 स्कूलों में बच्चे तालीम लेते थे। हॉस्टल भी चलाये। आदिवासी महिलाऐ उनके केंद्र पर चरखा चलाती और 'हाथ में काम, मुँह में नाम ' का नारा बलन्द करती थी। फिर पुस्तकालय और वाचनालय भी संचालित किये। कदाचित इन वर्गो के लिए यह पहला मौका था जब शिक्षा का उजियारा उन तक पहुंचा। सरकार खफा हो गई। स्कूलें बंद कराने का फरमान आया। जुल्म ढाये गाये।

स्व गौरीशंकर उपाध्याय और बाकि लोग जेलों में डाल दिए गए। ऐसी ही एक स्कूल के शिक्षक नाना भाई खांट पर इतने सितम ढाये गए कि उनकी जान चली गई। उसी वक्त एक आदिवासी शिक्षक सेंगाभाई को पुलिस ने वाहन के बाँध कर घसीटा /यह उनकी एक विद्यार्थी 14 साल की कालीबाई से देखा नहीं गया। वो अपने शिक्षक को बचाने पुलिस से भीड़ गई। पुलिस ने उसकी जान ले ली।

स्व गौरीशंकर उपाध्याय ने उस दौर में रस्मो रिवाज तोड़े और सावित्री जी से अंतर्जातीय विवाह किया। समाज में व्याप्त कन्या बिक्री की दाप प्रथा का विरोध किया। भारत आज़ाद हुआ और स्व गौरी शंकर उपाध्याय वे डूंगरपुर रियासत के पहले मुख्य मंत्री बने। बाद में राजस्थान निर्माण पर जिला प्रमुख बने। लेकिन उम्र भर मुफलिसी और फाकाकशी का जीवन जीते रहे। जब दुनिया को अलविदा किया तो कोई सम्पति नहीं छोड़ी।

आज खेत खलिहान ,छपर खपरेल ,गावं देहात और गरीब लोगो के आशियाने आज़ादी की रौशनी से दमकते है तो यह उन जैसे लोगो की सेवाओं का प्रतिफल है।

आज संसार प्रेस स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आओ उन्हें याद करे ,आओ उन्हें सलाम करे। यह भी गौर करे कि प्रेस की आज़ादी के पैमाने पर भारत 180 देशो की कतार में 140  वे स्थान पर खड़ा है।


लेखक - नारायण बारेठ, वरिष्ठ पत्रकार, जयपुर

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