भक्ति और पर्यटन का संगम वांदरवेड का नीलकंठ शिवालय एक त्रिवेणी संगम भी है
वैसे तो वागड़ में शिवालयो की समृद्ध विरासत है लेकिन डुंगरपुर ज़िले की सागवाड़ा तहसिल के वांदरवेड गांव का नीलकंठ महादेव मंदिर अपनी प्राकृतिक सम्पदा, त्रिवेणी संगम और ख़ास भौगोलिक लोकेशन के कारण धर्म के साथ-साथ पर्यटन का भी केंद्र बन गया है.
गलियाकोट क्षेत्र
के दिवड़ा बड़ा के राजस्व गांव वांदरवेड से तीन किलोमीटर की दूरी पर नीलकंठ महादेव
मंदिर है .
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माही,मोरन और कुंवारी कुंड के त्रिवेणी संगम पर नीलकंठ शिवालय की प्राकृतिक ख़ूबसूरती लाज़वाब है |
नीलकंठ महादेव मंदिर पर तीनों नदियों का संगम है . माही नदी, मोरन नदी व कुंवारी कुंड तीनों के संगम पर स्थित है नीलकंठ महादेव का यह मंदिर स्थित है . इस त्रिवेणी संगम के तट पर होने से नीलकंठ महादेव का धार्मिक महत्व तो है ही, यह अच्छी-खासी तादाद में पर्यटको को भी आकर्षित कर रहा है. यहाँ बने हॉल, ध्यान केंद्र, भोजनशाला आदि व्यवस्थाएँ साधको और पर्यटको तथा सेमिनार, मीटिंग्स आदि के लिए भी काफ़ी मुफीद हैं.
मध्य प्रदेश से
बांसवाड़ा होती हुई माही नदी यहीं से होते हुए अपना सफर तय करते हुए कडाणा बांध
में समा जाती है .इस खाडिया महादेव
में कुंवारी कुंड वर्षों से अपनी पवित्रता के लिए जाना जाता
है. आसपास डूँगरपुर
बांसवाड़ा उदयपुर के लोग जो अपने स्नेह जनों की अस्थिया विसर्जन करने के लिए यहा आते है .
अकाल के समय में नदियों में पानी सूख जाता है तो कुंवारी कुंड पानी से
पूरा लबालब भरा रहता है . जो अब पूर्ण रुप से माही नदी , मोरन
नदी के संगम व कडाणा बेक वाटर बांध के क्वार्टर में समा गया
है .
ठीक खाडीया महादेव के पास ही मोरन नदी अपने उदगम आंतरी से होकर वरदा, लोडेश्वर (ओबरी) से खड़गदा होते हुए माही कुवारी कुंड के साथ मिलती है, जो त्रिवेणी संगम कहलाता है .
वर्षों से पूर्व गांव से 3 किलोमीटर दूर नीलकंठ महादेव के पास 1
किलोमीटर तक झाड़िया व कंटीले बेर हुआ करते
थे . सुंदर पहाड़ियों संगम का पानी हरी भरी घास के कारण गांव
की गवालिये भैस, गाय, बकरी आदि चराने आते-जाते रहते हैं . एक गाय द्वारा शिवलिंग का दुग्धाभिषेक के बाद यहाँ शिवालय बना
था. चूंकि शिवलिंग खंड़ित था, इसलिए यह खाडिया महादेव कहलाता था. आज भी यहाँ शिवलिंग इसका सबूत है वह अपनी प्रसिद्धि के लिए आकर्षण का
केंद्र बना हुआ है .
पुनः निरंजनी अखाड़ा के महंत 108 श्री लखन गिरी महाराज द्वारा गांव की मंदिर कमेटी द्वारा करीब 5 वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया . जिस की डेढ़ करोड़ लागत आसपास हुई थी .
नीलकंठ महादेव के
दरबार में अखण्ड धुणी बनी हुई है. सजे धजे हवन कुंड है . भव्य आकर्षक द्वार लगाया
गया है. महाराज के रहने के
लिये भव्य मकान बनाये है. अतिथियों के लिये भोजन शाला भी बनवाई है .
दिमाग की शांति के
लिये मेडिटेशन के सुंदर भवन बनाये है. यहां एक बढ़िया गौशाला का निर्माण भी
कराया गया है . दो हजार तीर्थ यात्रियो के भोजन हेतु
सभा भवन (पूर्व काबीना मंत्री के द्वारा
सामुदायिक भवन द्वारका द्वारा
बनाया हुआ है )
छोटे बगीचे में गुलाब
, केवड़ा ,
मोगरा ,बिली
पत्र आदि लगाए गए हैं . कहते हैं नीलकंठ
महादेव दरबार मैं धन्य धन्य सुख संपति का आशीर्वाद लेकर जाता
है. यहां वर्ष में के
लगभग 500 व्यक्तियों की कालसर्प की पूजा करवाने आते हैं. यहां वर्ष के लगभग
30 लघु रुद्र साधना का आयोजन किया जाता है.
हर वर्ष श्रावण
मास के पूरे 15 से 20
गांव द्वारा सामूहिक
होमात्मक लघुरुद्र होता है. 2000 लोग शुद्ध देसी घी के बने
दाल बाटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं .
वर्तमान गाँव के सभी जातियों
को सर्व समाज जातियों द्वारा मंदिर प्रबंधक कमेटी की पारदर्शिता के साथ आय व्यय का
समस्त प्रकार का प्रबंध करती है .
सेवक के सानिध्य
में आपके द्वार दिए गए हैं सहयोग राशि की पक्की रसीद दी
जाती है . जिसमें क्षेत्र के सागवाड़ा गलियाकोट, खडगदा,
जोगपुर, सिलोही,
चितरी, रातड़िया, दिवड़ा
छोटा, दिवड़ा बड़ा, सूरज गाँव, लिमड़ी, सीलोही, नादिया, गड़ा जसराजपुर सहित
आसपास के कई लोग भाग लेते हैं. सभी जाति के लोग
अपनी भागीदारी बराबर निभाते हैं.
दीपावली पर दवे
ब्राह्मण द्वारा हर वर्ष दीपावली का प्रथम मेरिया महादेव की आरती के समय दिखाया
जाता है . नीलकण्ठ महादेव के समीप त्रिवेणी संगम है . मंदिर
परिसर पुरा प्रकृति की गोद मे है .
आसपास घनी पहाड़िया है व
अतिसुन्दर दृश्य है जो देखने लायक है .
~ तेजस कलाल,
गलियाकोट
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