पर्व-प्रेमी वागड़ की संस्कृति का हिस्सा बन गई है छठ पूजा


मालवा-गुजरात और मेवाड़ की संगम स्थली दक्षिणी राजस्थान का वागड़ क्षेत्र हमेशा से ही खुले मन से समन्वय और सहिष्णुता की धरती रही है. वागड़ से ही पश्चिमी और दक्षिणी भारत शुरु होता है तो उत्तर भारत का भी यह आखिरी छोर है. यही नहीं मध्य भारत भी वागड़ के काफ़ी करीब है.  शायद इसीलिए वागड़ विभिन्न संस्कृतियो व परम्पराओ को अपनाता रहा है.
छठ पूजा का चित्रांकन: अभिमन्यु सिंहा
इसी क्रम में एक और कडी है छठ पूजा. आम तौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उडिसा और बंगाल का यह पर्व अब वागड़ का भी हिस्सा बनता जा रहा है. और वागड़ के डूंगरपुर,  बांसवाड़ा, सागवाड़ा आदि शहरो में छठी मैया की पूजा के नज़ारे देखने मिल सकते हैं. जिसका सारा श्रेय जाता है उत्तर भारत से आकर वागड़ में बसे धर्म परायण लोगो को. मूलत: बिहार का पर्व होने के बाद भी वागड़ में छठ पर्व पिछले कुछ वर्षों से बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा है. पूरे गाजे बाजे के साथ. स्थानीय निवासी भी इसमे दिलचस्पी लेते हैं. इसलिए यह जानना जरूरी है कि इस त्योहार के पीछे की कहानी क्या है? यह सबके लिए एक आवश्यक जानकारी है.
 

आइए, जानते हैं छठ पूजा के बारे में.. 

जानिए छठ की कथा :
छठ की कई कहानियां हैं जिनका सूत्र रामायण और महाभारत से जुड़ा हुआ है। परंतु सबसे ज्यादा सुनाई जाती है यह पौराणिक कथा । इस कथा के अनुसार राजा प्रियवद ( प्रियव्रत ) नि:संतान थे । पुत्र की लालसा में वे कश्यप ऋषि से मिले । तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से रानी गर्भवती हुई और समय पर एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह बच्चा मृत पैदा हुआ।
डूंगरपुर शहर में गेप सागर की पाल पर छठ पूजा करती महिलाएँ 
दुख में डूबे राजा प्रियवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में खुद भी प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान ब्रम्हा की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे राजन! यदि तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो तो तुम्हारी और दूसरे लोगों की भी मनोकामना पूरी होगी। 
राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई। तब से परम्परा चल रही है। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। दीपावली के छठें दिन होती है षष्ठी। यह षष्ठी ही छठी या छठ माता के रूप में मान्य हैं। इन्हें सूर्यदेव की बहन भी माना जाता है। सूर्यास्त और सूर्योदय को अर्ध्य देने का सम्बन्ध इसी से है।
यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्घि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। किन्तु मूलतः संतान प्राप्ति और सन्तान के हितार्थ किया जाता है और इसे विवाहिता स्त्री ही कर सकती है। अब यह डूंगरपर के साथ लगभग पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है पर यह बिहार का महापर्व है। वागड़ में इस पर्व के प्रचलन से यहाँ की विविधरंगी साँस्कृतिक विरासत समृद्ध ही होगी. सबको छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

~ प्रोफेसर उपेंद्र सिंह
व्याख्याता, राजकीय महाविद्यालय, डुंगरपुर

1 टिप्पणी

Unknown ने कहा…

Nice