वागड़ का यह पंचांग देशभर को राह दिखाता है
वागड़ के राजेंद्र कुमार पंचाल के पंचांग की देशभर
में मांग
इसे नक्षत्र-लग्नो के प्रति लगन ही कहेंगे कि डूंगरपुर जिले के एक छोटे से गांव सामलिया के विश्वकर्मा पुत्र और भूगोल शिक्षक राजेंद्र कुमार पंचाल को ज्योतिष विद्या ने आकर्षित किया. विज्ञान व शिक्षण में स्नातक उपाधि के अलावा पंचाल ने भूगोल और संस्कृत में एम.ए. किया.
पंचाल बताते हैं कि ज्योतिष के प्रति रूचि
बचपन से रही, पिताजी पंचांग अध्ययन और अध्यात्म के प्रति
काफी जुड़े हुए थे जिसका प्रभाव पड़ा । पिताजी तंत्र-मन्त्र
और योग विद्या में काफी प्रसिद्धि प्राप्त थे। बहुत से पंडित और साधु संतो के साथ
पिताजी की मित्रता थी. उन मित्रो में से एक थे पंडित कचरूलाल जी भट्ट ।बचपन में भट्टजी अक्सर पिताजी के पास आया
करते थे, उस जमाने में
आवागमन के साधन कम थे रात्रि विश्राम उनके घर पर ही किया करते थे और ज्योतिष विषय
पर बातचीत, चर्चा और जानकारियां देते थे । वे सौराष्ट और
यवतमाल में काफी प्रसिद्ध भी थे ।
राजेन्द्र कोई 14/15 वर्ष के थे, तब भट्टजी ने कुंडली देखकर भविष्यवाणी की थी कि “तेरा भविष्य उज्ज्वल है, बेटा ! तेरा ललाट, कुंडली और चेहरा यह बताता है की तू समाज और परिवार में कुछ अलग करेगा, पिता का नाम रोशन करेगा.” फिर भट्टजी ने एक मन्त्र दिया और उसके जप करने को कहा ।
बचपन का समय था कुछ पता नही चला । पर मन्त्र का जप चलता रहा, फिर धीरे धीरे रूचि और ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा बढ़ती गई । पिताजी के साथ रहने और उनके सानिध्य का फल रहा की ज्योतिष का प्रारम्भिक ज्ञान सीखते गए ।
वर्ष 1997 में घोड़ी तेजपुर (दानपुर) में राजकीय नौकरी मिली, जहाँ एकांत सहज में उपलब्ध था, तो तीन वर्षो तक ज्योतिष का गहन अध्ययन किया. और आध्यात्मिक रूचि बढ़ती गई । लेखन और शास्त्रों के प्रति लगाव बढ़ा । अंतराष्ट्रीय ज्योतिषी भोजराज द्विवेदी जोधपुर की संस्था अज्ञात दर्शन के पत्राचार पाठ्यक्रम से ज्योतिष विशारद (एक वर्ष) को किया , साथ ही कुछ वर्षो बाद ज्योतिष मार्तंड (3 वर्षीय पाठ्यक्रम) भी कर लिया।
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राजेंद्र पंचाल, सामलिया ने अपनी गहरी रुचि के चलते ज्योतिष में महारत हासिल की |
उसके बाद ज्योतिष की सेवा करने का विचार आया और सोचा की क्यों न ज्योतिष के सम्बन्ध में एक पंचाग निकाले । जो आम व्यक्ति तक उसकी पहुँच हो , सरल और सुबोध हो । तब पहला प्रयास 2002 में किया । केवल 200 पंचांग छापे और लोगो को दिए, जो कटु अनुभव था, प्रकाशन असफल रहा । लगा कि ये प्रयास बेकार है । 2003 में फिर दूसरा प्रयास किया जो काफी मुश्किल था. साथ ही पंचांग काफी लोगो में चर्चित रहा ।
देवयोग से 2004 में
पंचाल को भीलूड़ा के ज्योतिष पारंगत पं. रमेशजी भट्ट का सानिध्य मिला । उनसे काफी
विचार-विमर्श हुआ. ज्योतिष में जनरुचि बढ़ाने के भागीरथ प्रयास के लिए उन्होने
मार्गदर्शन दिया और इसके तीसरे अंक हेतु साथ जुड़े. और फिर पंचांग का परिष्कृत रूप सामने आया. परंतु
चर्चा का विषय यह भी रहा कि एक पंचाल जाति का व्यक्ति ज्योतिष का कार्य क्यों करता
है ? भट्ट साहब के सामने भी लोग प्रश्न पूछते तो वे सहज
भाव से कहते की पूर्वजन्म का अभ्यास और रूचि का विषय है, इस
हेतु तप और परिश्रम करना पड़ता है और वह कार्य राजेन्द्र बखूबी करता है जिसे मै तो
क्या कोई नही रोक सकता है ।
इस प्रकार हौंसला मिलता रहा, पंचांग की उपयोगिता और सरलता ने सबको
आकर्षित किया, जो भी एक बार लेकर उपयोग लेता हैं वह स्थायी
पाठक बन जाता है । पञ्चाङ्ग की प्रसिद्धि और उपयोग बढ़ने के साथ ही उसमे नवीन शोध
परख लेख , चिंतन , भविष्यवाणियां आदि
की तैयारियां जारी करने के 8/9 माह पूर्व ही बनाने का प्रयास
शुरू किया जाता है । इस कार्य में श्रीमती ममता पंचाल का योगदान और संबल भी
महत्वपूर्ण रहता है और कम्प्यूटर वर्क करके आधा कार्य सरल करने में योगदान देती है
। इस हेतु समय समय पर उत्साहवर्धन के रूप
में पूज्य गुरुदेव अच्च्युतानन्दजी महाराज बेणेश्वर धाम पीठाधीश्वर का आशीर्वाद और
सहयोग मिलता रहा है । उनका मार्गदर्शन पंचांग के नवाचार के प्रयास हेतु हर वर्ष
मार्गदर्शन मिलता है, सबसे
बड़ी बात ये हे की वे इस पञ्चाग को अपना ही मानते है ।
मित्रों का इसमें प्रचार प्रसार और सहयोग
आर्थिक और मानसिक तरीके से हमेशा रहा जिनमे दिनेश जी पंचाल, हरेन्द्रसिंह खरोडिया, दीपक उपाध्याय कराड़ा,
भ्राता और गाँव के ही मित्र रमनलालजी पंड्या, किशोर
पंड्या सदैव सहयोग देते रहे है ।
पञ्चाग को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली है. जो कडी मेहनत का फल है. इसे सर्वप्रथम राजस्थान
के पंचायती राज मंत्री श्री कनकमल कटारा ने विमोचन किया उसके पश्चात स्वर्गीय
मुरली मनोहर शास्त्री उदयपुर, गिरी बापू, जैन मुनि पुलक सागरजी, तरुण सागरजी, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संत
रमेशभाई ओझा, गौ पालक कथाकार संत रघुवीर शरणदासजी महाराज,
महाराष्ट्र के केबिनेट मंत्री राज पुरोहित और इस वर्ष 2018 के पंचांग को कुँवर साहब हर्षवर्धनसिंह जी (राज्य सभा सांसद) जैसे नामी
हस्तियों ने इसका विमोचन करके इसके महत्व को लोगो तक पहुँचाया ।इस पञ्चाग का उद्देश्य आम जन को ज्योतिष की
सही अर्थो में जानकारी दिलाना, उनको ज्योतिष से शिक्षित करना, आम जन को व्रत -
त्यौहार की उपयोगिता बताना, हमारी पौराणिक संस्कृति को आने
वाली पीढ़ी तक पहुँचाना रहा है । और दिन ब दिन पञ्चाग के पाठकों की वृद्धि से यह सार्थक
रहा है ।
इस पंचांग के कारण प्रथम बार भोपाल में
राष्ट्रीय स्तर पर 2009 में
ज्योतिष सम्मेलन में सम्मानित करते हुये पंचाल को ज्योतिष ज्ञानाचार्य से सम्मानित
किया गया, 2015 डॉ वेद प्रकाश पांचाल ट्रस्ट दिल्ली ने इस
पंचाग के कारण ‘पंचाल रत्न’ से
पुरुस्कृत किया गया । वही, देवास
में ‘माँ 2010 में माँ शारदे अवार्ड दिया
गया, 2011 में अंतराष्ट्रीय वास्तु एसोशियेशन का सदस्य बनाया
गया, 2013 में भारतीय शोध संस्थान उदयपुर द्वारा सम्मानित
किया गया । वर्ष 2016 में राजस्थान पत्रिका उदयपुर के द्वारा
उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान मिला । 2017 में डाकोर में पंचांग के
सम्पादन हेतु सम्पूर्ण भारतीय विश्वकर्मा समाज समिति द्वारा सम्मानित किया गया ।
वर्तमान में देश के प्रत्येक राज्य में हिन्दी भाषी दस हजार से अधिक पाठक इसका
उपयोग लेते है ।
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