-अखिलेश पंड्या
महारावल
गोपीनाथ के काल का 580 साल पुराना शिवालय
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रुद्राक्ष आकार का सिद्धनाथ शिवलिंग |
सिद्धीदाता शिव हमेशा से
जन आस्था के केंद्र रहे हैं. राजस्थान के दक्षिणी भूभाग वागड़ अंचल भी इससे अछूता नहीं
है. यहाँ आपको हर इलाके में प्राचीन शिवालयो के दर्शन हो जाएंगे. एक ऐसा ही शिवालय
है ठाकरडा का सिद्धनाथ मंदिर.
डूंगरपुर जिला मुख्यालय
से सागवाड़ा मार्ग पर,
सागवाड़ा शहर से करीब 13 किमी दूर ठाकरड़ा गांव में स्थानीय
गोमती नदी के तट पर स्थित सिद्धनाथ महादेव मंदिर लोगों की अटूट आस्था का केंद्र
माना जाता है। करीब 580 साल पुराने इस प्राचीन शिवालय में
भगवान सिद्धनाथ का एक बड़ा स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, जो
हूबहू रूद्राक्ष जैसा प्रतीत होता है। यहां हर सोमवार, एकादशी,
पूर्णिमा और श्रावण मास में दर्शनार्थियों का तांता लग जाता हैं।
वहीं शिवरात्रि , होली और दीपावली पर बड़े स्तर पर मेले भरते
हैं। पड़ोसी राज्य गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से भी
श्रद्धालु सिद्धनाथ महादेव के दर्शन के लिए यहां आते हैं।
सिद्धेश्वर, काशी विश्वनाथ व हेजनाथ महादेव भी कहा जाता है ठाकरडा सिद्धनाथ को ।
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मंदिर परिसर में शिव अनुष्ठान करते भूदेव |
महारावल गोपीनाथ के युग
का मंदिर:
कहा जाता हैं कि इस
मंदिर का निर्माण राजा गुहिल के वंशज खुमाणवंशी प्रतापसिंह के पुत्र महारावल
गोपीनाथ के शासन काल में मेघ-बडऩगरा जाति के नागर ब्राह्मण ने कराया था। मुगल
सम्राटों के आक्रमण के समय काशी के एक मंदिर से शिवलिंग गायब हो जाने और जलाधारी
वहीं रह जाने की बात प्रचलित है। ठाकरड़ा के पश्चिमी छोर पर एक टेकरी पर गाय
द्वारा अपने दूध का अभिषेक कर दिया जाता था, पर वहां शिवलिंग की जलाधारी नहीं थी। लोग बताते हैं कि ठाकरड़ा के
ब्राह्मण को भगवान शिव ने स्वप्न में आकर काशी विश्वनाथ होने और गोमती के तट पर
प्रकट होने की जानकारी देते हुए कहा कि जलाधारी काशी से ले आओ। तब यहां से भट्ट
परिवार के सदस्य जलाधारी लेने काशी पहुंचे थे। भगवान शिव द्वारा ब्राह्मण को स्वप्न
में जलाधारी को पतली लकड़ी के बीच डालकर लाने को कहा। ब्राह्मण और उसके सहयोगी
जलाधारी को लकड़ी में पीरो कर कंधे पर उठाकर लाए, जो यहां आज
भी स्थापित है।
रुद्राक्ष शिवलिंग: नेपाल
के पशुपतिनाथ के बाद दूसरा शिवलिंग :
श्रद्धालुओं का मानना
है कि नेपाल के पशुपतिनाथ के बाद रूद्राक्ष का यह दूसरा स्वयंभू शिवलिंग हैं। यहां
मंदिर में ब्रह्मजी, रिद्धि-सिद्धि गणेश, शंकर पार्वती, दो नंदी प्रतिमाओं सहित गर्भगृह में
भगवान सिद्धनाथ का स्वयंभू रूद्राक्ष शिवलिंग है। यहां पर मां पार्वती की चार
कलात्मक प्रतिमाएं भी हैं। पास के देवालय में भगवान लक्ष्मीनारायण की विशाल
प्रतिमा है। शिवालय के पास एक कुंड है, जो हमेशा पानी से भरा
रहता है।
ठाकरडा के ही स्व. गोमतीशंकर पंडया भगवान सिद्धनाथ के अनन्य भक्त
रहे हैं, जो आजीवन सिद्धनाथ का अभिषेक किए बिना अन्न ग्रहण नहीं करते थे.
इसी भक्ति भाव को उनके पुत्र स्व. तुलसीराम पंडया ने भी जीवनभर निभाया.
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जिर्णोद्धार के बाद संगमरमर से बना नया मंदिर
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वर्ष 2013 में जिर्णोद्धार के बाद निखरा स्वरूप
महेश चौबीसा, महामंत्री, सिद्धनाथ
महादेव सेवा संस्थान का कहना है कि, मंदिर की प्रसिद्धि बढऩे
से आसपास के जिलों के अलावा महाराष्ट्र से भी यहां दर्शनार्थी आते रहे हैं । नई ज़रूरतो
के अनुसार वर्ष 2013 में मंदिर का जिर्णोद्धार कार्य शुरु
किया। संस्थान से जुड़े इंद्रसिंह राजावत, हकरजी कनोत,
प्रेमशंकर वजीयोत, गणेश सुथार, जयदीपसिंह, खेमजी गुडेला, गौतम
अणियोत, भरत सोनी, धूला कनोत, मोहन पंचाल सहित भक्तों के सानिध्य में शिल्पी हरीश सोमपुरा के मार्गदर्शन
में जिर्णोद्धार का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। इसके बाद वागडिय़ा पाटीदार समाज
चौखला ठाकरड़ा के सानिध्य में शिखर प्रतिष्ठा भी हुई ।
लेखक अखिलेश पंडया, टामटिया, डूंगरपुर मूल के पत्रकार, राजनेता एवँ शास्त्री हैं
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