क्षीरेश्वर महादेव मंदिर- वन, मोरन, और मठ का मोहक केंद्र
आलेख: राजेन्द्र पंचाल सामलिया
दक्षिणी राजस्थान में वागड़ क्षेत्र का सदियो पुराना शिवालय जहाँ स्वयँभू शिवलिंग, प्राकृतिक छटा और प्राचीन मठ आपको मंत्र मुग्ध कर देते हैं.
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स्वयँभू शिवलिंग जिस पर कुल्हाडी के प्रहार से दो हिस्से अभी भी स्पष्ट दिखते हैं |
प्रकृति की गोद में बसा, एकांत, मनोहरी
वातावरण से युक्त भगवान भोलेनाथ का यह मन्दिर कई विशेषताओं से युक्त है । अंबाडा
गाँव के नजदीक में, जोगपुर
पंचायत में स्थित खुटवाड़ा - खुमानपुर व अंबाडा की मिलती हुई सीमाओं के मध्य स्थित
है यह मंदिर. खडगदा व डैयाणा गाँव भी बहुत समीप हैं. मंदिर के पास ही मोरन नदी की
कल-कल धारा बहती रहती है. यह पुराने समय में वन क्षेत्र
में स्थित था, आज भी यहाँ के वृक्षों के जमघट
और हरियाली देख कर इसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की अनुभूति कराने वाला भी कहना कोई
अतिशयोक्ति नही होगी । यहाँ
बहुतायात में मोर मिल जाते हैं वहीं नाग-नागिनों का घूमना एक सामान्य घटना है ।
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मुख्य क्षीरेश्वर शिवालय |
माना जाता है की खुटवाड़ा गाँव की
गायें यहां चरने आया करती थी, तब गहरे जंगल में एक गाय हर
रोज अपना दूध एक पत्थर पर स्वयं दुह देती थी । गाय का
मालिक एक पटेल था, उसकी
एक दुधारू गाय के हर रोज दूध नही मिलने (थन से दूध गायब हो जाने) से परेशान होकर
एक दिन कुल्हाड़ी लेकर गाय के पीछे पीछे गया, क्योंकि
उसके मन में शंका थी कि गाय को कोई और दुह लेता है, उस
व्यक्ति का गुस्सा सातवें आसमान पर था , वह आज
मन बना कर गया था कि जो भी चोर मेरी गाय का दूध निकाल लेता है उसकी पिटाई कर ही
देनी है । वह छिप कर देखता रहा ।
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मंदिर का मुख्यद्वार |
आखिर गाय वन में चरने के बाद दूसरी गायों से अलग होकर
शाम को आते हुए एक पत्थर पर खड़ी रही और गाय के थन से दूध की धारा निकल रही थी और
कुछ समय मे सारा दूध उस पत्थर पर गिर चुका था। इस दृश्य को देखते रहने के बाद
किसान ने देखा की गाय वापस रवाना हो गई और वहां कोई चोर नही था सिवाय एक गोल काले
पत्थर के ।
उस व्यक्ति ने देखा तो उसके मन में आया की गाय यहाँ
दूध निकाल देती है शायद उसकी आदत हो गई है। उस पत्थर के आकर्षण के कारण हो रहा है
उसने कुल्हाड़ी से पत्थर को तोड़ने के लिए वार किया, वह
पत्थर ऊपर से थोड़ा टूट गया, यह कोई
साधारण पत्थर नहीं बल्कि भगवान महादेव का चमत्कारी शिवलिंग था । उस पटेल बन्धु
द्वारा कुल्हाड़ी मारने के बाद देखा तो शिवलिंग के ऊपर से दो भाग हुए थे, वहां
से दो धाराएं बहने लगी , एक दूध
की दूसरी रक्त की ।
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मंदिर परिसर में माँ महाकाली और गंगा मैया की प्रतिमाएँ |
आज भी यह शिवलिंग ऊपर से टूटा हुआ है। इन धाराओ को
देख कर वह व्यक्ति आश्चर्य चकित होकर गाँव में आया, सभी
लोगो को यह घटना बताई गई, बड़ी संख्या में लोग देखने गए।
गाँव का एक मुखिया बुज़ुर्ग जो समझदार था उसने
कहा ये भगवान महादेव का स्वयम्भू शिवलिंग है जो वीरान जंगल में है इसलिए स्वयं
भगवान इस स्थान पर प्रकट हुए होंगे ! महादेव जब कभी पृथ्वी पर किसी भक्त की तपस्या
से प्रकट होते है तो वहाँ प्रभु की तजोमय शक्ति के प्रभाव से शिवलिंग प्रकट हो
जाता है, उसे
ज्योतिर्लिंग या स्वयम्भू शिवलिंग कहते है, ऐसा
कुछ यहां अवश्य हुआ होगा ।
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मंदिर परिसर में लकड़ी के कलात्मक खम्भे |
पृथ्वी पर हजारों बार भगवान भोलेनाथ आए है उनकी
पहचान स्वरूप ये स्वयम्भू शिवलिंग खास जगह पर पर बने हुए है। शिवलिंग
के दर्शन मात्र से पाप ताप संताप मिट जाते है ।
शिलालेख अनुसार उस स्थान पर खुटवाड़ा के पटेलों ने सभी ग्रामीणों के सहयोग से विशाल मंदिर बनवाया । दन्त कथा व वर्तमान के महंत जी हरगोविंद पुरी महाराज के अनुसार कहा जाता है कि किसी भक्त पटेल की महिला को भगवान ने स्वप्न में कहा की जब तक मन्दिर बनेगा तेरे घर मे गेंहू की कोठी से हर रोज गेंहू निकाल कर मन्दिर निर्माण के कारीगरों को देता रहना, मन्दिर का कार्य रुकेगा नही ।
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मंदिर की विशेषता ये भी है कि यह 'श्रीयंत्र 'के आकार में बना है |
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मंदिर परिसर में एक मंज़िला संत आवास |
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शिलालेख, जिसमें मंदिर निर्माण की जानकारी है |
उस समय के सर्व समाज के साथ मिल कर इस मंदिर की
भव्यता का रूप दिया गया। इस मंदिर के लिए आस पास की जमीन को लोगों ने मन्दिर हेतु
आरक्षित कर रखा है।
आज भी यह मंदिर वागड़ के सबसे अधिक भूमि का मालिक
है । यहाँ मन्दिर खाते लगभग 160 बिगा
जमीन है।![]() |
साधु-संतो के ठहरने के लिए बना प्राचीन मठ |
मेरे साथी महेश जी शर्मा के अनुसार इस मंदिर को
सर्वप्रथम सूरजगिरीजी महाराज के द्वारा अखाड़े के रूप में स्थापना की थी।
सूरजगिरीजी महाराज ने यहाँ धूणी की स्थापना की थी, वे एक
पहुँचे हुए सिद्ध योगी थे। पूरे
देश में निरंजनी अखाड़ा का अपने मठ और अखाड़े बने हुए है जिसमें क्षीरेश्वर का मठ भी
खासी पहचान रखता है ।
वर्तमान के निरंजनी अखाड़ों के राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्रगिरीजी महाराज भी इस मंदिर में काफी समय तक भगवान की सेवा में रहें थे जो अब लेटे हनुमानजी मन्दिर में पीठाधीश्वर है
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वर्तमान महंत हरगोविंद पुरी महाराज |
क्षीरेश्वर मंदिर में स्थित मठ का अपना अलग महत्व
है , यहाँ
केवल शिवरात्रि को ही धूणी की अग्नि के दर्शन होते है । बाकी अग्नि देवता गुप्त
रूप में रखे जाते है उनको एक वर्ष तक खोला नही जाता है। प्रत्येक शिवरात्रि को
साँयकाल वेला में धूणी को खोलने के बाद नयी लकड़ियों द्वारा अग्नि प्रकट कर भगवान
महादेव को अभिषेक किया जाता है व प्रसाद वितरण कार्य किया जाता है । इस
परंपरा को अनवरत जारी आज भी रखा हुआ है।
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कलात्मक छतरी व चरण पादुकाएँ |
प्राप्त जानकारी अनुसार सातवें महंत कैलाशानंद जी
महाराज हुए वह भी चमत्कारी संत रहे । इसके पश्चात आठवें महंत जी रघुनाथपुरीजी
महाराज (1953
-1974 ) रहें
आपने जन कल्याण के कार्य किए , आपने तत्कालीन समय में
हॉस्पिटल बनवाया था । इनके पश्चात 1974 -2000 के
समय में 9 वे
मठाधीश संत श्री मेघराजपुरी जी रहें , आप ने 12 वर्ष
तक अन्न का त्याग कर निराहार रहे ।
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मुख्य शिवालय की एक और तस्वीर |
आपने यहाँ गौ-शाला की भी स्थापना की थी आपके समय
काल में 100 से
ज्यादा गाये थी , आपके
समय मे मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी भी पधारे थे । जिन्होंने अस्पताल का उद्गाटन किया
था ।
10 वे महंत जी बालकृष्ण पूरी जी व 11 वे
महंत पूज्य श्री हरगोविंद पूरी जी जो अभी भी विराजमान है. हरगोविंदपुरी
जी हरिद्वार में 18 वर्षो
तक निरंजनी अखाड़ों के राष्ट्रीय महासचिव रहें । हरगोविंदपुरी जी महाराज के साथ
वर्तमान में रोहितपुरी जी महाराज भी इस मंदिर की सेवा में वर्तमान में विराजमान है।
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मंदिर के एक और द्वार से प्रकृति की छटा-यहाँ से मोरन तट को रास्ता जाता है |
इस मंदिर का प्रवेश द्वार , आस-पास
सुंदर हरीतिमा वातावरण , कलात्मक
छतरियां , चरण
पादुकाओं की छतरियां व पूर्व के महंत व संतो की समाधियों के स्मारक, गौ
शाला, मन्दिर
के पास स्थित मठ व धूणी में लकड़ी के स्तम्भ जिस पर कलात्मक कार्य आदि से इस मंदिर
की भव्यता व सुंदरता को चार चाँद लगाते है । पर अब धीरे धीरे यहाँ
की रौनक पूर्व से कम होती जा रही है जिसके लिए सरकार का सहयोग व शैव भक्तों का
त्याग व सेवा की आवश्यकता है , इस
पौराणिक धरोहर को बचाना व उसका रख रखाव हम सब का नैतिक कर्त्तव्य है । ॐ नमः शिवाय
।।
मूल सामलिया, डूंगरपुर निवासी लेखक ज्योतिष मार्तण्ड, शुभवेला पञ्चाङ्ग के संपादक हैं.
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