हनुमंतसिंह बांसवाड़ा-शतक से किया था टेस्ट क्रिकेट का आगाज़, घरेलू क्रिकेट में लगाया था रनों का अंबार

हनुमंत सिंहजी बांसवाड़ा 

वागड़ और राजस्थान के इस नायाब रत्न के जन्मदिन पर प्रकाश ड़ाल रहे  हैं वीरेंद्र सिंह बेडसा


स्वर्गीय महाराज हनुमंत सिंह जी बाँसवाड़ा का नाम भारतीय और विश्व क्रिकेट में हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा ।
" छोटू " के नाम से प्रसिद्ध हनुमन्त सिंह का जन्म आज के ही दिन 29 मार्च 1939 को बाँसवाड़ा राज परिवार में हुआ । वे महारावल श्री चंद्रवीर सिंह की दूसरी संतान थेउनके अग्रज महारावल सूर्यवीर सिंह जी भी प्रथम श्रेणी क्रिकेटर रहे जिनके बारे में समीक्षको का मत था कि वे फ्रेंक वारेल एवं मुश्ताक़ अली के बाद अपने समय के श्रेष्ठ स्टाइलिश बल्लेबाज़ रहें हैं। इनके दादाजी पृथ्वीसिंहजी भी मेयो कॉलेज के कप्तान रह चुके थे. यानी क्रिकेट खेल इनको विरासत में मिला. क्रिकेट के आंकड़े कभी भीे खिलाड़ी कि सच्ची तस्वीर नही दिखाते फिर भी इन दोनों भाइयों ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में हज़ारों रन बनाए । हनुमन्त सिंह क्रिकेट में कुदरत का करिश्मा थे उन्हें क्रिकेट किसी ने विधिवत सिखाया नही 
जब वे मेयो कॉलेज में पड़ते थे तो टेनिस बाल से खेलते थे जहां से वह डेली कॉलेज इंदौर आ गए और होल्कर की टीम को खेलते देखा। हनुमन्त सिंह ने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट की शुरुआत 1956- 57 में मध्य भारत की  ओर से खेलते हुए की थी . यह भी अज़ीब सँयोग था कि हनुमन्त सिंह का पहला मैच अपने ही राज्य राजस्थान के खिलाफ था !! इस मैच में राजस्थान की ओर से खेल रहे भारत के सर्व श्रेष्ठ आल राउंडर रहे वीनू मांकड़ की नज़र हनुमन्त सिंह पर पडी जब वे उनके सामने गेंदबाजी कर रहे थे।अपनी गेंदबाजी पर कुशलता से बलेबाजी करते देख वीनू ने राजस्थान के कप्तान महाराणा भागवत सिंह मेवाड़ से कहा "Sir here is a player who resembles peter may in class and if you call us from outside to play for your team, why don't you ask to little cricketer for your team from next session ?" वीनू के इतना कहने के बाद राजस्थान की क्रिकेट के पोषक व संरक्षक महाराणा साहब ने उन्हें अगले सत्र में राजस्थान से खेलने को आमंत्रित किया और उसके बाद इतिहास साक्षी है कि हनुमन्त सिंह ने राजस्थान के क्रिकेट को नई उचाईयां दी। उस दौर में लगभग डेढ़ दशक तक राष्ट्रीय क्रिकेट में राजस्थान की धाक थी और उसे रणजी ट्रॉफी के ख़िताबी दावेदारों में गिना जाता था। 
हनुमंतसिंह जी के साथ बेडसा 
हनुमन्त सिंह ने अपने टेस्ट क्रिकेट का आगाज़ 1963-64 में भारत कें दौरे पर आई इंग्लैंड की टीम के खिलाफ नई दिल्ली में खेले चोथे टेस्ट में 105 रन की आकर्षक पारी के साथ किया और विश्व क्रिकेट के उन गिने चुने खिलाड़ियों की फेहरिस्त में शामिल हो गए जिन्होंनें अपने टेस्ट जीवन की शुरआत शतक से की । इसकी अगली श्रृंखला में ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मद्रास में खेले प्रथम टेस्ट में उन्होंने 94 रन की पारी खेली।उन्होंने न्यूज़ीलैंड व 66-67 में वेस्टइंडीज के खिलाफ घरेलू श्रृंखला में और 1967 में इंग्लैंड दौरे पर गयी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया । 1966-67 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उनका चयन नही हुआ किन्तु 1969 में न्यूजीलैंड के खिलाफ मुम्बई टेस्ट में पुनः अवसर मिला । 

उन्होंने 14 टेस्ट की 24 पारी में 2 बार नाबाद रहते हुए 31.18 के औसत से 686 रन बनाए जिसमे एक शतक ओर पाँच अर्ध शतक शामिल है । उन्होंने 4 unofficial टेस्ट में 77.40 की औसत से 387 रन बनाये जिससे 2 शतक एवं एक अर्ध शतक शामिल है ।

घरेलू क्रिकेट में उनके बल्ले की दहशत लगभग दो दशक तक बनी रही और 95 रणजी मैचों की 151 पारी में 30 बार नॉट आउट रहते हुए 6120 रन बनाए। इसमे 3 दोहरे शतक सहित 15 शतक शामिल है उन्होंने ने 47 रणजी मैचों में कप्तानी करते हुए 3 बार राजस्थान को रणजी फाइनल में पहुचाया ।उन्होंने दिलीप ट्रॉफी के 24 मैचों की 37 पारी में 6 बार नॉटआउट रहते हुए 1306 रन बनाए जिसमे साउथ जोन के खिलाफ दोहरे शतक सहित चार शतक शामिल है । उन्होंने 1966-67 से 75-76 तक मध्यक्षेत्र का नेतृत्व किया और 1971-72 में दिलीप ट्रॉफी का विजेता बनाया ।

हनुमन्त सिंह का चयनकर्ता के रूप में भी बहूत बड़ा योगदान रहा है, वे 1982-83 में आल इंडिया जूनियर सलेक्शन कमिटी के अध्यक्ष चुने गए ।इसके बाद 1983-84 ,84-85 85-86 में सीनियर सिलेक्शन कमिटी के मेंबर ओर 86-87 में नेशनल सलेक्शन कमिटी के चेयरमैन चुने गए ।
हनुमन्त सिंह ICC मैच रेफरी के रूप में भी प्रसिद्ध थे । वे 9 टेस्ट और 54 वनडे इंटरनेशनल मैचों में मैच रेफरी के रूप में रहते हुए अनुशासन एवं अचार सहिंता के पालन के लिए प्रतिबद्ध रहे । वे भारतीय टीम के मेंनेजर ,नेशनल क्रिकेट अकादमी के चैयरमैन ओर राजस्थान के कोच भी रहे ।


बॉम्बे बनाम बाँसवाड़ा -----यह सुनने में आश्चर्यजनक लगता है किंतु सत्य है कि 1967 में बॉम्बे के खिलाफ रणजी फाइनल में हनुमन्त सिंह ने अपने अग्रज सूर्यवीर सिंह के साथ खेलते हुए मिल कर 533 रन बना दिये ,इसमें हनुमन्त सिंह ने दोनों पारियों में शतक क्रमशः 109 और नाबाद 213 रन तथा सूर्यवीर सिंह ने क्रमशः 79 और 132 रन बनाएं । इतना ही नही इन दोनों भाइयों ने तीसरे विकेट के लिए दोनों पारियों में शतकीय साझेदारी क्रमशः 176 और 213 रन भी बनाये इस मैच में दोनों भाइयों के प्रदर्शन को देख कर क्रिकेट विश्लेषण इसे बॉम्बे बनाम बाँसवाड़ा की संज्ञा देते है।
हनुमन्त सिंह के बारे ने लिखने को बहुत कुछ है किंतु अगली बार उनकी पुण्य तिथि 29 नवंबर को।

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